"धर्म की रक्षा ही तुम्हारी सुरक्षा है या तुम धर्म की रक्षा करो, धर्म तुम्हारी रक्षा करेगा...."
लेकिन दुर्भाग्य से ज्ञानियों ने पंथ या सम्प्रदाय या समुदाय को धर्म मान लिया और निकल पड़े रक्षा करने भाले और तलवारों के साथ | जबकि वास्तव में जिस धर्म की बात की गई थी उसे ये धर्म के ठेकेदार समझ ही नहीं पाए |
धर्म यानि वह गुण, व्यवहार, या कर्तव्य जो तुम्हारे अनुकूल है या जिसे तुमने स्वेच्छा से स्वीकार किया है, की रक्षा करना | अर्थात यदि तुम सैनिक हो तो तुम्हारा धर्म है सुरक्षा करना और सुरक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति देना |
जज हो तो न्याय करना जज का धर्म है, वकील का धर्म है न्याय दिलवाने में सहायता करना, पति-धर्म, पत्नी धर्म, पिता-धर्म, पुत्र-धर्म, राष्ट्र-धर्म, प्रजा-धर्म..... ये सारे धर्म ही हैं जिसकी रक्षा करनी चाहिए | जब हम सभी अपने अपने कर्तव्यों के प्रति सजग हो जायेंगे, तभी हम सुरक्षित व सुखी रहेंगे |
लेकिन मैंने नहीं सुना कि किसी विद्वान् ने कभी कहा हो कि हम नागरिक या प्रजा धर्म की रक्षा करें, हम संरक्षक या प्रशासक धर्म की रक्षा करें ....?
मुर्ख बना रहें हैं ये लोग धर्म की रक्षा के नाम पर कि धर्म खतरे में हैं... वास्तव में ये कह रहें हैं कि धन खतरे में हैं | वह धन जो मंदिरों और मठो में आना चाहिए था एक फ़कीर के मंदिर में जा रहा है इसलिए कह रहें हैं कि धर्म खतरे में है | लेकिन यही धर्म के ठेकेदार जब कोई किसान आत्महत्या करता है तब उन्हें कीड़े मकोड़े समझ कर भूल जाते हैं, जबकि तब इनका धर्म था कि कि उस किसान की सहायता करते | लेकिन तब इनको धर्म याद नहीं आता | तब इनको पता नहीं चलता कि धर्म खतरे में नहीं रहा, धर्म का नाश हो गया !
फिर निकलते हैं सड़कों में धर्म की रक्षा करने लाठी और भाला लेकर.... इनसे ज्यादा मुर्ख धार्मिक हो सकता है भला कोई ?
श्री कृष्ण भी अपना सर पीटते होंगे ऐसे धार्मिकों को भगवद्गीता जैसा ग्रन्थ देकर |
विशुद्ध चैतन्य
विशुद्ध चैतन्य
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