25 जून 2018

न धर्म बचा है न इंसानियत, अब तो केवल ढोंग बचा है

मेरे एक पोस्ट पर दो महत्वपूर्ण कमेंट्स आये थे जिनका उत्तर मैं विस्तार से देना चाहता था...पहले पोस्ट पढ़ लीजिये, फिर वे दो महत्वूर्ण कमेंट्स और फिर मेरा उत्तर....

कोई मुस्लिम मारा जाए भीड़ द्वारा तो मुस्लिम समाज चिंतित हो जाएगा लेकिन कोई मुस्लिम भूख से मर रहा हो, उसके खेत की फसल नष्ट...
विशुद्ध चैतन्य द्वारा इस दिन पोस्ट की गई शनिवार, 23 जून 2018

"अप्राकृतिक मौत तो अत्यंत दुखद है। किन्तु गुरूजी मोब लिंचिंग व जैसा आपने इंगित किया, अन्य मौत में कुछ फर्क तो है ही। पहली समाज की क्रूरता प्रदर्शित करती है, जो कानूनन अपराध है जबकि दूसरी समाज की उदासीनता जिसे मोरल अपराध तो कहा जा सकता है किन्तु कानूनन अपराध नहीं है।" -Abdul Basit

"Sir with all due respect...
Mje aap ye bta do....
How a person dying from hunger and A person who is healthy, going to live a life,earnig well ..is killed by a anarchist mob is same...How?????
You are violently taking his life...he was capable of all thing...
Yahi to galat hai sir ji....
Aap jaise log iss inhuman crime ko justify karne ke lie aa jate hai......what to say i mean u all had justified kathua rape case..what else can be expected...

If cow are pious ...ask ur gov . To make a law prohibiting cow slaughter
Next time give BJP vote only when they will do that
Otherwise there will be anarchy if this kind of situation will go on
Ask BJP to make law
Stop killing people in name of religion
This is inhuman and cruel thing a man can do...And stop justifying it..plz"
-Arif Khan





उपरोक्त दोनों ही यह कहना चाहते हैं कि भीड़ द्वारा की गयी हत्या और समाज द्वारा किसी को मरता हुआ छोड़ देना, दोनों में भिन्नता है | एक जघन्य अपराध है और दूसरा अपराध की श्रेणी तो आता है लेकिन वह नैतिक अपराध है यानि वह अपराध जघन्य अपराध नहीं है | मुझपर यह भी आरोप लगाया गया कि मैं भीड़ द्वारा की गयी हत्या को जस्टीफाई कर रहा हूँ |

How a person dying from hunger and A person who is healthy, going to live a life,earnig well ..is killed by a anarchist mob is same...How?????


सबसे पहले तो मैं स्पष्ट कर दूं कि मैं किताबी धार्मिक नहीं हूँ और न ही धार्मिकता या नैतिकता का ढोंग करना पसंद करता हूँ | मेरे लिए किसी भी भीड़ द्वारा की गयी किसी भी निर्दोष या दोषी की हत्या, बलात्कार....आदि सब अपराध ही है | मैं किसी एक अपराध को धार्मिकता के चश्में से और दूसरे अपराध को राष्ट्रीय कानून या संविधान की नजर से नहीं देखता | मेरे लिए धर्म, जाति या ईशनिंदा के नाम पर हत्या, बलात्कार, सार्वजनिक सम्पत्ति की क्षति, दंगा-फ़साद, लूट-पाट आदि सभी संवैधानिक, नैतिक व धार्मिक अपराध हैं | आप नैतिक अपराध और राष्ट्रीय संविधान की दृष्टि में किये गये अपराधों को अलग अलग रख सकते हैं, किसी को कम या या किसी को अधिक महत्व दे सकते हैं, लेकिन मैं नहीं |

किसी भी निर्दोष का मारा जाना मानवता पर कलंक है | हिंसक पशु भी किसी राह चलते निर्दोष को जान से नहीं मार देते यदि वे पागल या भूखे न हों | लेकिन मानव यदि नर-भक्षी हो जाए, नैतिकता या धार्मिकता के नाम पर तो शर्मनाक है | वह अपनी हवस, अपनी भूख मिटाने के लिए इंसानों का ही शिकार करने लग जाए तो यह शर्मनाक है |

कानून या संविधान


कानून या संविधान वह नियम हैं जो समाज को यह बताता है कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए | ये नियम तय करते हैं कि क्या पाप है क्या पुण्य, क्या नैतिक हैं और क्या अनैतिक, क्या अपराध है और क्या नहीं, क्या धर्म है और क्या अधर्म |  संविधान चाहे पारिवारिक हो, सामजिक हो, किसी संस्था का हो या किसी राज्य या देश का, सभी में यह सुनिश्चित किया जाता है कि अपराधियों सजा देने का अधिकार भीड़ को नहीं है | सजा केवल अधिकृत विशेषज्ञ ही दे सकते हैं और वह भी पूरी जांच परख करने के बाद |

आप पाप-पुण्य कहें या नैतिक-अनैतिक कहें या अपराध-निरपराध कहें या धर्म-अधर्म | केवल शब्दों का अंतर है, अर्थ एक ही है | धर्म वह जो समाज के लिए हितकर हो, सुखकर हो, सहयोगी हो और अधर्म है विपरीत | जब कोई समाज या भीड़ हिंसक हो जाए और वह किसी निर्दोष की हत्या पर उतारू हो जाए, तो निश्चित मानिए कि वे अपराधी हैं, अधर्मी हैं, अनैतिक हैं | फिर यह हत्या भीड़ की अनदेखी की वजह से हुई हो या जानबूझकर की गयी हो | फिर कोई भूख से मर गया हो, या कर्जों के बोझ से दबकर मर गया हो या दौड़ा दौड़ाकर, पीट पीट कर मार दिया गया हो, एक ही बात है | क्योंकि ये अधर्म है, अनैतिक है, पाप है, अपराध है |

धार्मिकों का दोगला समाज


समाज दोगला होता है विशेषकर धार्मिकों का समाज | वह अपने पाप की सजा के लिए कयामत के दिन की प्रतीक्षा करता है लेकिन दूसरों के पापों की सजा तुरंत देना चाहता है | उदाहरण के लिए ईशनिंदा के नाम पर हत्या या सजा | ईश्वर की निंदा की किसी ने, उसके लिखे किताब को क्षत्ति पहुँचाई तो सारा समाज दौड़ पड़ेगा उसे सजा देने के लिए | तब कयामत की प्रतीक्षा नहीं करेगा | तब नहीं कहेगा कि ईश्वर की निंदा की है, ईश्वर की किताब को क्षति पहुँचाई है, ईश्वर खुद उसे सजा देगा | यानि ईश्वर से ऊपर हो गया समाज जो ईश्वर का अनादर करने वाले को सजा देने निकल पड़ता है ??

