पिछले दो दिनों से कुछ भी लिखने का मन नहीं कर रहा...यहाँ तक कि जब अभी मुझे पता चला कि हमारे गाँव में एक पंद्रह वर्षीय लड़के ने फाँसी लगाकर केवल इसलिए आत्महत्या कर ली क्योंकि वह एक नौ-दस साल उम्र की लड़की से प्रेम कर बैठा और घरवालों ने उसकी जमकर पिटाई कर दी..... फिर भी कुछ लिखने का मन नहीं कर रहा है.....क्योंकि दुनिया तो अपनी ही चाल चलती रही है और चलती रहेगी |
अब लगता है समझ में आता है कि क्यों लोग ऋषियों मुनियों, बुद्ध और दार्शनिकों के दिखाए मार्ग पर चलने के स्थान पर उनकी पूजा करने लगे... वास्तव में जागृत आत्माओं के दिखाए मार्ग में चलने से अच्छा है उस मार्ग को एक नाम दे दिया जाए और उसी मार्ग में अपनी दूकान सजा ली जाए... और राहगीरों को समझाया जाए कि यह मार्ग फलाने का मार्ग है... इसी मार्ग से चलकर फलाने ने ईश्वर को प्राप्त किया, सत्य को जाना.... इसलिए इसी मार्ग से चलो... दूसरों के मार्ग वाले भटका देंगे.........
तो देखा जाए तो यात्री भी उस मार्ग में चलने के स्थान पर वहीँ बैठ कर भजन कीर्तन करने लगते हैं और इस प्रकार दुनिया कहीं आगे बढ़ती ही नहीं | कोई एकआध मार्ग में बैठने के स्थान पर आगे बढ़ना चाहता है तो लोग उसे कोसना शुरू कर देते हैं | जैसे तैसे कोई उस भीड़ से निकल कर आगे बढ़ भी जाता है तो लोग उसे भी भगवान बना देते हैं और उसकी एक मूर्ती बनाकर वहीँ दूकान जमा लेते हैं |
गाँव में ही घटी इस घटना ने फिर एक बार अहसास करवा दिया कि दुनिया आगे नहीं बढ़ी है.... चलिए यह भी अच्छा ही हुआ न घर में लड़का या लड़की होंगे और न ही प्रेम प्यार का चक्कर..... मैं तो कहता हूँ कि दुनिया में किसी के भी घर में कोई बच्चा ही जन्म न ले, सीधे सभी आकाश से उतरें, धर्म और जाति का का लेबल लगा हुआ, हाथों में धर्म-ग्रन्थ और ऑक्सफ़ोर्ड की डिग्री लिए हुए | ठीक वैसे ही जैसे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र आकाश से टपके थे |
सोच रहा हूँ कि लिखना ही छोड़ दूं क्योंकि गाँव के बच्चे भी यदि आत्महत्या करने लग जाएँ तो यह चिंता का विषय अवश्य है | यानि गाँव में भी अब शिक्षा का स्तर बढ़ने लगा है और लोग पढ़े-लिखे होने लगे हैं | और जब शिक्षा का स्तर इतना उन्नत हो गया है कि न किसी को समझ में आता है और न ही समझाया जा सकता है, तो ऐसी शिक्षा व्यर्थ ही है |
बस इसलिए अब लिखने से भी मन उचटने लगा है | ~विशुद्ध चैतन्य
अब लगता है समझ में आता है कि क्यों लोग ऋषियों मुनियों, बुद्ध और दार्शनिकों के दिखाए मार्ग पर चलने के स्थान पर उनकी पूजा करने लगे... वास्तव में जागृत आत्माओं के दिखाए मार्ग में चलने से अच्छा है उस मार्ग को एक नाम दे दिया जाए और उसी मार्ग में अपनी दूकान सजा ली जाए... और राहगीरों को समझाया जाए कि यह मार्ग फलाने का मार्ग है... इसी मार्ग से चलकर फलाने ने ईश्वर को प्राप्त किया, सत्य को जाना.... इसलिए इसी मार्ग से चलो... दूसरों के मार्ग वाले भटका देंगे.........
तो देखा जाए तो यात्री भी उस मार्ग में चलने के स्थान पर वहीँ बैठ कर भजन कीर्तन करने लगते हैं और इस प्रकार दुनिया कहीं आगे बढ़ती ही नहीं | कोई एकआध मार्ग में बैठने के स्थान पर आगे बढ़ना चाहता है तो लोग उसे कोसना शुरू कर देते हैं | जैसे तैसे कोई उस भीड़ से निकल कर आगे बढ़ भी जाता है तो लोग उसे भी भगवान बना देते हैं और उसकी एक मूर्ती बनाकर वहीँ दूकान जमा लेते हैं |
गाँव में ही घटी इस घटना ने फिर एक बार अहसास करवा दिया कि दुनिया आगे नहीं बढ़ी है.... चलिए यह भी अच्छा ही हुआ न घर में लड़का या लड़की होंगे और न ही प्रेम प्यार का चक्कर..... मैं तो कहता हूँ कि दुनिया में किसी के भी घर में कोई बच्चा ही जन्म न ले, सीधे सभी आकाश से उतरें, धर्म और जाति का का लेबल लगा हुआ, हाथों में धर्म-ग्रन्थ और ऑक्सफ़ोर्ड की डिग्री लिए हुए | ठीक वैसे ही जैसे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र आकाश से टपके थे |
सोच रहा हूँ कि लिखना ही छोड़ दूं क्योंकि गाँव के बच्चे भी यदि आत्महत्या करने लग जाएँ तो यह चिंता का विषय अवश्य है | यानि गाँव में भी अब शिक्षा का स्तर बढ़ने लगा है और लोग पढ़े-लिखे होने लगे हैं | और जब शिक्षा का स्तर इतना उन्नत हो गया है कि न किसी को समझ में आता है और न ही समझाया जा सकता है, तो ऐसी शिक्षा व्यर्थ ही है |
बस इसलिए अब लिखने से भी मन उचटने लगा है | ~विशुद्ध चैतन्य
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