09 जुलाई 2014

मुझे फेसबुक की यह बात अच्छी नहीं लगी कि किसी को अपनी गलती सुधारने का अवसर नहीं देता |



आज मैंने सोचा कि कुछ साइलेंट फ्रेंड्स को फ्रेंड लिस्ट से बाहर कर दिया जाए क्योंकि आठ सौ चौंसठ फ्रेंड्स की लिस्ट रखने से अच्छा है दस पंद्रह को ही रखूँ क्योंकि भीड़ का न कोई चेहरा होता है और न ही कोई धर्म | वे तो बस भेड़ों की एक झुण्ड मात्र होते हैं जिनके पास अपना कोई विचार उद्देश्य नहीं होता | भीड़ शब्द असल में भेड़ का ही समूहसूचक नाम रहा होगा | भेड़ों के समूह को ही भीड़ कहते रहे होंगे पहले | भीड़ के साथ होना और समर्थकों या सहयोगियों के समूह के साथ होने में अंतर होता |

कुछ लोग मेरा कोई एक पोस्ट पसंद आने पर फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज देते हैं और अगली पोस्ट जब उनके मान्यताओं के विरोध में दिखती है तो शत्रु दिखाई देने लगता हूँ | लेकिन वे अपनी गलती सुधारने के लिए मुझे अनफ्रेंड नहीं करते या भूल जाते हैं कि गलती सुधार लेना भी मानवता के हित में है और एक महान धर्म है |

आज सुबह मैं छंटनी करने बैठा तो पचास साठ लोगों को ही निकाल पाया और उसके बाद मैसेज आने लगा, 'sorry, we can't process this request right now. Please try again.'

अब यह नहीं बताया फेसबुक ने कि दोबारा कब ट्राई करूं ? मुझे अपनी गलतियाँ सुधारने का अवसर तो मिलना चाहिए न ?

उन सभी से अनुरोध है कि मेरे किसी एक अच्छे (धार्मिक) पोस्ट के लिए मुझे फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजने की जो गलती उनसे हुई है वे उसे सुधार लें और मुझे अनफ्रेंड कर दें | मेरे किसी अच्छे पोस्ट के कारण जो मेरे विषय में भ्रम बना, उसके लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूँ | मेरा पूरा प्रयास रहेगा कि भविष्य में कोई ऐसा पोस्ट न लिखूं जिससे यह भ्रम बनता हो कि मैं उन महान आधुनिक संत-महन्तों में से कोई हूँ जो धर्म के नाम पर द्वेष फैलाते हैं |

मैंने मानव के रूप में जन्म लिया और मानव ही रहना चाहता हूँ, संत-महंत बनकर धर्म के नाम पर द्वेष पैदा करना, दूसरे पंथों या मान्यताओं की निंदा करना, राष्ट्र या समाज के कल्याणार्थ चिंतन न करना व समाधान के उपाय खोजने से वैराग लेना, अवतारों द्वारा दिखाए आदर्शो को व्यवहार में लाने के स्थान पर उनके मंदिर बनवाकर पूजा करना, अवतारों को ईश्वर से अधिक महान सिद्ध करना....... जैसे महान काम मुझ से नहीं हो पायेंगे | यह काम आधुनिक शंकराचार्यों और आधुनिक संत-महंतों के ही बस का है क्योंकि उन्होंने इन कार्यों के लिए विशेष साधना की है, शास्त्रों से शिक्षा ली है | मेरा उनको दंडवत नमन कि वे इतने महान काम करने के योग्य हुए |

अब कोई कहेगा कि जब संत नहीं बनना था तो गेरुआ क्यों डाला ?

उत्तर होगा कि गेरुआ संसार को त्यागने के लिए नहीं डाला जाता और न ही धार्मिक द्वेष फैलाने के लिए डाला जाता है | गेरुआ का अर्थ होता है;

बलिदान उन भावनाओं का जो मानवता के विरुद्ध है,

बलिदान उन कर्मों का जिनसे किसी निर्दोष व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक या आर्थिक क्षति होती हो |

बलिदान अपने उन आचरणों का जिनसे स्वयं व परिवार या समाज को लज्जित होना पड़ता है या दुःख पहुँचता है |

गेरुआ है ईश्वर के साथ सत्संग करने के लिए, ईश्वर की सेवा व साधना के लिए | और पंचतत्व को ही ईश्वर कहा जाता है | कण कण में भगवान् इसलिए कहा जाता है क्योंकि हर एक कण पंचतत्वों से ही निर्मित है |

इसलिए मैंने गेरुआ धारण किया था और यदि आवश्यता पड़ी और मेरे साधना में यह गेरुआ बाधक हुआ तो इसे भी त्याग दूंगा | जब इतना कुछ त्यागा तो यह भी सही लेकिन ईश्वर के मार्ग में चलने में बाधा नहीं चाहूँगा |

अतः पुनः निवेदन है कि वे धार्मिक लोग मुझे अनफ्रेंड करके अपनी गलती सुधार लें, जिनका धर्म मंदिरों और मुर्तिओं तक सीमित है | मैं जिस धर्म को मानता हूँ और जानता हूँ, वह ईश्वर ने बनाए हैं और सम्पूर्ण सृष्टि उसका पालन करती है | वह धर्म सनातन है क्योंकि मानव निर्मित नहीं है | वह धर्म सम्प्रदायों, समुदायों, समाजों, मंदिरों-मस्जिदों में नहीं बंटा हुआ है | ~विशुद्ध चैतन्य

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

No abusive language please