दूसरा दोगलापन देखिये समाज का कि यदि अपराधी गरीब है, असहाय है, किसी राजनेता से संरक्षण प्राप्त नहीं है, तो उसे दौड़ा-दौड़ा कर पीट पीट कर मार देंगे | लेकिन यदि अपराधी आर्थिक रूप से समृद्ध है, ऊँचे पदों पर आसीन है, अच्छे रुतबे वाला है, तो वह देश भी बेचकर खा जाये तो यही न्यायप्रिय समाज उसके पीछे दुम हिलाता घूमेगा | यदि अपराधी ने सार्वजनिक रूप से घोषणा भी कर दी अपने अपराधों की, अपने ऊपर चल रहे केसों की, तब भी समाज उसकी जय जयजयकार करते हुए घूमेगा | और ऐसे लोगों में वे भी लोग होंगे, जो खुद को धर्म व नैतिकता का ठेकेदार समझते हैं, जो खुद को धर्मशास्त्रों, कानून व नैतिकता का जानकार समझते हैं |

कोई गरीब चोरी करता पकड़ा जाए तो भीड़ उसे मौत दे देगी, लेकिन यदि कोई नेता चोरी करता पकड़ा जाए तो कानून उसे सजा देगा | देगा भी या नहीं देगा उससे भी समाज को कोई सरोकार नहीं होता, वह जेल में बैठा बैठा ही चुनाव लडेगा और जीत जाएगा | और आप मुझ पर दोष लगा रहे हैं कि मैं अपराध को जस्टिफाई कर रहा हूँ ???

भीड़ द्वारा की गयी हत्या और भूख, बेरोजगारी व कर्ज से हुई आत्महत्या दोनों के लिए भीड़ ही जिम्मेदार है | भीड़ धार्मिकों की, भीड़ नैतिकता के ठेकेदारों की, भीड़ खुद को सभ्य वह शिक्षित मानने वालों की, भीड़ आर्थिक रूप से संपन्न लोगों की और भीड़ धर्म व जाति के नाम पर हत्या करने वालों की....भीड़ ही होती है | भीड़ के पास विवेक नहीं होता, भीड़ के पास अक्ल नहीं होती, वह तो केवल भीड़ है अपनी बुद्धि, सोचने समझने की शक्ति खो चुकी, मानसिक् रूप से विक्षिप्त हो चुकी भीड़ है वह बस और कुछ नहीं | फिर वह खुद को कितना ही धार्मिक दिखाने की कोशिश करे, कितना ही नैतिक दिखाने की कोशिश करे, सब व्यर्थ | क्योंकि कोई निर्दोष मारा गया भीड़ की लापरवाही या उन्माद में वह पाप ही होगा, वह अधर्म होगा |

कठुआ रेप केस धार्मिकता के आढ़ में किया गया था | वह धार्मिक ही नहीं, मानवीय रूप से भी अपराध ही था | किसी को ईशनिंदा के नाम पर मार दिया गया, किसी को कार्टून बनाने पर मार दिया, किसी को फिल्म बनाने पर मार दिया, किसी को आलोचनात्मक लेख लिखने पर मार दिया....ये सब अपराध ही हैं, अधर्म ही हैं | मैं इनमें से किसी भी हत्या को धर्मसंगत नहीं समझता और न ही धार्मिक पुस्तकों या मान्यताओं के आधार पर जस्टिफाई करूँगा |

पहले धर्म को समझ लें, पहले नैतिकता को समझ लें, पहले संविधान को समझ लें...फिर मुझपर कोई आरोप लगायें | कोई लड़की या लड़का आपस में प्रेम करें, वे अकेले में मिलें तो आपका धर्म, नैतिकता खतरे में पड़ जाते है | लेकिन कोई बैंक ही लूटकर फरार हो जाये, कोई दुनिया भर के टैक्स लगाकर आपको लुटे और उसका साथ देते समय आपका धर्म और नैतिकता खतरे में नहीं पड़ता | कोई भीड़ किसी को पीट पीट कर मार दे और मारने वाला और मरने वाला अलग अगल मजहब के हुए तो आपका धर्म और नैतिकता जाग जाता है | लेकिन आपके ही लापरवाही के कारण कोई भूख से तड़प तड़प कर मर जाता है, कोई किसान आत्महत्या कर लेता है, कोई निर्दोष बेघर हो जाता है...तब न तो आपकी नैतिकता जागती है और नहीं धर्म | न तब आपका खुदा नाराज होता है और न ही आपके समाज की नजर में कोई अपराध होता है |

मैं दोगला नहीं हूँ, मैं किसी भी कमजोर, निर्दोष, निहत्थे पर हुए अपराधों को अलग अलग नजरों से नहीं देखता | फिर अपराध असभ्यों की भीड़ करे या सभ्य धार्मिकों की भीड़....मेरे लिए दोनों ही भीड़ हैं और दोनों ही अपराधी हैं |

हाँ मैं परिस्थिति जन्य अपराधों के लिए भी समाज, धर्म व नैतिकता के ठेकेदार व सरकारों को ही दोषी मानता हूँ | किसी को अपने बच्चे या परिवार की जान बचाने के लिए चोरी करनी पड़ी या हथियार उठाने पड़े या हत्या करनी पड़ी तो मैं उसे अपराधी नहीं मानूंगा, बल्कि उस समाज को अपराधी मानूँगा जिसका वह सदस्य है | वह इस अवस्था में पहुँचा क्योंकि समाज ने उसकी सहायता नहीं की | क्योंकि सरकार ने उसकी सहायता नहीं की, उसे न्याय नहीं मिला, इसीलिए ही उसे अपराध करना पड़ा, इसीलिए वह व्यक्ति दोषी नहीं, बल्कि समाज व सरकार ही दोषी माने जायेंगे | मैं ऐसे व्यक्ति को कभी भी सजा देना पसंद नहीं करूँगा |

~विशुद्ध चैतन्य

आनंद और उत्सव है धर्म, घृणा और द्वेष नहीं



बचपन में फ़कीर या संन्यासी की रूपरेखा जो मेरे मन बस गयी थी, वह कुछ वैसा था जो सदैव प्रसन्नचित रहता है, हँसता, गाता, नाचता अपनी धुन में मगन रहता है | जब भी उनकी कोई तस्वीरें देखता तो ऐसा लगता था कि उनके जीवन में सुख ही सुख है और दुःख का उन्हें कोई अनुभव ही नहीं |

तब नहीं जानता था कि संन्यास क्या होता है और उनका जीवन कैसा होता है | माँ या पिताजी से बस यही पता चला कि संन्यासी वह होता है जो सामाजिक बंधनों से मुक्त होता है और केवल ईश्वर की आराधना व चिन्तन में लिप्त रहता है | चूँकि उन्हें समाज के सुख दुःख से कोई लेना देना नही होता, किसी तरह की कोई जिम्मेदारी नहीं होती, किसी से कोई अपेक्षा नहीं रहती, इसीलिए वे लोग हमेशा खुश रहते हैं | जबकि हम जैसे सामाजिक दायित्वों से बंधे लोगों के लिए सुख के भी पल होते हैं और दुःख के भी |

