"....केवल प्रवचन तक ही सीमित है व्यवहारिक कहीं नहीं | यदि व्यवहारिक होते, तो ये धार्मिक, सभ्य, पढ़े-लिखे, अंग्रेजी बोलने वाली भेड़ें, नेताओं और पूंजीपतियों के दुमछल्ले न होते | ये नेताओं और मंदिरों को दान देने के स्थान पर आपस में सहयोगी हो गये होते, अपने से कमजोरों को सहयोग करते कि वे भी समृद्ध हो सकें |
जबकि इतने सारे सुविचार हर रोज लोग पढ़ और सुन रहें हैं, फिर भी नेताओं और बाबाओं के चरणों में लोट रहें हैं |" -विशुद्ध चैतन्य
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