12 दिसंबर 2014

धर्म ने कभी किसी का भला नहीं किया

आज धर्मों की स्थिति सरकारी स्कूलों जैसी हो रखी है और अधर्म कान्वेंट स्कूल बना हुआ है | धार्मिक भी अधर्म की ओर अधिक आकर्षित हैं | जिस प्रकार आज सरकारी स्कूलों में गुणवत्ता और अपनापन से अधिक खिचड़ी खिलाकर आकर्षित करने का प्रयास किया जा रहा है, ठीक वही काम ये धर्मों के ठेकेदार भी कर रहे हैं | जिस प्रकार सरकारी स्कूलों में सरकारी अधिकारियों के बच्चे नहीं जाते, ठीक वैसे ही धर्मों के ठेकेदार, उनके बच्चे और उनके दुमछल्ले भी धर्म से दूर रहते हैं |


कुछ धर्मों की स्थिति तो इतनी बिगड़ गयी कि डराने, धमकाने, हत्या और बलात्कार करके अपने धर्मों में लोगों को शामिल करने की आवश्यकता पड़ने लगी | क्योंकि उनके पास कोई मार्ग बचा ही नहीं | क्योंकि वे यह भी कहने योग्य नहीं रह गए कि हम वास्तव में धार्मिक हैं क्योंकि हमने अपने धर्म से जुड़े लोगों की समृद्धि, सुरक्षा, आर्थिक व मानसिक उत्थान पर जितना ध्यान दिया उतना किसी और नें नहीं दिया | जितने निःशुल्क स्कूल और अस्पताल हमने खुलवाये, उतने किसी और ने नहीं खुलवाये.......

और किसी के पास कोई परोपकार और धर्मार्थ कार्यों में दिए योगदान के विषय में बताने को कुछ है भी, तो वह है उनकी कहानियों वाली किताबों में | जिसे सभी श्रृद्धा से पठन-पाठन करते हैं, लेकिन समझ में किसीकी नहीं आता | या फिर पूर्वजों के किये गए कार्यों का बखान कर रहें हैं.....

आज से ही नहीं पहले से धर्म के आड़ में हत्याएँ हुईं, स्त्रियों का शोषण व बलात्कार हुआ, लूट पाट हुआ..... और यह सब करने वाले लोग धार्मिक ही थे | लेकिन जो कार्य किये गए, वे सारे अधार्मिक....क्योंकि अधर्म का महत्व धर्म से अधिक है | आज धर्म का आस्तित्व ही इसलिए है क्योंकि अधर्म है | इसलिए आप देखेंगे कि सत्ता में श्रेष्ठ पदों पर आपको अपराधी प्रवृति व घोटालेबाजी में विशेषज्ञों को प्राथमिकता दी जाती है | उनके ऊपर न खत्म होने वाले मुक़दमे चलते रहते हैं और जजों और वकीलों को एकता कपूर की लिखी स्क्रिप्ट के आधार पर ही कार्यवाही करनी होती है | एकता कपूर की स्क्रिप्ट और सीरियल कितनी लम्बी होगी और कब खत्म होगी यह तो ईश्वर भी नहीं जानता |

धर्म बिना अधर्म की सहायता के एक कदम भी नहीं चल सकता, यह आप देख ही सकते हैं कि धार्मिकता का चोला ओढ़े धर्म-रक्षक जितने अभद्र, उद्दंड, अशिष्ट, अशिक्षित, अमर्यादित व गाली-गलौज करने वाले होते हैं, उतने अधर्मियों और नास्तिकों में दुर्लभ है | धार्मिक लोग दया से कितना रहित होते हैं उसका उदाहरण अमीर होते मस्जिद-मंदिर, उनके प्रबंधक.... वहीँ भूख और बीमारी से मरते किसानों से पता चल जाता है |

 आतंकवादियों के पास अस्त्र शस्त्र व हत्या के सामान खरीदने के लिए धन की कोई कमी नहीं होती, लेकिन सरकार व धार्मिक संस्थानों के पास किसानों के लिए बीज खरीदने के लिए, बच्चों के लिए स्कूल, नागरिकों के लिए अस्पताल खुलवाने के लिए धन नहीं होते | जबकि विदेशी बैंकों में जमा करने व गोदामों में रखवाने के लिए धन की कोई कमी नहीं है | उद्योगपतियों के कर्जे और टैक्स इसलिए ही माफ़ कर दिए जाते हैं, क्योंकि धन का कोई आभाव नहीं है अपनों के लिए अपराधियों के लिए |

वहीँ मंदिर-मस्जिद के झगड़ों में लोगों को उलझाये रखते हैं ये धार्मिक लोग धर्म के नाम पर |  सभी जानते हैं कि धर्म ने कभी किसी का भला नहीं किया | धर्म ने तो लूट-पाट, हत्याएं व बलात्कार किये, शोषण किया और धर्म के ठेकेदारों और राजनीतिज्ञों की तिजोरियाँ भरीं |

किसी भी धर्मगुरु ने (ईसाईयों को छोड़कर) प्रेम, सद्भाव व सहयोग से धर्म का प्रचार नहीं किया | किसी ने भी लोगों का दिल जीतने वाले कार्य नहीं किये विशेष कर हिन्दू और मुस्लिमों ने | क्योंकि इन दोनों धर्मों को यह अहंकार रहा कि हम श्रेष्ठ हैं | यही कारण है कि इनको आज अपने धर्मों में लोगों को वापस लाने के लिए लालच व आतंक का प्रयोग करना पड़ रहा है | इनके पास किस्से कहानियों के सिवा कोई भी ठोस उदाहरण है ही नहीं कि इनका धर्म जनहित व जनकल्याणकारी है | इनके पास कोई उदाहरण है ही नहीं कि ये कह पायें कि जो भी हमारे सम्प्रदाय में शामिल हुआ वह शालीन, सौम्य व प्रगतिशील मानसिकता का हो गया और समृद्ध हुआ | ये कह ही नहीं सकते कि ये विश्व में अपने सद्कर्मों के कारण श्रेष्ठ हैं, न कि किस्से कहानियों के कारण | ये कह ही नहीं सकते कि हम ईश्वर द्वारा निर्देशित धर्मो व नियमों के अंतर्गत कार्य करते हैं क्योंकि इनको पता ही नहीं है कि ईश्वर ने किस विधान व धर्म की स्थापना की और जिसके अंतर्गत सम्पूर्ण सृष्टि अनवरत, निर्विरोध, सहयोगी होते हुए प्रगति व विकास करती है |

कृपया ध्यान दें: यहाँ मैं जिस धर्म के विषय में बात कर रहा हूँ वह हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई..... नामक धर्म की बात कर रहा हूँ, वास्तविक धर्म की नहीं | -विशुद्ध चैतन्य

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

No abusive language please