मुझे अपने जीवन में निश्चिंतता और सुख का अनुभव अपनी माँ के देहांत के बाद शायद कभी नहीं हुआ | अब हँसता भी हूँ तो लगता है दिखावा कर रहा हूँ, अब खुश भी होता हूँ, तो मन में कोई हलचल नहीं होती | बस बाहरी ओढ़ी हुई सी ख़ुशी होती है | कभी समझ नहीं पाया कि माँ के जाने के बाद ऐसा क्या हुआ कि मैं फिर दोबारा वह सुख व ख़ुशी नहीं प्राप्त कर पाया | मुझे याद है वह अंतिम ख़ुशी जो मैंने नौ वर्ष की आयु में पायी थी वह है दिवाली मनाना | उस दिवाली के बाद फिर कभी कोई दिवाली नहीं आयी जो मुझे ख़ुशी दे पायी | क्योंकि दिवाली के बाद आयी जनवरी ने माँ को हमेशा के लिए मुझसे दूर कर दिया था | माँ के बाद कोई मेरा अपना नहीं बन पाया, माँ के बाद कोई इतना विश्वसनीय नहीं बन पाया जिससे में खुलकर मिल सकूं |

कई नौकरियाँ बदली, कई तरह के काम किये, कई मित्र बनाए...समय के साथ सब छूटते चले गये | मतलब की नौकरी, मतलब के मित्र, मतलब के सम्बन्ध स्थाई नहीं होते यह बहुत देर से समझ में आया | माँ से बेहतर अपना और कोई नहीं यह भी समझ में आया |

बचपन में सोचा करता था कि जब मैं विवाह योग्य हो जाऊँगा तो शायद दुबारा कोई मुझे अपना मिल जायेगा...लेकिन नहीं मिला | समझ में आया विवाह प्रेम पर नहीं, दौलत और शोहरत पर आधारित होता या फिर स्वार्थ पर | स्वार्थी तो मैं भी हूँ लेकिन इतना स्वार्थी नहीं बन पाया कि विवाह योग्य कोई साथी खोज पाऊँ | या फिर शायद इतनी दौलत नहीं इकट्ठी कर पाया कि विवाहित हो पाऊँ | फिर बरसों बाद समझ में आया कि विवाह शुद्ध व्यापार है | प्रेम खरीदने की योग्यता होनी चाहिए प्रेमिका मिल जायेगी | पत्नी खरीदने की योग्यता होनी चाहिए पत्नी मिल जायेगी, पति खरीदने की योग्यता होनी चाहिए पति मिल जाएगा.....यानी हर चीज बिकाऊ है और हर चीज खरीदी और बेचीं जा सकती हैं, व्यक्तिगत सम्बन्धी तक | और जो मेरे साथी विवाहित हुए, उनके मुरझाये चेहरे देखकर विवाह से मन घबरा गया |

फिर संन्यास लिया सोचा था कि संन्यासियों के बीच रहूँगा शायद मैं बदल जाऊँ | लेकिन नहीं बदल पाया क्योंकि आज भी मैं वही हूँ जो कल था | मैं संन्यासियों की तरह समाज के दुखों को भूलकर खुश नहीं हो पाया | 'मैं सुखी तो जग सुखी' के सिद्धांत को नहीं अपना पाया | लेकिन समझ में आया कि सबका दुःख उनका अपना है दूसरों का नहीं | कोई अमीर किसी गरीब की चिंता नहीं कर रहा होता | कोई हिन्दू किसी मुस्लिम की चिंता नहीं कर रहा होता | कोई मुस्लिम किसी हिन्दू की चिंता नहीं कर रहा होता | कोई कांग्रेसी कभी भाजपाइयों की चिंता नहीं करता और कोई भाजपाई कभी कांग्रेसियों की चिंता नहीं करता |

कोई मुस्लिम मारा जाए भीड़ द्वारा तो मुस्लिम समाज चिंतित हो जाएगा लेकिन कोई मुस्लिम भूख से मर रहा हो, उसके खेत की फसल नष्ट हो जाने का कारण दुनिया भर के कर्जों में दब गया हो, तब मुस्लिम समाज आँखे मूँद लेगा | इसी प्रकार कोई हिन्दू मारा जाए मुस्लिम भीड़ के हाथों तो हिंदुत्व ही खतरे में पड़ जाएगा | सारे हिन्दू संगठन दिन भर उस हिन्दू का शोक मनाएंगे मुस्लिमों को कोसेंगे | लेकिन जब कोई हिन्दू भूख से मर जाये, गरीबी से मर जाए, उसकी जमीन कोई भूमाफिया छीन ले, किसान आत्महत्या कर ले, आदिवासी बेघर हो जाएँ....तब हिंदुत्व खतरे में नहीं पड़ेगा, तब किसी हिन्दू संगठन की सेहत में कोई फर्क नहीं पड़ेगा | उनका व्यव्हार कुछ ऐसा होगा, जैसे कुछ हुआ ही नहीं |

यानि ये शोक मानना, ये विरोध जताना भी साम्प्रदायिक है मानवीय नहीं | मौका मिलना चाहिए दुसरे सम्प्रदायों को बुरा दिखाने का, लेकिन अपनी बुराइयाँ दिखाई नहीं देगी इन्हें | इन्हें दिखाई नहीं देगा कि इनके अपने दड़बे में ही इनके अपनों के कारण ही कितने लोग शोषित पीड़ित व दुखी हैं....लेकिन दूसरे दड़बे के हाथों किसी पर अत्याचार हो जाये तो आसमान सर पर उठाये फिरने लगेंगे | और ढोंग करेंगे मानवता का, इन्सनियता का | वास्तविकता यह है कि न तो धर्म बचा है और न इंसानियत | अब तो केवल ढोंग ही बचा है |

यह सब देखकर मैं खुश नहीं हो पाता कभी भी | यह सब देखकर नाच नहीं पाता कभी भी, या सब देखकर गा नहीं पाता कभी भी | लेकिन कहते हैं न, सुख और दुःख सब अपने ही भीतर है ? तो भीतर जाने पर पाता हूँ कि मैं सबसे सुखी इंसान हूँ | मुझे दूसरों के दुखों को देखकर दुखी होने की आवश्यकता नहीं है | जो समाज खुद दुखों को गले लगाए रखना चाहता हो, जो समाज खुद को दुखों से मुक्त न करना चाहता हो, उनके दुखों को लेकर मैं भला क्यों दुखी होता हूँ ? जानबूझकर सोये हुए को नहीं जगाया जा सकता, जानबुझकर दुखी हुए लोगों को सुख नहीं पहुँचाया जा सकता...इसलिए अब बदलूँगा स्वयं को | अब अपने ही सुखों में सुखी रहूँगा, दूसरों के दुखों में दुखी रहने का मुझे कोई अधिकार नहीं |

वास्तव में संन्यासी होने का अर्थ ही समाज के ढोंग, पाखण्ड आडम्बरों से अलग करके स्वयं को सुखी व प्रसन्न रखें का उपाय खोजना | और जो ऊपर उठने का अभिलाषी हो उसे सही राह दिखाना | न कि उन समस्याओं को लेकर दुखी होना, जिसे आप सुलझा नहीं सकते, जिसके लिए आप जिम्मेदार नहीं, जिसका आप्स्से कोई सम्बन्ध नहीं |

~विशुद्ध चैतन्य

23 जून 2018

सावधान ! धर्म खतरे में है !!!



