बाबाधाम के चार स्तम्भ माने जाते हैं, बम-बम बाबा, हरिशरण बाबा, बालानंद महाराज और ठाकुर दयानंद देव जी | ये चारों ही ऐसे संत थे जिन्होंने देवघर को एक नई पहचान दी, वर्ना बाबाधाम केवल तांत्रिक साधना करने वालों और कांवड़ियों में ही लोकप्रिय था | इन महान संतों ने आध्यात्म को नए आयाम दिए |
ठाकुर दयानंद देव जी का नाम आज भी बाबाधाम में विशिष्ठ स्थान रखता है | वे ही पहले संत थे जिन्होंने अंग्रेजो के अत्याचार से क्षुब्ध होकर ३० जून १९१२ में एक सभा में निम्न घोषणा की और लिखित रूप में गवर्नर से भी कहा था;
ठाकुर दयानंद देव जी जब बाबाधाम आये तो कबिलासपुर में एक छोटे से मकान (जमाबंदी न० ७, प्लाट न० १३) में अपना निवास बनाया | यहीं वे ध्यान व साधना करते थे | उन्होंने सड़क के किनारे एक कूँवा भी बनवाया, ताकि बाबाधाम आने वाले तीर्थयात्री अपनी प्यास बुझा सकें | धीरे धीरे उस कुँए का पानी तीर्थ यात्रियों में इतना पवित्र माना जाने लगा कि लोग अपनी यात्रा से लौटते समय उस कुँए से पानी प्रसाद के रूप में अपने घर ले जाने लगे | यह कुआँ आज भी लेकिन जर्जर अवस्था में | ठाकुर दयानंद जी के सद्विचार और सदगुणों ने उस समय के कई धनाढ्य लोगों को अपनी ओर आकृष्ट किया और वे उनके शिष्य बने | उन्ही में से एक शिष्य जिनके मकान में वे रह रहे थे, कुछ समय बाद वह सारी जमीन उन्हें जनकल्याणार्थ आश्रम बनाने हेतु दान में दे दी |
आश्रम का निर्माण कार्य १९२१ में शुरू हो गया जो कि १९२४ में बनकर तैयार हुआ | २६/११/१९२२ को विधिवत दस्तावेज बनवाकार उस शिष्य ने अपनी १.७४ एकड़ भूमि ठाकुर को देना चाहा, तो उन्होंने अपने नाम पर न लेकर अपने शिष्य स्वामी आलोकानंद के नाम करवा दिया |
विश्वास जीतने के लिए अपनी गाडी में घुमाने से लेकर हर रोज फल व मिठाई आदि लाने जैसे कार्य करने लगे | प्रमुखों को विश्वास में लेकर वे आश्रम के कागजात सम्बन्धी जानकारी भी प्राप्त करने में सफल हो गये | अब उन्होंने अगला कदम उठाया और अपने ही कुछ ख़ास लोगों को यहाँ से दीक्षा दिलवाकर यहीं बैठा दिया | इन लोगों का काम था कि आश्रम की गतिविधियों में नज़र रखना और संभावित खतरे से उन्हें अवगत करवाते रहना | धीरे धीरे उन्होंने डकैती और मार-पीट का सहारा लेकर संयासियों को भगाना शुरू कर दिया | धीरे धीरे स्थिति यह हो गई कि हर कोई इनसे डरने लगा और ये लोग मनमानी करने लगे |
एक दिन धर्मानंद झा ने आकर कहा कि उसने जमाबंदी ७ प्लाट न. १९/९९ (एरिया १७ डेसीमल) को खरीद लिया है | भय के कारण आश्रम प्रबंधक और ट्रस्टियों ने कोई ठोस रक्षात्मक कदम नहीं उठाया | परिणाम यह हुआ कि प्लाट न० १३ (एरिया ३० डेसीमल) पर भी अपना अधिकार घोषित कर दिया और क़ानून को धोखा देने के लिए आनन्-फानन
