"I am a Sanyasi, but not a conventional Sanyasi. For me Sanyas means to live life the way God wanted you to live, not the way others wanted you to live. Because we are not here to be Slave or please everyone. We are here to Serve and Contribute our best for the Society, Humanity And Nature Willingly and Happily."
मैंने जीवन में मिली असफलताओं, कठिनाइयों और आलोचनाओं को वह शास्त्र माना जो निष्पक्ष व निःस्वार्थ भाव से आपको प्रेरित करता है स्वयं से परिचय के लिए | मैं बचपन से हमेशा औरों को देखता था कि कैसे उनके बहुत से मित्र होते हैं, रिश्तेदार होंते हैं, प्रेमी-प्रेमिकाएँ होते हैं.... लेकिन मेरे साथ ऐसा नहीं रहा | मुझे एकांत ही मिला क्योंकि जो मैं कहता था वह किसी को समझ में नहीं आता था और जो वे कहते थे वह मेरी समझ में नहीं आता था |
मेरी समझ में नहीं आता था कि मुझे औरों की तरह कछुआ नीति में कूपमंडूक बनकर क्यों जीना चाहिए ? मुझे समझ में नहीं आता था कि ऐसा ध्यान और ब्रम्हज्ञान किस काम का जो समाज को दिशा न दे पाए ? मुझे समझ में नहीं आता था कि किसी नेता के जीत जाने से राष्ट्र का उद्धार कैसे होगा जब तक जनता सो रही है ? मुझे समझ में नहीं आता था कि प्रेम पाने का अधिकार केवल धनी-संपन्न लोगों को ही क्यों है ? मुझे समझ में नहीं आता था कि लोग सहयोगी क्यों नहीं हो पाते आपस में ? मुझे समझ में नहीं आता था कि हम सब ईश्वर के हाथ की कठपुतली हैं, तो क्यों ईश्वर हमें आपस में लड़वाता है, दंगे करवाता है, निर्दोषों को मरवाता है ?.....
उस समय ज्ञानीजनों का कहना होता था कि यह ईश्वर का विधान है और इसे समझना आसान नहीं है | कठोरतप करना पड़ता है ब्रह्मचर्य पालन करना पड़ता है | ब्रह्मचारियों से मिला और सालों से साधना कर रहे साधुओं से भी मिला उत्तर किसी के पास नहीं था | सभी वही कह रहे थे जो वे सुन रखे थे किसी से या किसी शास्त्र या पुराण की कुछ रटी हुई पंक्तियाँ या श्लोक सुना देते | यह और बात है कि अर्थ उनको भी नहीं पता होता था |
तो आज भी बदला कुछ नहीं है मेरे लिए | आज भी जो कुछ मैं कहता हूँ उसे वैसे ही समझने में लोगों को कठिनाई आती है | जो कुछ मैं देख पाता हूँ, दुनिया को वह नहीं दिखता | मैं यदि कहता हूँ कि आपस में सहयोगी हो जाओ तो लोग समझते हैं कि मैं किसी पार्टी या नेता के पक्ष में लोगों को संगठित कर रहा हूँ | मैं कहता हूँ की भ्रष्टाचारियों के विरोध में खुल कर सामने आओ तो लोग समझते हैं जंतर-मंतर में आने के लिए कह रहा हूँ :) -विशुद्ध चैतन्य

मैंने जीवन में मिली असफलताओं, कठिनाइयों और आलोचनाओं को वह शास्त्र माना जो निष्पक्ष व निःस्वार्थ भाव से आपको प्रेरित करता है स्वयं से परिचय के लिए | मैं बचपन से हमेशा औरों को देखता था कि कैसे उनके बहुत से मित्र होते हैं, रिश्तेदार होंते हैं, प्रेमी-प्रेमिकाएँ होते हैं.... लेकिन मेरे साथ ऐसा नहीं रहा | मुझे एकांत ही मिला क्योंकि जो मैं कहता था वह किसी को समझ में नहीं आता था और जो वे कहते थे वह मेरी समझ में नहीं आता था |
मेरी समझ में नहीं आता था कि मुझे औरों की तरह कछुआ नीति में कूपमंडूक बनकर क्यों जीना चाहिए ? मुझे समझ में नहीं आता था कि ऐसा ध्यान और ब्रम्हज्ञान किस काम का जो समाज को दिशा न दे पाए ? मुझे समझ में नहीं आता था कि किसी नेता के जीत जाने से राष्ट्र का उद्धार कैसे होगा जब तक जनता सो रही है ? मुझे समझ में नहीं आता था कि प्रेम पाने का अधिकार केवल धनी-संपन्न लोगों को ही क्यों है ? मुझे समझ में नहीं आता था कि लोग सहयोगी क्यों नहीं हो पाते आपस में ? मुझे समझ में नहीं आता था कि हम सब ईश्वर के हाथ की कठपुतली हैं, तो क्यों ईश्वर हमें आपस में लड़वाता है, दंगे करवाता है, निर्दोषों को मरवाता है ?.....
उस समय ज्ञानीजनों का कहना होता था कि यह ईश्वर का विधान है और इसे समझना आसान नहीं है | कठोरतप करना पड़ता है ब्रह्मचर्य पालन करना पड़ता है | ब्रह्मचारियों से मिला और सालों से साधना कर रहे साधुओं से भी मिला उत्तर किसी के पास नहीं था | सभी वही कह रहे थे जो वे सुन रखे थे किसी से या किसी शास्त्र या पुराण की कुछ रटी हुई पंक्तियाँ या श्लोक सुना देते | यह और बात है कि अर्थ उनको भी नहीं पता होता था |

कृपया ध्यान दें:
मुझे पढ़ा-लिखा, डिग्री-धारी, उपाधि-धारी संन्यासी, साधू, संत, महंत समझने की भूल न करें | मैं विशुद्ध अनपढ़, गँवार संन्यासी हूँ | फिर भी यदि आप कोई गलतफहमी पालते हैं तो उसके लिए ज़िम्मेदार आप स्वयं होंगे |
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