अक्सर हम सुनते हैं कि धर्म खतरे में हैं | गली मोहल्लों से लेकर विश्वस्तर पर धर्म रक्षक बने लुच्चे लफंगों की सेनाएं तैनात हो रहीं हैं | हर किताबी रट्टामार धार्मिक इस बात पर बहुत ही गंभीरता से विश्वास करता है कि धर्म खतरे में हैं और उसकी रक्षा करने के लिए लठैतों, छुरेबाजों, तलवारबाजों, कट्टेबाजों और असाल्ट राइफलधारकों की सेनाओं की आवश्यकता है | इसलिए वह इन सड़क छाप लफंगों की सेनाओं को दोनों टाँगे उठा नतमस्तक होकर नमन करता है |

आये दिन गुंडे बदमाश और बेरोजगार लफंगे धर्म की रक्षा के नाम पर किसी न किसी निर्दोष निहत्थे की हत्या कर देते हैं या उसे बुरी तरह घायल कर देते हैं | कहीं गौ रक्षा के नाम पर हत्याएं हो रहीं हैं तो कहीं इस्लाम और हिंदुत्व की रक्षा के नाम पर | कहीं धर्म की रक्षा के लिए लडकियाँ उठा ली जाती हैं तो कहीं बलात्कार करके मार दिया दिया जाता है.....और ये सारे काम धार्मिक काम धर्म के रक्षकों द्वारा बड़ी श्रृद्धा से किया जा रहा है |

यह और बात है कि मेरे जैसे मंदबुद्धि लोगों की समझ में यह बात नहीं आती और कभी भी नहीं मानते कि धर्म खतरे में हैं....लेकिन मैं भी अब मानने लगा हूँ | क्योंकि अब स्पष्ट दिखने लगा है कि धर्म वास्तव में खतरे में हैं | अब प्रमाणित हो चुका है कि धर्म वास्तव में खतरे में हैं |

 

क्या धर्म खतरे में है ?

 

बिलकुल धर्म खतरे में है अब कोई संदेह नहीं रह गया | बस कुछ लोग समझ नहीं पा रहे कि धर्म खतरे में है, लेकिन धर्म वास्तव में खतरे में है | केवल भारत में ही नहीं, सम्पूर्ण विश्व में धर्म खतरे में है |

हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन....जैसे सम्प्रदायों, रिलीजन्स की बात नहीं कर रहा |  मैं केवल धर्म की ही बात कर रहा हूँ और उस धर्म की बात कर रहा हूँ जिसे मैं सनातन धर्म कहता हूँ, जिसे मैं प्राकृतिक व ईश्वर प्रदत्त धर्म कहता हूँ | मैं किसी मानव निर्मित या किसी व्यक्ति-विशेष या किताब-विशेष पर आधारित धर्म की बात नहीं कर रहा | मैं तो उस धर्म की बात कर रहा हूँ जिसे लोग मानवता कहते हैं, इंसानियत कहते हैं, Humanism कहते हैं |

 

जो सनातन है वह खतरे में कैसे पड़ सकता है ?


पड़ सकता है नहीं, पड़ चुका है | अब समाज, परिवार व माता-पिता अपने बच्चों को इंसान नहीं बनाते, बल्कि हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई, कांग्रेसी, भाजपाई, सपाई, बसपाई बनाना पसंद करते हैं | अब माता-पिता स्वप्न नहीं देखते कि उनके बच्चे बड़े होकर इन्सान बन जाएँ, बल्कि अब सपने देखते हैं कि उनके बच्चे बड़े होकर डॉक्टर बने, इंजिनियर बनें, आईएएस बने, आइपीएस बने | अब माता पिता को बुरा नहीं लगता कि उनके बच्चे डिग्री लेकर लुच्चों लफंगों की सेना में शामिल होकर गुंडा-गर्दी करता फिरे, मोब-लिंचिंग करता फिरे, धूर्त-लम्पट नेताओं के तलुए चाटता फिरे, छुरा-कट्टा लेकर सड़कों पर आवारगर्दी करता फिरे...बल्कि अब उन्हें गर्व होता है कि उनका बच्चा यह सब करके धर्म की रक्षा कर रहा है |

और ऐसी मानसिकता का विस्तार होना सनातन धर्म को भी खतरे में डाल देता है | क्योंकि जब मानव ही सनातन धर्म से विमुख हो जायेगा और दड़बों को धर्म समझने लगेगा, तो धर्म का पतन निश्चित है | अब आपको न तो इस्लामिक समाज में धर्म दिखाई देगा और न ही हिन्दू समाज में, न ही साधू-समाज में, न ही बाल्मीकि, अम्बेडकर, मोदी या किसी और समाज में या दड़बे में धर्म दिखेगा | न तो मंदिरों में आपको धर्म दिखेगा, न ही मस्जिदों में आपको धर्म दिखेगा, न स्कूलों में, न कॉलेजों में.....यानि धर्म पुर्णतः बहिष्कृत हो चुका है समाज में और साम्प्रादायिकता को धर्म का नाम दे दिया गया |

अब केवल दिखावे के धार्मिक दिखेंगे, अब केवल दिखावे के धार्मिक कर्मकांड जैसे कि दान, सेवा, परोपकार, कमजोर व असहायों की निःस्वार्थ सहायता, शालीनता, सभ्य शालीनता पूर्वक बात करने की कला, अशिष्टता से परहेज, खुद खाने से पहले भूखे को खिलाना.....आदि इत्यादि सब व्यावहारिकता में लुप्त ही चुके हैं और जो थोड़ा बहुत दिख भी कही रहा है, तो वह भी दिखावा ही है | बिलकुल वैसे ही जैसे बड़े तोंद वाले बेडौल महापुरुषों का योग के प्रचार के लिए कैमरे के सामने योग करना | यानि जो कुछ भी किया जा रहा है वह भीतरी आवेग से नहीं, धार्मिक परम्परा मानकर किया जा रहा है |

यही कारण है कि अब धर्म की शिक्षा सभ्य व शालीन विद्वान नहीं देते, न ही स्कूलों, विश्वविद्यालयों में सिखाया जाता है | बल्कि सड़क छाप लुच्चे लफंगों को कट्टा, तमंचा, लाठी, बन्दूक थमाकर धर्म की रक्षा की जिम्मेदारी सौंप देते हैं | इन लुच्चे लफंगों द्वारा किसी निर्दोष की हत्या कर देने पर न उनके माता-पिता शर्मिंदा होते हैं और न ही समाज या धार्मिक लोग शमिन्दा होते हैं | क्योंकि उनका धर्म तो किताबों में सुरक्षित है तो वे जानते हैं कि उनका धर्म खतरे में नहीं है | सारे देश में लोग आपस में मार काट-करने लगें, तब भी ये धार्मिक यही मानेंगे कि उनका धर्म खतरे में नहीं है...वे सही हैं | क्योंकि उनका धर्म किताबी है जो कभी व्यावहारिक नहीं हो सकता और जो व्यवहारिक ही नहीं है, वह खतरे में भला कैसे पड़ सकता है ? जो योद्धा अपने घर से बाहर ही न निकले, जो तलवार अपने म्यान से ही न निकले, भला वह खतरे में कैसे पड़ सकता है ?

 

धर्म क्या है और अधर्म क्या है ?


