उदाहरण के लिए किसी बड़े मंदिर में दर्शन के लिए बेशक लाइन लगाना पड़ता हो, यदि आपकी सत्ता ऊँची है तो आपको लाइन पर नहीं लगना पड़ता |
त्रिकुट आश्रम में ठाकुर को भोग लगाने की समय सारणी है.... लेकिन चार-पाँच महीने से ठाकुर को भोग नहीं लगा क्योंकि आश्रम में ताला लगा दिया चन्दनस्वामी और उनके गुंडों ने ग्रामीणों के साथ मिलकर लेकिन किसी को चिंता ही नहीं है....
हमारे आश्रम में भी ठाकुर को भोग में नाश्ता सुबह नौ बजे दिया जाता है... लेकिन आज आश्रम प्रमुख को सुबह जल्दी निकलना थे ट्रेन पकड़ने एक लिए तो सुबह सात बजे ही ठाकुर को भोग लगा दिया गया
अपने ही बनाए अराध्य अपने ही हिसाब से चलाते हैं.. वह बेचारा बेजुबान कह भी नहीं पाता कि मुझे अभी नहीं खाना....
इतने सालों में सुबह जल्दी नाश्ता लेने की आदत ही छूट गयी तो आज सुबह सात बजे दिया गया नाश्ता अभी तक टेबल पर रखा है क्योंकि खिलाया ही नहीं जा रहा... सोचता हूँ कि ठाकुरजी का स्वभाव भी मेरी ही तरह का था | लोग उन्हें भी सनकी समझा करते थे और वे भी अपनी ही तरह से जीते थे, दुनिया की तरह नहीं | तो उन्होंने भी नहीं खाया होगा अभी तक |
लेकिन आश्रम प्रमुख की ही चलेगी यहाँ पर, ठाकुर जी की कहाँ चलने वाली ?
और फिर यही लोग मुझसे अपेक्षा करते हैं कि मैं उनके हिसाब से चलूँ.... क्यों चलूँ भाई ? जब आप लोग ईश्वर के हिसाब से नहीं चलते ? जब आप लोग प्रकृति के हिसाब से नहीं चलते ? जब आप लोग मानवता के हिसाब से नहीं चलते ? जब आप लोग धर्म के हिसाब से नहीं चलते..... तो मुझसे क्यों अपेक्षा करते हैं कि मैं आपके बनाये नियमों के अनुसार चलूँ ? ~विशुद्ध चैतन्य
त्रिकुट आश्रम में ठाकुर को भोग लगाने की समय सारणी है.... लेकिन चार-पाँच महीने से ठाकुर को भोग नहीं लगा क्योंकि आश्रम में ताला लगा दिया चन्दनस्वामी और उनके गुंडों ने ग्रामीणों के साथ मिलकर लेकिन किसी को चिंता ही नहीं है....
हमारे आश्रम में भी ठाकुर को भोग में नाश्ता सुबह नौ बजे दिया जाता है... लेकिन आज आश्रम प्रमुख को सुबह जल्दी निकलना थे ट्रेन पकड़ने एक लिए तो सुबह सात बजे ही ठाकुर को भोग लगा दिया गया
अपने ही बनाए अराध्य अपने ही हिसाब से चलाते हैं.. वह बेचारा बेजुबान कह भी नहीं पाता कि मुझे अभी नहीं खाना....
इतने सालों में सुबह जल्दी नाश्ता लेने की आदत ही छूट गयी तो आज सुबह सात बजे दिया गया नाश्ता अभी तक टेबल पर रखा है क्योंकि खिलाया ही नहीं जा रहा... सोचता हूँ कि ठाकुरजी का स्वभाव भी मेरी ही तरह का था | लोग उन्हें भी सनकी समझा करते थे और वे भी अपनी ही तरह से जीते थे, दुनिया की तरह नहीं | तो उन्होंने भी नहीं खाया होगा अभी तक |
लेकिन आश्रम प्रमुख की ही चलेगी यहाँ पर, ठाकुर जी की कहाँ चलने वाली ?
और फिर यही लोग मुझसे अपेक्षा करते हैं कि मैं उनके हिसाब से चलूँ.... क्यों चलूँ भाई ? जब आप लोग ईश्वर के हिसाब से नहीं चलते ? जब आप लोग प्रकृति के हिसाब से नहीं चलते ? जब आप लोग मानवता के हिसाब से नहीं चलते ? जब आप लोग धर्म के हिसाब से नहीं चलते..... तो मुझसे क्यों अपेक्षा करते हैं कि मैं आपके बनाये नियमों के अनुसार चलूँ ? ~विशुद्ध चैतन्य
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