29 अप्रैल 2015

पूर्वजन्मों के संस्कार

हम यदि अपने बच्चों को समझने का प्रयास करें तो हम बच्चों को वह बनने में सहयोग कर सकते हैं जो वह होने के लिए आया है | लेकिन हमारा स्वार्थ हमें बच्चों को इंजिनियर, डॉक्टर, आईएएस, आईपीएस.... बनते हुए देखना चाहता है क्योंकि तब वह कागज़ के टुकड़े अधिक बटोर सकता है | फिर वह प्राकृतिक व स्वाभाविक अवस्था में रहे या न रहे हमें कोई मतलब नहीं होता, हमें तो बस अपने बच्चों को कागज के टुकड़ों में तैरता हुआ देखना होता है और दुनिया के झूठे सम्मान और वाही-वाही लूटना होता है | जब दुनिया छोड़ेंगे तो न ये कागज़ के टुकड़े साथ जायेंगे और न ही ये झूठी वाह-वाही साथ जायेगी |

साथ जायेगी तो केवल वह तृप्ति जो इस जन्म में पायी, साथ जायेगी तो केवल वह शांति जो जीवन के अंतिम पड़ाव में पाया, साथ जाएगा तो केवल वह जो हमने इस जीवन से सीखा |  इसलिए यदि आप भी माँ-बाप हैं, तो बच्चों के मौलिक गुणों को खोजकर उनको वही होने में सहयोग दें जो वह होने के लिए आये हैं | उनपर थोपें नहीं कि उनको क्या होना है और कैसा होना है |

और यदि आप जीवन के अंतिम पड़ाव में पहुँच चुके हैं, तो वह सीखिये जो इस भेड़चाल की दौड़ में आप नहीं सीख पाए और वह करिए जो आप करना चाहते थे... यदि आप अकेले हैं और दुनिया के बहकावों और ब्रह्मचर्य की गलत व्याख्या के कारण कुँवारे रह गये, या किसी दुर्घटना वश अकेले रह गये, तो अपने लिए जीवन साथी खोजना शुरू कर दीजिये, ताकि इसी जन्म में साथी को समझ जाएँ और अगले जन्म में नए सिरे से समझने की आवश्यकता न पड़े और न ही आधी उम्र साथी ढूँढने में न व्यर्थ करना पड़े | ~विशुद्ध चैतन्य