लेकिन मैं मानने लगा हूँ कि धर्म खतरे में है | क्योंकि धर्म पारम्परिक कर्मकाण्ड नहीं है | पूजा-पाठ, नमाज, तिलक, टोपी, घंटे-घड़ियाल, आरती-कीर्तन धर्म नहीं हैं | धर्म है परोपकार, सेवा, सहयोग, आपसी सद्भाव, प्रेम, करुणा, समाज के हितार्थ कार्य करना, अपने गाँव, मोहल्ले के हितार्थ कार्य करना, राष्ट्र व नागरिकों के हितार्थ कार्य करना | और यह सब करते हुए, स्वयं को प्रसन्न व स्वस्थ रखने के समस्त उपाय करना, अपने सामर्थ्यानुसार उपलब्ध भोगों का उपभोग करना, नाचना, गाना...उत्सव मनाना ये सब धर्म हैं |

दूसरों को कष्ट देना, दूसरों की सम्पत्ति छीनना, दूसरों पर अत्याचार करना, दूसरों के सुख में बाधा डालना, दूसरों के प्रेम में विष घोलना, समाज में सांप्रदायिक वैमनस्यता पैदा करना, निहत्थे, निर्दोषों की हत्याएं करना, गाली-गलौज करना, अशिष्टता से बात करना....ये सब अधर्म हैं |

 

सप्रमाण समझिये कि धर्म कैसे खतरे में हैं


भारत में शायद ही कोई होगा जो खुद को अधार्मिक कहता हो | नास्तिक भी खुद को अधार्मिक नहीं कह सकता क्योंकि नास्तिक भी कहीं न कहीं कोई न कोई परोपकार के कार्य कर ही देता है| और परोपकार धर्म है | तो जब सवा अरब से अधिक की आबादी धार्मिक है चाहे वह किसी भी पंथ, मत, संप्रदाय से सम्बंधित हो, लेकिन स्वयं को धार्मिक तो मानता ही | इनमें से कई लोग ऐसे भी होंगे जो खुद को हिन्दू नहीं मानता, मुस्लिम नहीं मानता, सिख नहीं मानता लेकिन इन्सान तो मानता ही है | और इंसानियत धर्म है क्योंकि इसका विपरीत हैवानियत अधर्म है |

लेकिन इतनी बड़ी संख्या में धार्मिकों के रहते हुए भी भारत में धर्म लुप्त होने के कागार पर पहुँच जाना गंभीर चिंता का विषय है

 

प्रथम प्रमाण:


एक खबर पढ़ी मैंने; 'तेजी से महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर भारत में तकरीबन 19 करोड़ लोग भूखे पेट सोने को मजबूर हैंं और प्रतिदिन 3000 बच्चे भूख से मर जाते हैं। यह जानकारी ग्लोबल हंगर इंडैक्स के आंकड़ों से मिली है। हालांकि भारत का स्थान पिछले साल के मुकाबले ग्लोबल हंगर इंडैक्स में 63 के मुकाबले 53वां है। मंगल पर अपना यान भेजने वाले देश भारत में भूख के खिलाफ जंग सबसे बड़ी चुनौती है। बच्चों में कुपोषण और उनकी मृत्यु दर का स्तर बेहद चिंताजनक है। यहां तक कि नेपाल और श्रीलंका की स्थिति भारत से बेहतर है जबकि पाकिस्तान और बंगलादेश जैसे पिछड़े देशों में स्थिति और भी बुरी है।' साभार: भोपाल समाचार

क्या कभी आपने सोचा कि लगभग हर सम्प्रदाय यह मानता है कि उनका सम्प्रदाय धर्म को महत्व देता है, लेकिन फिर भारत में ही 19 करोड़ लोग भूखे पेट क्यों सोते हैं ? क्यों प्रतिदिन तीन हज़ार बच्चे भूख से मर जाते हैं ?

चलिए मान भी लें कि ये आँकड़े झूठे हो सकते हैं...तीन हज़ार नहीं, हज़ार बच्चे ही रोज मरते हैं...तो भी क्यों मरते हैं ? क्या किताबी धार्मिकों की किताबों में यह नहीं लिखा है कि कोई पड़ोसी भूखा रह जाए और आपके गले से निवाला उतर जाए तो इससे बड़ा अधर्म और कुछ नहीं ? क्या सभी धार्मिकों के समाज में भूखे को भोजन, प्यासे को पानी पिलाना सबसे बड़ा पुण्य नहीं माना गया ?

कितने धार्मिक संगठनों ने भूखे को भोजन देने के लिए आन्दोलन किये और भूखों तक भोजन पहुँचाया ? कितने धर्मरक्षक तलवार की बजाय, भोजन की थाल और पानी की बोतल थामें भूखों के घर तक पहुँचे ? कितने धार्मिकों ने राजनैतिक दबाव बनाया कि भूखों को पहले भोजन दो, अच्छी चिकित्सीय सेवायें उपलब्ध करवाओ, उन्हें आत्मनिर्भर होने में सहयोग करो उसके बाद जीडीपी का ग्राफ दिखाना ? क्या कभी तनिक भी शर्म आयी खुद को धार्मिक कहते हुए जबकि धार्मिक कोई कार्य नहीं कर रहे केवल दिखावा कर रहे हो ?

जो कट्टा-तमंचा लिए धर्म की रक्षा के लिए निकले हैं, क्या उन मूर्खों को किसी ने बताया कि कट्टे तमंचों से नहीं सेवाभाव व सहयोग से धर्म की रक्षा होती है | दड़बा हिन्दू हो या मुस्लिम या कोई और, सभी में बेबस और लाचार मिल जाते हैं...लेकिन क्यों ? जब आप खुद धार्मिक नहीं हो पाए तो फिर ये धार्मिकता का ढोंग क्यों ?

दो चार लोग हर समाज में ऐसे मिल जाते हैं, जो गरीबों की सहायता के लिए तत्पर रहते हैं, उन्हीं की सहायता क्यों नहीं कर देते यदि खुद नहीं पहुँच पाते किसी गरीब के पास तो ??? चलिए माना कि आप कट्टर धार्मिक हैं अपने धर्म के अलावा किसी और धर्म को बर्दाश्त नहीं कर सकते...अरे तो कम से कम अपने ही धर्म नाम के दड़बे में जो बेबस और लाचार भरे पड़े हैं उनकी ही सहायता कर दो और मरने दो दूसरे दडबों के बेबस और लाचारों को | अरे कम से कम अपने ही समुदाय, सम्प्रदाय की सहायता तो करो ??

 

द्वितीय प्रमाण:


सभी सम्प्रदायों के धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि अधर्मियों का साथ मत दो, अत्याचारियों का साथ मत दो, अशिष्ट व असभ्य लोगों को सही राह दिखाओ या उनका बहिष्कार करो | लेकिन क्या धार्मिक लोग ऐसा कर रहे हैं ?

यदि अधर्मियों, अत्याचारियों का सहयोग नहीं कर रहे होते धार्मिक लोग, तो क्या अधर्मी आज सड़कों से लेकर ससंद तक उत्पात कर रहे होते ? क्या जनता को लूटकर कोई विदेश भाग सकता था ? क्या कोई जनता पर दुनिया भर के टैक्स थोपकर चैन से रह सकता था ? क्या कोई जनता को असहाय और लाचार बनाने के अपने उद्देश्य में सफल हो सकता था ? क्या धर्म की रक्षा के नाम पर लुच्चे-लफंगों का गिरोह किसी निर्दोष की हत्या कर सकता था ?

