26 नवंबर 2015

एक और प्रश्न यह उठता है कि लडकियाँ अपना अंग दिखाना किसे चाहती हैं ?



शिक्षा का अर्थ होता है सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास | लेकिन पूरी शिक्षा व्यवस्था विदेशियों को ध्यान में रख कर रची गयी है | भारत की संस्कृति व विकास को ताक पर रख दिया गया है | बच्चों का उठना बैठना और बोलना सभी पाश्चात्य संस्कृति के अनुरूप ढाला जाता है और उनके दिमाग में यही भरा जाता है कि यदि जीवन में कुछ करना है तो विदेशी नौकरी पकड़ो या विदेश चले जाओ | और विदेशी नौकरी पाने और विदेश जाने के लिए पाश्चात्य सांस्कृतिक को अपनाना आवश्यक है इसलिए बच्चों को कान्वेंट में पढाना भी आवश्यक हो जाता है | चूँकि शिक्षा आज एक व्यवसाय बन गया है, इसलिए यह आवश्यक हो गया है कि उसमें कुछ ग्लैमर भी हो | ड्रेस से ही शुरू करते हैं...

ड्रेस लड़कियों और लड़कों के लिए कुछ इस प्रकार की रखी गई हैं स्कूलों में कि लडकियाँ आकर्षक दिखें, और इसमें कुछ बुराई भी नहीं है | बुराई है मानसिकता में | लड़कियों के खुले अंग यदि पुरुषों को आकर्षित करते हैं तो उसमें दोषी पुरुष ही है न कि लडकियाँ | क्योंकि हर लड़की को यह अधिकार है कि वह अपना कौन सा अंग दिखाना चाहती है और कौन सा नहीं, वह कपड़े पहनना चाहती है या नहीं | लेकिन यह मान्यताएँ तय कौन कर रहा है ? क्या स्कूल से ही यह तय होना नहीं शुरू हो जाता ? कान्वेंट स्कूल के वे शिक्षक जो विदेशी संस्कृति से प्रभावित होते हैं वे अपने स्कूल में भी विदेशी संस्कृति को नहीं थोप रहे ?

एक और प्रश्न यह उठता है कि लडकियाँ अपना अंग दिखाना किसे चाहती हैं ? और क्यों दिखाना चाहती हैं ? क्या यह शिक्षा का अनिवार्य हिस्सा है ? क्या शिक्षा भारतीय परिधान में नहीं हो सकती ? क्यों सभी माँ-बाप अपने बच्चों को विदेशी संस्कृति और भाषा को अपनाने के लिए दबाव बनाते हैं ? क्यों भारतीय भाषा और संस्कृति को अपनाने वालों को वह सम्मान नहीं मिलता जिसके वे अधिकारी हैं ? कहीं ऐसा न हो कि हमारी संस्कृति एक दिन इतिहास बन कर जाए और हमें पता ही नहीं चले ?

न केवल हम पाश्चात्य संस्कृति को आवश्यकता से अधिक सम्मान दे रहें हैं, हम उनके तौर-तरीके भी उतनी ही श्रद्धा से अपना रहें हैं | हम यह भूल ही गए कि हमारी संस्कृति की गरिमा क्या है ? हम खुश होते हैं जब हम अपने बच्चों को विदेशी भाषा बोलते देखते हैं, दुखी हो जाते हैं जब कोई बच्चा विदेश नहीं जाने की बात करता है | लेकिन वही बच्चा यदि भारतीय भाषाओँ से शिक्षा ग्रहण करता है तो उसे अपने चारों तरफ अँधेरा नज़र आने लगता है | चाहे वह कोई आश्रम ही क्यों न हो या कोई गुरुकुल ही क्यों न हो ? हर तरफ विदेशी भाषा और संस्कृति को ही सर्वोपरि माना जाता है | क्यों ?

यदि भारत और भारतीय संस्कृति से इतनी ही नफरत है तो क्यों नहीं भारत को छोड़ देते ? क्यों फिल्म के कलाकार भारत में भारतीय भाषाओँ की फिल्में कर के नोट छाप रहें हैं जब उनके अपने समाज में पाश्चात्य संस्कृति को ही अपनाया जाता है | ये लोग जाएँ विदेश और वहीँ अपनी रोजी रोटी तलाशें | कम से कम भारतीयों के लिए आसान तो हो जाएगा जीना और अपनी संस्कृति को पहचानना |

यह कहना आसान है कि विदेशी मानसिकता के लोग भारत छोड़ दें, लेकिन क्या हमने यह कभी कोशिश की कि हम भारतीय मानसिकता के लोगों को वह सम्मानित जीवन दें पायें जो विदेशी संस्कृति को अपनाने वालों को हम देते आ रहें हैं ?

नहीं ! हम ढोंग करते हैं देश भक्त होने का लेकिन देशभक्ति ताक पर रख देते हैं जब निजी स्वार्थ की बात आती है | अपनी पति या पत्नी से उब होने लगे तो वाईफ स्वैपिंग को नैतिकता और आधुनिकता का दर्जा दे देते हैं, मिनी और डीप कट टॉप फैशन बन जाता है | मीडिया में आने वाले विज्ञापन में नग्नता और आधुनिकता के नाम पर बन रही फिल्में नग्नता परोस रही है तब नहीं आपत्ति होती किसी को | क्योंकि उसमें दूसरों के सामने कपडे उतारने वाली बेटियाँ अपनी नहीं हैं | तब हम अंग्रेज बन जाते हैं लेकिन जब अपनी ही बेटी किसी और के सामने कपड़े उतारती है तब माँ-बाप भारतीय संस्कृति की दुहाई देते हैं बच्चों को | तब माँ बाप को नहीं दिखता कि यह विदेशी संस्कृति का मोह एक दिन आरुषि की बलि ले लेगा | बच्चों का क्या दोष ? बचपन से आपने उन्हें नग्नता का पाठ पढ़ाया शिक्षा के नाम पर उन्हें जैसा सिखाया वैसे ही वे बने तो उसमें बच्चों को सजा क्यों दी जा रही है ? कभी माँ-बाप ने आपत्ति की उन विज्ञापनों पर जिनमें अश्लीलता परोसी जा रही है ?

एक दिन भारत में विदेशियों की तरह पोर्न फ़िल्में बनाना और उस पर काम करना वैध हो जाएगा | उसकी हिरोइन भी सनी लियोन की तरह सम्मान पायेंगी, तब क्या आप अपनी बेटियों को रोक पायेंगे उन फिल्मों में काम करने से ? जब आज आप कहते हैं कि लिविंग इन रिलेशनशिप में कोई बुराई नहीं है, तब भी आप यही कहेंगे ? ~ विशुद्ध चैतन्य (Previously posted on FB page as विशुद्ध भारतीय dated:26 November 2013 at 11:49)

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