में उक्त जमीन का कागज अपने नाम बनवाने के लिए धर्मानंद झा ने बंदोबस्त पदाधिकारी दुमका में जमीन का खाता अपने नाम खुलवाने का आवेदन दिया | जिसमें यह कहा गया कि उक्त जमीन का अंश रकवा ०.४७ एकड़ मेरे दखल कब्जे में है, जहाँ से आश्रम के नाम एक नोटिस तुरंत निर्गत किया गया और साथ ही १२.०१.१२ को तिथि निर्धारित किया | पुनः बंदोबस्त पदाधिकारी ने कानूनगो से जांच रिपोर्ट माँगा | इस पर कानूनगो साहब ने यथाशीघ्र स्थल जाँच कर अगली तारीख को जाँच प्रतिवेदन सुपुर्द कर दिया | इस रिपोर्ट में उक्त खाता के कुल जमीन में से अंश रकवा ०.४७ एकड़ जमीन पर धर्मानंद झा का दखल कब्ज़ा एवं मकान होने की बात लिख दिया | इसपूरे मामले में प्रबंधक की लापरवाही साफ दिखाई देती है अब वह लापरवाही किस वजह से की, इसका जवाव शायद वह ही दे सकें मगर कागजातों पर ध्यान दें तो यह साफ नजर आ जायेगा कि गलत तरीके से भू-माफियाओं ने जगह पर कब्जा किया है प्रबंधकोंको चाहिये था कि सबंधित मामले में अदालत में मामला दायर करें मगर ऐसा नहीं किया गया| गांव वाले व हम सब चाहते हैं कि मामला दायर करके आश्रम की जमीनों को भू-माफिया से छुड़ाया जाये|अगली तारीख को आश्रम की ओर से एक समय आवेदन (टाइम पिटीशन) दिया गया कि इतने कम समय में जवाब नहीं दिया जा सकता है, परन्तु आश्रम की ओर से वकील की दलील को दरकिनार कर मात्र ३० दिनों से भी कम समय में नियम विरुद्ध आदेश निर्गत किया कि उक्त जमीन की खाना ग्यारह में दर्ज कर धर्मानंद झा के नाम खाता खोला जाय |
टिपण्णी
१. उक्त जमीन गत सर्वे सेटलमेंट का पर्चा (कागजात) लीलामंदिर आश्रम के नाम है और आश्रम कोठी मकान खतियान में दर्ज है | परन्तु अभ्युक्ति में गैरमजरुवा लिखा है |
२. कोई भी गैरमजरुवा जमीन का बंदोबस्त किया जाता है तब किसी सक्षम पदाधिकारी जैसे एसडीओ, एलआरडीसी या डीसी के आदेश कॉपी पर सेटलमेंट पदाधिकारी खाता खोलने का आदेश दे सकता है | जबकि ऐसा कुछ नहीं हुआ | केवल दखल के आधार पर धर्मानंद झा के नाम पर खाता खोलने का आदेश दिया गया, जो कि एस. पी. टी. एक्ट में नियम विरुद्ध है |
उपरोक्त सभी बिन्दुओं पर यदि ध्यान दिया जाए तो स्पष्ट हो जाता है कि भूमाफिया और सम्बंधित पदाधिकारियों के मिली-भगत से लीलामंदिर आश्रम की जमीन हड़पी गई |
“From the consideration of Dharma alone,we dissolve the relation of Ruler and Ruled.”
