
आध्यात्मिक गुरु कहते हैं की भौतिक संसाधनों का त्याग कर दो तभी आध्यात्मिक उत्थान संभव है और सांप्रदायिक गुरु कहता है की आध्यात्मिकता एक पाखंड है और इसको त्याग कर हमारे बाड़े में आ जाओ तभी तुम ऊँचाई पर पहुँच सकते हो | सांप्रदायिक गुरु धर्म के नाम पर रंग-बिरंगे बाड़े बना रखें हैं और साम-दाम-दंड-भेद अपना कर लोगों को धार्मिकता के रंगीन कम्बलों में ढँक कर अपने अपने बाड़ों में हाँक रहें हैं | और ये लोग सफल केवल इसलिए हो रहे हैं क्योंकि हर कोई डरा हुआ है | और कितनी अजीब बात है कि जिस स्वर्ग और जन्नत का लालच देते हैं, वहाँ भी वही सब है जो इस पृथ्वी में है | मतलब शरीर छोड़ने के बाद भी सुर, सूरा और सुंदरी का भोग कर सकेंगे जो इनके बनाए बाड़े में आ जाए तो, वरना नरक या दोजख मिलेगा और वहाँ भी वही सब यातनाएं होंगी जो कि केवल भौतिक शरीर को दी जा सकती हैं | यही कारण कि अध्यात्म एक मजाक बन गया जबकि आध्यात्मिक जगत और भौतिक जगत में समन्वय ही वास्तविक ब्रम्ह है | मेरी दृष्टि से भौतिक और अध्यात्मिक दो महत्वपूर्ण शक्तियों को एक दूसरे के विरोधी शक्तियों के रूप में देखना स्वयं को धोखा देने वाली बात है |

धर्म अद्वैत पर आधारित है, जबकि संप्रदाय द्वैत पर आधारित है | धर्म हारमनी क्रियेट करता है दूसरे व्यक्ति को भी अपने शरीर का एक अभिन्न सहयोगी अंग के रूप में स्वीकार करता है, जहाँ लय, गति, रोमांच, सुख समर्पण व पूर्णता एक ही समय में उपलब्ध हो जाता है | जबकि सम्प्रदाय वैमनस्यता व दूसरों से स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करने में ही सारी उर्जा लगाता है और वह सब खो देता है जो धर्म से हमें प्राप्त होता है |
मैं यहाँ एक विडियो दे रहा रहा हूँ उसे एकाग्र होकर देखिये और आपको सिर्फ देखना है, समझने या अर्थ निकालने के चक्कर में मत पड़ियेगा नहीं तो आप खो देंगे उस अभूतपूर्व अनुभव को | क्योंकि आप समझने के लिए उस दिमाग का प्रयोग करेंगे जो आपका नहीं है, वह समाज का सिखाया पढ़ाया हुआ है | उसमें आपका कुछ नहीं है, वही है जो समाज में आपने देखा और अनुभव किया लेकिन वह आपका अनुभव नहीं है | आपका अनुभव वह है जो आपने पूर्वजन्म और इस जन्म के बीच के अवकाश में मनन करके जाना | -विशुद्ध चैतन्य
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