लेकिन ऐसा हो रहा है क्योंकि समाज धर्म से विमुख हो गया है | अब दडबों को धर्म समझ बैठा है समाज, अब नेताओं, बाबाओं, राजनैतिक व सांप्रदायिक, जातिवादी पार्टियों को धर्म समझ बैठा है | अब इंसान होना महत्वपूर्ण नहीं रह गया, अब हिन्दू होना, मुसलमान होना, काँग्रेसी होना, भाजपाई होना, संघी होना, बजरंगी होना धर्म हो गया | और चूँकि दड़बों को धर्म मान लिया गया, इसीलिए इन दडबों की सुरक्षा के लिए लुच्चे लफंगों की सेनाओं की आवश्यकता पड़ गयी | वरना सवा सौ करोड़ की जनसँख्या क्या कम है इन लुच्चे लफंगों से निपटने के लिए ? क्या सवा सौ करोड़ की जनसँख्या क्या कम है इन धूर्त, जुमलेबाज, लुटेरे नेताओं को उनकी औकात बता देने के लिए ???

लेकिन दुर्भाग्य से जनता ही धर्म से विमुख हो गयी और यही कारण है कि कुछ मुट्ठीभर बदमाश पुरे देश को गुलाम बना कर बैठ गये | कुछ मुट्ठीभर लुटेरे पुरे देश को लूटकर मालामाल हो गये और जनता अपनी किस्मत को कोस रही है |

 

तृतीय प्रमाण:


क्या सभी सम्प्रदायों की धार्मिक पुस्तकों में शिक्षा के महत्व को नहीं स्वीकारा गया है ? क्या शिक्षा का प्रसार प्रसार करना सभी धार्मिकों के प्रमुख कर्तव्यों में से एक नहीं है ?

फिर शैक्षणिक संस्थानों की दुर्गति क्यों हो रही है ?

एनडीटीवी ने एक सर्वे में यह खुलासा किया है कि भारत में अधिकांश सरकारी स्कूलों में शौचालयों और पीने के पानी की बुनियादी सुविधाओं की कमी है। शिक्षा के अधिकार (आरटीई) के कार्यान्वयन पर एनडीटीवी ने भारत के 13 राज्यों में 780 सरकारी स्कूलों का सर्वेक्षण किया। परिणाम बहुत शर्मनाक था उनमें से 63 प्रतिशत स्कूलों में कोई खेल का मैदान नहीं था। सर्वे किए गए स्कूलों में से एक तिहाई से अधिक स्कूलों की स्थिति बेहद खराब थी। ऐसी स्थित में अगर कोई छात्र शौचालय जाना चाहता है तो वह घर वापस चला जाता है। एनडीटीवी चैनल ने शौचालय की कमी को छात्राओं द्वारा अधिक मात्रा में स्कूल छोड़ने का मुख्य कारण बताया। स्थित इतनी खराब थी की 80% से अधिक स्कूलों में उम्र के अनुसार छात्रों का प्रवेश नहीं था।

शिक्षा का अधिकार, अधिनियम (आरटीई) प्राथमिक शिक्षा पूरी होने तक बच्चों को मुफ्त और आवश्यक शिक्षा का अधिकार प्रदान करता है। यह अधिनियम छात्र शिक्षक अनुपात (पीटीआर) के साथ-साथ स्कूलों की इमारतों, बुनियादी ढाचों, स्कूल के कामकाज के दिनों, शिक्षकों के काम करने के घंटों, प्रशिक्षित शिक्षकों की नियुक्ति को भी निर्दिष्ट करता है।

बहुत से सरकारी स्कूलों को लंबे समय से पुनःनिर्मित नहीं किया गया है। कभी-कभी छात्रों को कक्षा के बाहर फर्श पर बैठने के लिए कहा जाता है क्योंकि स्कूल की छत किसी भी समय गिर सकती है। साभार: Maps of India

क्या धार्मिकों ने कभी शिक्षा पर प्रश्न उठाया ? क्या कभी धार्मिकों ने सरकार पर दबाव बनाया कि उनके बच्चों को उचित शिक्षा मिले वह भी बच्चों के स्वास्थ्य को हानि पहुँचाये बिना ?

शायद नहीं ! क्योंकि आप लोगों के लिए ये धर्म नहीं है | धर्म तो है हिन्दू-मुस्लिम खेलना, ब्राह्मण-दलित खेलना.....और मेरी नजर में ये केवल साम्प्रदायिकता है धर्म नहीं | धर्म हिन्दू-मुस्लिम में नहीं बटा हुआ है, धर्म केवल धर्म ही होता है और सार्वभौमिक होता है | हिन्दू हो या मुस्लिम  या कोई और सम्प्रदाय, सभी के बच्चों को शिक्षा दिलाना धर्म है | सभी के बच्चों के स्वास्थ्य व सुरक्षा का ध्यान रखना धर्म है |

तो समाज धर्म से विमुख हो गया और साम्प्रदायिकता को धर्म मान बैठा, इसीलिए ही मैं कह रहा हूँ कि धर्म खतरे में हैं | धर्म वह नहीं जो ये लुच्छे लफंगों के नेता और ठेकेदार समझा रहे हैं | ये छुरेबाज, कट्टेबाज, बेरोजगार लफंगे और उनके ठेकेदार सिखायेंगे हमें धर्म ???

यदि ऐसी स्थिति आ गयी है कि अब इन लुच्चे लफंगों से धर्म सीखना पड़े, तो बेहतर है कि सारा समाज ही आत्महत्या कर ले | यदि इनके बहकावे में आकर पढ़े-लिखे भी गुंडागर्दी करने लगें, साम्प्रदायिक वैमनस्यता फैलाने लगें, तो बेहतर है कि समाज खुद को धार्मिक कहना ही छोड़ दे |

तो शायद अब आप समझ गये होंगे कि धर्म वास्तव में खतरे में हैं क्योंकि समाज धर्म से विमुख हो गया और साम्प्रदायिकता को धर्म के रूप में धारण कर चुका है | और यही स्थिति रही, तो बहुत ही जल्द धर्म लुप्त जाएगा और उसके साथ ही लुप्त हो जाएगा इंसान और इन्सानियत |

~विशुद्ध चैतन्य

22 जून 2018

गुरुस्साक्षात्परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः


गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुस्साक्षात्परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥१॥
अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः॥२॥
अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरं।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ॥३॥
अनेकजन्मसंप्राप्तकर्मबन्धविदाहिने
आत्मज्ञानप्रदानेन तस्मै श्री गुरवे नमः ॥४॥
मन्नाथः श्रीजगन्नाथो मद्गुरुः श्रीजगद्गुरुः।
ममात्मासर्वभूतात्मा तस्मै श्री गुरवे नमः ॥५॥
बर्ह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिम्
द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम् ।
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं
भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुं तं नमामि ॥६॥