परिणाम यह निकला कि अंग्रेज सरकार नाराज हो गई और एक दिन आश्रम में संकीर्तन कर रहे उनके शिष्यों पर अंधाधुंध गोलियां चलवा दी | इस घटना में उनके एक शिष्य की मृत्यु हो गई और कई घायल हो गए |
इनका जन्म १९ मई १८८१ में सिलहट जिले के हबीबगंज सबडिविजन के बामई में हुआ था जो कि इस समय बांग्लादेश में पड़ता है |
ठाकुर जी का एक महत्वपूर्ण कार्य का उल्लेख मैं यहाँ कर रहा हूँ |
ठाकुर जी का एक महत्वपूर्ण कार्य का उल्लेख मैं यहाँ कर रहा हूँ |
१७ दिसंबर १९१२ को पेरिस में हुए शांति सम्मलेन में ठाकुर दयानंद जी ने अपनी विश्व-एकता योजना की एक रुपरेखा प्रस्तुत की | “प्रत्येक देश की जनता किसी निश्चित अवधि के लिए अपने बीच से एक राष्ट्रपति चुने और वह काउन्सिल की सहायता से उनका भाग्य निबटारा करे | फिर प्रत्येक देश के राष्ट्रपति अपने बीच से एक प्रधान राष्ट्रपति चुने जो भिन्न-भिन्न देशों से भेजे गए मंत्रियों के साथ (जिसमें सार्वभौम प्रजातंत्र का अंग होगा) मिलकर, देशो की सरकार से भिन्न एक सरकार बनाएं | वह प्रत्येक देश के कार्यों की समीक्षा करेंगी और सभी को समान रूप से समृद्ध व विकसित होने देने के लिए आवश्यक कदम उठाएंगे | जिससे की कोई देश किसी कमजोर देश का शोषण कर लाभ न उठा पाए |...
यह उनका स्वप्न था जो आगे चलकर UN के रूप में स्थापित हुआ | ठाकुर दयानंद और स्वामी विवेकानंद जी में जो एक समानता मुझे दिखाई पड़ी वह थी मानव कल्याण हेतु कार्य करना | वे अन्य संतों की तरह भजन कीर्तन और भक्ति मार्ग की आढ़ में मंदिरों और गुफाओं में छुपने से अच्छा विश्व में एकता व सबके विकास के विषय में चिंता करते थे | वे चाहते थे कि सभी अपने अपने धर्मों को माने पर दूसरों को कष्ट पहुंचाए बिना | सभी अपने देश व भाषा का सम्मान करें किसी और का अपमान किये बिना | उन्होंने साधू-संतों का प्रचलित सिद्धांत, “मैं सुखी तो जग सुखी” कभी नहीं अपनाया और “जग सुखी तो मैं सुखी” के सिद्धांत को अपनाते हुए १९०९ मैं अरुणाचल मिशन की स्थापना की और “विश्वशांति” को अपना उद्देश्य बनाया |
यह उनका स्वप्न था जो आगे चलकर UN के रूप में स्थापित हुआ | ठाकुर दयानंद और स्वामी विवेकानंद जी में जो एक समानता मुझे दिखाई पड़ी वह थी मानव कल्याण हेतु कार्य करना | वे अन्य संतों की तरह भजन कीर्तन और भक्ति मार्ग की आढ़ में मंदिरों और गुफाओं में छुपने से अच्छा विश्व में एकता व सबके विकास के विषय में चिंता करते थे | वे चाहते थे कि सभी अपने अपने धर्मों को माने पर दूसरों को कष्ट पहुंचाए बिना | सभी अपने देश व भाषा का सम्मान करें किसी और का अपमान किये बिना | उन्होंने साधू-संतों का प्रचलित सिद्धांत, “मैं सुखी तो जग सुखी” कभी नहीं अपनाया और “जग सुखी तो मैं सुखी” के सिद्धांत को अपनाते हुए १९०९ मैं अरुणाचल मिशन की स्थापना की और “विश्वशांति” को अपना उद्देश्य बनाया |

