कल रात में यह फिल्म देखी | ९२६ ईस्वीं पर की घटना पर आधारित कथा पर बनी यह फिल्म पूरी तरह से हिंसा पर आधारित है | जिन्हें हिंसा पसंद नहीं, उनके लिए यह फिल्म बकवास फिल्म ही होगी, लेकिन मेरे लिए इस फिल्म में बहुत कुछ ऐसा था जो मुझे और अधिक मुक्त करता है सामाजिक बंधनों से लेकिन मूल सनातन (प्राकृतिक) नियमों के प्रति श्रृद्धा व समर्पण का भाव विकसित करता है |
मेरी हमेशा यही धारणा रही कि कोई भी व्यक्ति दुनिया में निरुद्देश्य नहीं आया है, और अपना योगदान दिए बिना नहीं गया है | जब तक वह योगदान दे रहा होता है, उसे सहयोगी व सहयोग प्राप्त होते रहते हैं | लेकिन जैसे ही वह दूसरों के लिए सहयोगी होना बंद कर देता है, और शोषण या आतंक से अपना प्रभुत्व रखना चाहता है, उसका पतन होना शुरू हो जाता है |
अभी पोस्ट पूरा नहीं लिखा है....थोड़ी देर बाद लिखूंगा.
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