गुरु का स्थान माता-पिता से भी ऊपर माना गया है | गुरु का अर्थ होता है अन्धकार से मुक्त कर उजाले की ओर ले जाने वाला | सौभाग्यशाली होते हैं वे गुरु जो अपने दायित्व को निभा पाने में सफल होते हैं | सामान्यतः गुरु बहुत ही कम लोग बन पाते हैं | अधिकांश तो सरकारी नौकर बनकर रह जाते हैं या फिर ट्यूटर जो केवल आजीविका के लिए शिक्षण, अध्यापन का क्षेत्र चुनते हैं | उनके लिए शिक्षण कार्य केवल खानापूर्ति होती है, सिलेबस रटा देना भर उनका दायित्व होता है और महीने के अंत में अपनी सेलेरी उठा लेना, बस हो गये शिक्षक |


गुरु और शिक्षक में अंतर होता है | शिक्षक जब किताबी ज्ञान से ऊपर उठकर व्यावहारिक ज्ञान देने लग जाये, जब शिष्यों पर कुछ थोपने की बजाये, उन्हीं के भीतर छिपे गुणों को उजागर कर शिष्यों को आत्मज्ञान करवाए, तब वह गुरु कहलाने योग्य होता है | जब तक वह पाठ्यक्रमों को थोपता है, रटाता है तब तक वह शिक्षक है, अध्यापक है | लेकिन जब वह शिष्यों के लिए प्रेरणा बन जाए, जब वह शिष्यों के लिए आदर्श बन जाए, जब वह शिष्यों के दिलों में समा जाए तब वह गुरु है |

ऐसा ही एक शिक्षक जो गुरु बन गया उनसे सम्बंधित के समाचार प्रकाश में आया | तमिलनाडु के वेल्लियागारम सरकारी स्कूल का एक 28 वर्षीय शिक्षक भगवान् बच्चों को इतना प्रिय हो गया, कि जब उनके स्थानान्तरण का आदेश आया तो बच्चों ने उत्पात मचा दिया | बच्चे शिक्षक से लिपट गये कि मत जाओ हमें छोड़कर | कुछ उनके पैर पड़ने लगे कि मत जाओ | रोना धोना मच गया स्कूल में | बात इतनी बढ़ गयी कि बच्चों के परिजन भी पहुँच गये और उन्हें भी जब पता चला कि शिक्षक का स्थानान्तरण हो गया है, तो वे भी रोना धोना शुरू कर दिए | अंत में स्कूल के प्रिसिपल को ट्रांसफर रुकवाने के अपील भेजनी पड़ी |

बच्चों का कहना था कि पुरे स्कूल में वही एक शिक्षक थे जो बच्चों के लिए हर समय उपलब्ध रहते थे | बच्चे यदि रात में भी कोई प्रश्न या उलझन लेकर पहुँचते तो वे नाराज नहीं होते थे, बल्कि प्रेम से समझाते थे | बच्चे उनसे किसी भी विषय में प्रश्न कर सकते थे और कभी भी....यानि वे चौबीस घंटे उनके लिए उपलब्ध थे | वे किसी सरकारी बाबू की तरह नौ से पांच की ड्यूटी नहीं कर रहे थे, वे वास्तव में उनके लिए सरकारी शिक्षक से गुरु हो चुके थे |

सौभाग्यशाली हैं वे बच्चे जिन्हें भगवान् जैसा गुरु मिला | काश हर सरकारी स्कूल के बच्चों को ऐसा ही गुरु मिले यही प्रार्थना है ईश्वर से |

~विशुद्ध चैतन्य


 ‘To Sir, with Love’, A heartwarming incident in Tamil Nadu

 

Most of us would have read a very famous Novel, ‘To Sir, With Love’, an autobiography by E. R. Braithwaite. The novel was based on true incidents of his life where Braithwaite takes a job of a teacher and how he transforms the most stubborn students in his class to a well mannered civilized people. Although the novel takes a different turn later, here is a partly similar story from Tamil Nadu which has shown the deep affection and respect towards a teacher from his students.

For these innocent students, their teacher Bhagwan is their inspiration and motivation. This young 28-year-old teacher was getting ready to walk out of the gates of government high school in Velliagaram, Tamil Nadu. But he was stopped with hundreds of children who hugged him and pleaded him not to leave the school. These young kids started crying, weeping and pleading him not to go out. All this happened because of a transfer order was given to teacher Bhagwan.


Bhagwan who was teaching English from Class 6 to 10th was favourite to all his students. According to the students, he took keen interest to teach his students and was very supportive in all aspects. He was always there to clear doubts and encouraged them in every way.

“Many of us were not comfortable with English but with his encouragement, we were able to improve. He was always available to clear doubts at any time of the day and we could call him even late in the evenings after the special classes,” said Tamilarasan, a student. 

“We don’t want him to be transferred. He has been one of the most supportive staff members and has been like a brother to many of us,” said Nithya, a student. Not every teacher can boast of such love from students. “But then, not all teachers are Bhagawan Sir,” say his students. In a matter of four years, the teacher has formed long-lasting friendships with his students, comforting the teens as brother, ally and guide (Times Report).
 
Bhagwan not just taught what was in the syllabus, but he took interest to teach us GK, social service, developing skills and prepare for competitive exams and focused on employment-oriented education. He helped us to visit museums and learn new things which we had never seen before said another student.
 
Looking at the plight of students, the parents also joined the chorus and requested the education department to cancel his transfer order. The children even protested by not attending the classes for a day and demanded the teacher be brought back.

Principal A Aravind said that he had submitted a representation to officials of the education department based on the requests by parents and students. “We have requested the department if there is a possibility of retaining the teacher. He is one of the best teachers we have, completely involving himself in teaching students. During special classes that would go beyond school hours, he would help in arranging food for students and had been overall very friendly,” he said. (Times Report).

The teacher Bhagwan said, the children were hugging me and crying, they even started falling on my feet, refusing to let me go, watching this, even I broke down and took them to a hall and consoled them that I would return after few days.

courtesy: postcard.news

21 जून 2018

गरीब क्यों रह जाते हैं गरीब जब कि अमीर और अमीर होते जाते हैं ?



इसका प्रमुख कारण है गरीब के मन में बचपन से बैठा दी गयी यह बात कि वह गरीब है, और उसे अमीर होने का अधिकार नहीं | उसे सपने में भी नहीं सोचना चाहिए कि वह अमीर हो सकता है |

चेतन भगत का एक भाषण सुन रहा था अभी दो तीन दिन पहले | उसमें बहुत ही अच्छी बात कही उन्होंने कि भारत में एक शब्द प्रचलित है 'औकात' ! आम बोलचाल में सबसे अधिक प्रयोग किया जाने वाला शब्द है यह शायद | अक्सर कहा जाता है कि अपनी औकात में रहो, या अपनी औकात देखकर बात करो....आदि | और यही औकात ऐसी हद बना दी गयी है कि कोई उससे ऊपर उठने की सोच भी नहीं सकता | और यदि किसी ने उठने की कोशिश की तो उसे औकात बता दी जाती है |