जब तक ठाकुर दयानंद देव जीवित रहे जन-कल्याणार्थ कार्य करते रहे लेकिन उनके स्वर्गवास के पश्चात उनके उत्तराधिकारी उनके दिखाए मार्ग से भटक गए और भजन-कीर्तन को ही जीवन का मिशन का सिद्धांत बना लिया | उन्होंने ठाकुर की प्रतिमा स्थापित कर पूजा अर्चना शुरू कर दिया और बाहरी दुनिया से कटने लगे | आश्रम की दिनचर्या “जय जय दयानंद, प्राण गौर नित्यानंद” जपने और प्रसाद ग्रहण करने तक ही सीमित हो गया | आश्रम ने ग्रामीणों के शिक्षा, संस्कार को उन्नत करने के लिए काम करना बंद कर दिया | अध्यक्ष और ट्रस्टी अपने-अपने घर-परिवार में उलझ गये | परिणाम यह हुआ कि उनका नाम और उनकी शिक्षा दोनों ही पतन की राह पकड़ ली | ठाकुर दयानंद देव जी का सपना (विश्वशान्ति और सदभावना) को पूरा करने के लिए बनाया गया ‘अरुणाचल मिशन’ का मुख्यालय ‘लीलामंदिर आश्रम’ केवल धर्मभीरुओं और कायरों का गढ़ बन कर रह गया | यहाँ आने वाले सन्यासी और ट्रस्टियों के लिए यह होलीडे-इन बन गया जहाँ वे छुट्टियाँ बिताने और आराम करने के लिए आने लगे | किसी को भी आश्रम के रख-रखाव के लिए कुछ सोचने का समय नहीं मिला | यदि किसी सन्यासी ने आश्रम के हित व उत्थान के लिए कुछ करना भी चाहा तो उसे डरा-धमका कर या आश्रम के नियम के विरुद्ध कार्य करने का अभियोग लगा कर निकाल दिया गया |
जब भूमाफियाओं (धर्मानंद झा और शिवानन्द झा) की नज़र इस भूमि में पड़ी तो उन्हें यह आसानी से कम खर्च में प्राप्त होने वाला फल दिखाई दिया | उन्होंने आश्रम में आना जाना शुरू कर दिया और आश्रम के प्रबंधकों और ट्रस्टियों का
जब भूमाफियाओं (धर्मानंद झा और शिवानन्द झा) की नज़र इस भूमि में पड़ी तो उन्हें यह आसानी से कम खर्च में प्राप्त होने वाला फल दिखाई दिया | उन्होंने आश्रम में आना जाना शुरू कर दिया और आश्रम के प्रबंधकों और ट्रस्टियों का
एक दिन धर्मानंद झा ने आकर कहा कि उसने जमाबंदी ७ प्लाट न. १९/९९ (एरिया १७ डेसीमल) को खरीद लिया है | भय के कारण आश्रम प्रबंधक और ट्रस्टियों ने कोई ठोस रक्षात्मक कदम नहीं उठाया | परिणाम यह हुआ कि प्लाट न० १३ (एरिया ३० डेसीमल) पर भी अपना अधिकार घोषित कर दिया और क़ानून को धोखा देने के लिए आनन्-फानन
में उक्त जमीन का कागज अपने नाम बनवाने के लिए धर्मानंद झा ने बंदोबस्त पदाधिकारी दुमका में जमीन का खाता अपने नाम खुलवाने का आवेदन दिया | जिसमें यह कहा गया कि उक्त जमीन का अंश रकवा ०.४७ एकड़ मेरे दखल कब्जे में है, जहाँ से आश्रम के नाम एक नोटिस तुरंत निर्गत किया गया और साथ ही १२.०१.१२ को तिथि निर्धारित किया | पुनः बंदोबस्त पदाधिकारी ने कानूनगो से जांच रिपोर्ट माँगा | इस पर कानूनगो साहब ने यथाशीघ्र स्थल जाँच कर अगली तारीख को जाँच प्रतिवेदन सुपुर्द कर दिया | इस रिपोर्ट में उक्त खाता के कुल जमीन में से अंश रकवा ०.