२६ जनवरी की परेड निकल रही है और सभी धार्मिक अपने अपने धर्म का झंडा लहराते नाचते-गाते, नारे लगाते चले जा रहे हैं | उनमें से कुछ आधुनिक अस्त्र-शस्त्र से सजे धजे हवा में गोलियाँ चलाते चल रहे थे तो कुछ तलवारों और त्रिशुलों को हवा में उछालते चल रहे थे | उनका थीम सोंग था, "कदम कदम बढ़ाये जा, ख़ुशी के गीत गाये जा..."
उनके पीछे आस्तिक लोग अपने अपने गुरुओं, बाबाओं, मान्यताओं की तस्वीरें, मूर्तियाँ लेकर नाचते गाते चले जा रहें हैं | जिनमें से कुछ अपने अपने गुरु और बाबा को कंधे में उठाये चले जा रहे थे | उनका थीम सोंग था, "ऐ मालिक तेरे बन्दे हम....." |
उनके पीछे नास्तिक लोग थे जो अपनी अपनी डिग्रियाँ और डिप्लोमा दिखाते हुए चल रहे थे और कुछ अंग्रेजी में बातें करते हुए चल रहे थे | उनका थीम सोंग था, "We Shall OVERCOMESome day...." |
उनके पीछे पीछे पीछे धर्मों के ठेकेदार, राष्ट्र के ठेकदार, संस्कृति के ठेकेदार, नेता, व्यापारी, अपराधी, गुंडे मवाली और दुमछल्ले एक दूसरे के कंधे में हाथ डाले चल रहे थे और एक सुर में गा रहे थे "हमसे जो टकराएगा, चूर-चूर हो जाएगा" |
उनके पीछे मीडिया अपनी झाँकी लेकर आ रही थी | जिसमें अत्याधुनिक Invisible ड्रेस में, ब्रॉडकास्ट वेव्स पर तैरती हुई एंकर न्यूज सुना रही थी | चैनल हेड पर टेन सेंकंड के हिसाब से नोटों की गड्डियाँ नेताओं से ले रहा था | ऊपर एक बड़ा सा बैनर लगा था जिसमें मीडिया की थीम लाइन लिखी थी,
"न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर |
खबर उसी की चलाएंगे, जो देगा नोटों का ढेर ||
एक गाना भी चल रहा था हनी सिंह का.... पार्टी ऑल नाईट..
और अंत में कुछ भूखे नंगे, जर्जर लोग एक दूसरे को गालियाँ देते, धक्का मारते चले आ रहे थे | पता जला कि ये किसान, आदिवासी व ग्रामीण वोटर हैं और इनमें आदिकाल से एकता नहीं रही क्योंकि धार्मिकों और नेताओं ने इनको यही सिखाया है कि आपस में लड़ने में ही उनकी भलाई है | ऊँच-नीच के भेदभाव के कारण ही ये लोग कभी भी संगठित नहीं हो पाए, इसलिए अपराधियों को सजा नहीं होती लेकिन इनको घर बैठे भी पुलिस पकड़ का ले जाती है अपना प्रमोशन करवाने के लिए | कितने तो कई वर्षों से जेल में पड़े हैं और उन्हें पता ही नहीं है कि जज साहब उनकी सजा कब सुनायेंगे और किस जुर्म की सजा सुनायी जायेगी | इनका थीम सोंग था, "गरीबों की सुनो, वो तुम्हारी सुनेगा....." |
फिर परेड समाप्त हो गयी तो मैंने किसी से पूछा, "सभी तो आ गए, २६ जनवरी की परेड भी समाप्त हो गयी लेकिन मानव, मानवधर्म आध्यात्मिकों का कुछ पता नहीं चला ?" सामने वाला जोर से हँसा और बोला, "अबे पागल हो गया क्या ? यह परेड २६ जनवरी की नहीं कलियुग की समाप्ति के उपलक्ष्य में थी | इसमें यह दिखाया जा रहा था कि हमने कलियुग में कितनी प्रगति की है | मानव और मानव धर्म तो कब का लुप्त हो गया | आध्यात्मिकता बहुत बीमार है और अंतिम सांसे ले रही है और तू अभी तक न जाने किस दुनिया में खोया हुआ है ? तुम जैसे लोग कभी आगे नहीं बढ़ सकते.....बैकवर्ड कहीं के.....!!!!
अचानक मेरी आंख्ने खुल गयी..... देखा तो दिन निकल आया है और मैं अपने बिस्तर में पड़ा हुआ हूँ | -विशुद्ध चैतन्य
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