06 फ़रवरी 2014

धन्य है मेरा देश और धन्य है हमारी भक्ति !!!



ओ बलमा...ओ बलमा.... तेरा रस्ता देख रही हूँ... और बीड़ी जलइले.... जैसे सात्विक मन को शीतलता देने वाले भक्ति गीतों के साथ ही कल माँ सरस्वती जी का विसर्जन हो गया |

बच्चे बहुत ही हर्ष उल्लास के साथ सुबह से ही दौड़ धुप मचा रहे थे | और होते भी क्यों नहीं ? आखिर एक ही तो पर्व ऐसा है जिन्हें वे अपना कह सकते हैं | क्योंकि बाकी सभी देवी देवताओं पर बड़ों का अधिकार हो रखा है | बस माँ सरस्वती ही एक मात्र ऐसी देवी हैं जिनके पर्व पर बड़ों को कोई विशेष रूचि नहीं होती, इसलिए बच्चों को कोई रोक टोक नहीं होती |

बच्चों को माँ सरस्वती के आशीर्वाद की बड़ों से अधिक आवश्यकता होती है क्योंकि उन्हें अच्छे न० जो लाने होते हैं | बड़ों को तो पता है की जितने न० लाने थे ले आये अब तो उन नंबरों को रुपयों में कन्वर्ट करने का समय है इसलिए लक्ष्मी जी को प्रसन्न रखना आवश्यक है | कहते हैं की सरस्वती और लक्ष्मी में बैर है इसलिए बड़े लोग सरस्वती की संगत से थोड़ा दूर रहना ही पसंद करते हैं |

तो हमारे आस पास के सभी गाँवों में सरस्वती की का विशेष पर्व मनाया गया | चारों ओर साउंड सिस्टम शोर मचा रखे थे | कहीं पौव्वा चढ़ाके... तो कहीं ओ बलमा... ओ बलमा.... जैसे सात्विक भजन चल रहे थे | एक भी गीत माँ सरस्वती के सुनने को नहीं मिले | बच्चे भी सरस्वती की मूर्ति के आगे ओ बलमा... ओ बलमा... गाते हुए नाच रहे थे |

मुझे क्रोध नहीं बल्कि हंसी बहुत आई साथ ही उन मूढ़ शिक्षकों पर भी दया आई जो इस प्रकार के आधुनिक भक्ति गीत चला रहे थे | बच्चों को संस्कार तो यही मिलेगा की शायद इन्हीं गीतों से माँ सरस्वती प्रसन्न होंगी और उन्हें अच्छे मार्क्स मिलेंगे |

धन्य है मेरा देश और धन्य है हमारी भक्ति !!! -विशुद्ध चैतन्य  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

No abusive language please