४७ एकड़ जमीन पर धर्मानंद झा का दखल कब्ज़ा एवं मकान होने की बात लिख दिया | इसपूरे मामले में प्रबंधक की लापरवाही साफ दिखाई देती है अब वह लापरवाही किस वजह से की, इसका जवाव शायद वह ही दे सकें मगर कागजातों पर ध्यान दें तो यह साफ नजर आ जायेगा कि गलत तरीके से भू-माफियाओं ने जगह पर कब्जा किया है प्रबंधकोंको चाहिये था कि सबंधित मामले में अदालत में मामला दायर करें मगर ऐसा नहीं किया गया| गांव वाले व हम सब चाहते हैं कि मामला दायर करके आश्रम की जमीनों को भू-माफिया से छुड़ाया जाये|अगली तारीख को आश्रम की ओर से एक समय आवेदन (टाइम पिटीशन) दिया गया कि इतने कम समय में जवाब नहीं दिया जा सकता है, परन्तु आश्रम की ओर से वकील की दलील को दरकिनार कर मात्र ३० दिनों से भी कम समय में नियम विरुद्ध आदेश निर्गत किया कि उक्त जमीन की खाना ग्यारह में दर्ज कर धर्मानंद झा के नाम खाता खोला जाय |
टिपण्णी
१. उक्त जमीन गत सर्वे सेटलमेंट का पर्चा (कागजात) लीलामंदिर आश्रम के नाम है और आश्रम कोठी मकान खतियान में दर्ज है | परन्तु अभ्युक्ति में गैरमजरुवा लिखा है |
२. कोई भी गैरमजरुवा जमीन का बंदोबस्त किया जाता है तब किसी सक्षम पदाधिकारी जैसे एसडीओ, एलआरडीसी या डीसी के आदेश कॉपी पर सेटलमेंट पदाधिकारी खाता खोलने का आदेश दे सकता है | जबकि ऐसा कुछ नहीं हुआ | केवल दखल के आधार पर धर्मानंद झा के नाम पर खाता खोलने का आदेश दिया गया, जो कि एस. पी. टी. एक्ट में नियम विरुद्ध है |
३. मात्र ३० दिन से भी कम समय में ऐसा आदेश निर्गत किया जो संथाल परगना में पूर्व में कभी नहीं हुआ | इससे पूर्व के केस अभी भी पड़े हुए हैं |
४. उक्त पदाधिकारी ने अपने रिटायर्मेंट से दो-तीन दिन पूर्व ही हमें अपना पक्ष रखने और भूमि सम्बंधित दस्तावेज को जमा करने का समय नहीं दिया | ऐसा जान पड़ता है कि उक्त अधिकारी ने रिश्वत लेकर आनन-फानन में यह आदेश पारित किया, जो कि अपने पद का दुरुपयोग है |
४. उक्त पदाधिकारी ने अपने रिटायर्मेंट से दो-तीन दिन पूर्व ही हमें अपना पक्ष रखने और भूमि सम्बंधित दस्तावेज को जमा करने का समय नहीं दिया | ऐसा जान पड़ता है कि उक्त अधिकारी ने रिश्वत लेकर आनन-फानन में यह आदेश पारित किया, जो कि अपने पद का दुरुपयोग है |
५. उक्त पदाधिकारी ने जो गत सर्वे सेटलमेंट पर्चा का सुधार कर वर्तमान खाताधारी के स्थान पर किसी दूसरे व्यक्ति के नाम खाता खोलने का आदेश दिया जो कि उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर था | ऐसा अधिकार मात्र Sub-Jugde Court को है |
उपरोक्त सभी बिन्दुओं पर यदि ध्यान दिया जाए तो स्पष्ट हो जाता है कि भूमाफिया और सम्बंधित पदाधिकारियों के मिली-भगत से लीलामंदिर आश्रम की जमीन हड़पी गई |
यह कोई नई घटना नहीं है, देवघर जिले में पूर्व से इस इस प्रकार का खेल होते आया है |यदि इस मामले की जाँच सही तरीके से की जाए तो कई अधिकारी बेनकाब हो जायेंगे | हमारा उद्देश्य केवल इतना है कि ठाकुर दयानंद जी को जन्कल्यानार्थ सौंपी गई भूमि यथा स्थिति आश्रम के अधिकार में ही रहने दिया जाए और आश्रम परिसर में अनावश्यक उपद्रव तुरंत बंद किया जाए |
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