जिस दिन भी व्यक्ति अपनी औकात से ऊपर सोचने की क्षमता विकसित कर लेता है, फिर वह सीमाओं में नहीं बंधा रहता फिर वह ऊँचाइयों को छूने लगता है | दुनिया में कई गरीब ऐसे भी रहे, जो देश के राष्ट्राध्यक्ष बन गये | कई गरीब ऐसे भी रहे, जो बड़े बड़े बिजनेसमेन बन गये | क्योंकि वे औकात की सीमा से बाहर निकलने में समर्थ हुए |

दूसरा प्रमुख कारण है गरीब की सहायता करने जाने का मतलब यह हो जाता है कि उन्हें बैठे बिठाए खिलाते रहो | उदाहरण के लिए मैंने गाँव के लोगों को बुलाया और कहा कि हम सब एक आपसी सहयोग योजना बनाते हैं और सब मिलकर किसी एक घर की सहायता करते हैं | उसके बाद दुसरे घर की और फिर तीसरे घर की | हर महीने सब लोग मिलकर कुछ न कुछ रूपये जोड़ेंगे और फिर किसी एक घर की सहायता करने की कोशिश करेंगे.....मैंने देखा कि किसी को भी मेरी बात रास नहीं आयी | वे सब एक ही रट लगाये हुए थे कि सरकार से हमें पेंशन दिलवा दो, बेटी की शादी के लिए अनुदान दिलवा दो.....मैंने सबको विदा किया और दोबारा फिर कभी ग्रामीणों को सलाह देने की कोशिश नहीं की |

आप देखेंगे कि दुनिया में जितने भी लोग अमीर हुए हैं, जितने भी लोग समृद्ध हुए हैं, वे गरीबों की चिंता में नहीं घुल रहे होते | वे केवल उन लोगों के साथ उठना बैठना पसंद करते हैं जो समृद्ध हैं और दुखड़ा रोते नहीं फिरते | बड़े बड़े साधू-संत हों या व्यापारी या राजनेता, सभी गरीबों से दूरी ही बनाये रहते हैं | क्योंकि गरीब के पास जाने के मतलब ही होता है जो कुछ कमाया है वह सब उनमें बाँट दो....गरीब इसी आस में आपसे मिलता है कि आपके पास तो बहुत है, हमें कुछ दे दो | गरीब कभी भी यह नहीं सोचता कि उसे स्वयं ऊपर उठने की कोशिश करनी है | जो आज अमीर हैं वे भी कभी गरीब थे, उनके पुरखे कभी गरीब थे लेकिन अपनी मेहनत व लगन से वे अमीर हुए | इसलिए नहीं कि अपनी कमाई गरीबों में बाँटते फिरें |

मैं स्वयं अनुभव करता हूँ कि गरीब को चमत्कारी बाबाओं, देवताओं से ही संतुष्टि मिलती है | उन्हें जागरूक करने का प्रयत्न करने वाला साधू संत रास नहीं आता | ओशो ने भी एक समय बाद गरीबों से हमेशा के लिए दूरी बना ली थी | क्योंकि उन्हें भी समझ में आ गया था कि आध्यत्मिक ज्ञान इनकी समझ में नहीं आएगा | इनकी समझ में रोटी और पैसा देने दिलाने वाला बाबा या भगवान् ही समझ में आएगा | और जब तक गरीब खुद को आत्मनिर्भर करने की योजना पर काम नहीं शुरू करता, जब तक वह झूठे आश्वासन और दिलासा देने वाले नेताओं, बाबाओं के चरणों में पड़ा रहता है, तब तक उसका उद्धार असंभव है |

~विशुद्ध चैतन्य

“The Only Cure I Had To Sadness Was To Keep On Working”
“उदासी का एक ही इलाज था मेरे पास और वह था निरंतर काम करते रहना ”
                                                                                           -शाहरुख़ खान 

आइये कुछ ऐसे लोगों के विषय में जानते हैं जो कभी गरीब थे |

स्टीव जॉब्स

Apple कंपनी की स्थापना करने वाले Steve Jobs को ने अपनी जिंदगी में कोई कम दुःख नहीं देखा, Jobs ने अपनी पढाई कैलिफ़ोर्निया में की, और उस वक्त उनके पास में पढाई के लिए पैसे नहीं होते थे तब वो गर्मियों की छुट्टियो में काम किया करते थे.

उनके जिंदगी में ऐसा वक्त भी आया है जब उन्हें अपने दोस्त के रूम में जमीन पर सोना पड़ता था, और अपने खाने के लिए कोक की बोतल बेच कर अपना पेट भरते थे. Jobs कृष्णा मंदिर में मुफ्त भोजन भी किया करते थे.

फिर Jobs ने एक दिन Apple company शुरू की और बहुत success हुए और एक समय के आने के बाद Jobs के पास 5 अरब डॉलर की संपत्ति हो गई थी जिसके साथ वो अमेरिका के सबसे अमीर व्यक्ति में से एक व्यक्ति बन गए थे. हालाँकि Jobs आज इस दुनिया में नहीं है लेकिन पूरी दुनिया में माना जाता है कि अब तक Steve Jobs जैसा marketer/entrepreneur कोई नहीं आया है.

कर्नल सेंडर्स 

आपको KFC का चिकन पसंद है या नहीं लेकिन KFC के success के पीछे कर्नल सैंडर्स की story आपको जरुर पसंद आएगी।

कर्नल केवल 5 वर्ष के थे अब उनके पापा की मृतु हो गई थी, फिर उनकी माँ ने दूसरी शादी लार ली लेकिन कर्नल अपने सोतेले पापा से तंग आकर घर छोड़ दिया तब वो केवल 10 साल के थे, उसके बाद वे कई वक्त तक बेघर रहे और कई नौकरिया की और जीवन में परेशानियों का सामना किया.

एक बार किसी कारण से कर्नल सैंडर्स का चलता हुआ बिज़नस बंद हो गया। उस वक्त उनकी उम्र 65 हो चुकी थी और हाल यह था की खोने के लिए अब उनके पास में कुछ भी नहीं बचा था।

उनको अपने चिकन प्रयोग पर बहुत भरोसा था, वो मसाले और प्रेसर कुकर लेकर अपनी चिकन बनाने का प्रयोग की मार्केटिंग करने निकल पड़े। उन्होंने अलग-अलग रेस्टोरेंट से मिलना शुरू किया। और सब उनको रिजेक्ट करते गये।

लेकिन कर्नल सैंडर्स भी अड़े रहे, लगे रहे, सीखते रहे और चलते रहे। और करते-करते एक हजार नौ (1009) लोगो ने उनको रिजेक्ट कर दिया फिर जाकर उनको मिली उनकी पहली हाँ।
हाँ अपने सही पढ़ा है, एक हजार नौ बार रिजेक्ट होने के बाद, एक हजार नौ बार ना सुनने के बाद उनको उनकी पहली हाँ मिली।

सोचो 65 की उम्र में, एक एसी उम्र जब लोग रिटायर हो जाते है, एक इस उम्र में जब लोग दुबारा उठने से हार मान लेते है। उस उम्र में उन्होंने अपने चिकन प्रयोग के साथ एक ऐसा बिज़नस खड़ा कर दिया जो आज 120 देश में है, 18000 से ज्यादा KFC के रेस्टोरेंट्स (Restaurants) है और 20 अरब डॉलर से ज्यादा उनका एक साल की कमाई है।