30 अप्रैल 2015

ट्यूशन से मानवीयता का पतन


ट्यूशन आज शिक्षा का एक अनिवार्य अंग बन चुका है | बच्चों को स्कूल और ट्यूशन दोनों की आवश्यकता पड़ती है क्योंकि शिक्षा आज बहुत ही जटिल हो चुकी है | शिक्षा जटिल तो हुई लेकिन शिक्षा अपनी मूल उद्देश्य से भटक गयी | अब शिक्षा का अर्थ हो गया है अच्छे नंबर लाना और अच्छी नौकरी पाना | माँ बाप भी अपने बच्चों की कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहते इसलिए अच्छे से अच्छे ट्यूटर की व्यवस्था की जाती है | महंगे से महंगे कोचिंग क्लास में बच्चों को भेजा जाता है |

अब जरा पीछे जाए कुछ सदी पहले | तब हम पाते हैं कि शिक्षा जीवन विद्या का एक अंग था | गुरुकुल से शिक्षा प्राप्त छात्र, एक अच्छा योद्धा, एक कृषक, एक जिम्मेदार नागरिक बनकर लौटता था | वह हर परिस्थिति का सामना करने लिए तैयार होकर लौटता था | उस ज़माने में ट्यूशन का कोई अस्तित्व नहीं था और गुरु का उद्देश्य व्यक्ति विकास ही होता था | गुरु और शिष्य के बीच माँ-बाप या समाज नहीं आता था और शिष्य के लिए गुरु ही सबकुछ होता था |

लेकिन आज शिक्षा शुद्ध व्यवसाय बन गया है | ट्यूशन उसी व्यवसाय का एक अंग है | बच्चों को स्कूल की आवश्यकता होती है क्योंकि सर्टिफिकेट वहीँ से मिलेंगे और ट्यूशन की आवश्यकता इसलिए होती है क्योंकि स्कूल में सही पढ़ाई हो नहीं पाती | जबकि स्कूल आपसे ट्यूशन फीस भी लेते हैं लेकिन फिर भी आपको अलग से ट्यूशन लेना पड़ता है | शिक्षक भी स्कूलों में अनमने से रहते हैं क्योंकि यहाँ वे अधिक मेहनत करेंगे तो बच्चों को ट्यूशन में ठीक से नहीं पढ़ा पायेंगे | और ऊपर की कमी में जो सुख है, वह वेतन में कहाँ से मिल सकता है ? फिर चाहे वेतन पचास हज़ार ही क्यों न हों !

लेकिन इस शिक्षा के बाजार से जो सबसे बड़ी हानि हो रही है वह है मानवता और समाज का | क्योंकि शिक्षक का सम्मान वह नहीं रहा जो था किसी ज़माने में | अब शिक्षक और नौकर में कोई भेद नहीं रह गया | एक बच्चा जानता है कि शिक्षक उसकी वजह से कमा रहा है, सो वह शिक्षक को नौकर से अधिक महत्व नहीं देता | फिर शिक्षक को देखता है स्कूल से भी तनखा लेते हुए और अलग से ट्यूशन पढ़ाकर उपर की कमाई करते हुए | फिर स्कूल कॉलेज से निकलने के बाद अलग से फिर पढ़ाई करनी पड़ती है रोजगार पाने के लिए और उसके लिए माँ बाप को फिर से पैसे खर्च करते हुए देखता है | बचपन से पैसों से हर चीज खरीदी जा सकती है... यहाँ तक कि ईमान भी तो वह अपने जीवन का उद्देश्य पैसा कमाना ही बना लेता है |

फिर जब वह नौकरी करता है तो बचपन में ट्यूटर की कमाई देखकर वह भी ऊपरी कमाई को महत्वपूर्ण व सम्मानीय समझने लगता है | वह डॉक्टर बनता है तो कुछ ही समय बाद अपना क्लिनिक खोल लेता है | अब स्टाफ को कमीशन सेट कर देता है कि मेरे क्लिनिक में भेजोगे तो कमीशन मिलेगा | स्टाफ भी बचपन में ट्यूशन पढ़ा होता है तो वह भी ट्यूटर की तरह उपरी कमी के लालच में पेशेंट को प्राइवेट क्लिनिक में जाने की सलाह देता है | वही बच्चा जब सरकारी शिक्षक बनता है तो वही बचपन में अपने गुरु से सीखी शिक्षा के अनुसार स्कूल में कम समय और ट्यूशन और उपरी कमाई में अधिक समय देने लगता है | वही बच्चा जब इंजिनियर बनता है तो... घटिया पुल, घटिया मकान... उदाहरण आये दिन मिलते ही रहते हैं और कई तो भुक्तभोगी भी होंगे | बच्चे में मानवीयता का गला बचपन में ही घोंट दिया जाता है | अब वह रोते बिलखते लोगों की आंसुओं से प्रभावित नहीं होता, वह प्रभावित होता है नोटों की गड्डियों से | वह शादी भी करता है, प्रेम भी करता है तो पैसों से | पैसा खत्म प्रेम ख़त्म | आज विवाह भी मानवीय मूल्यों पर आधारित नहीं है क्योंकि पैसा आधार है विवाह का न कि प्रेम | और यह सब हुआ ट्यूशन के कारण |

तो सारांश यह कि ट्यूशन बच्चों के व्यक्तित्व का न तो विकास करता है और न ही उसे मनुष्य बनाता है | शिक्षा का सारा उद्देश्य ही चौपट हो जाता है स्कूल के बाद अलग से पढ़ने-पढ़ाने वाले सिस्टम से | ~विशुद्ध चैतन्य