इस्लाम के विद्वान अक्सर एक प्रश्न मुझसे पूछते हैं जिसका उत्तर देने से मैं इसलिए ही बचना चाहता हूँ क्योंकि मेरे फ्रेंडलिस्ट में मुस्लिम भी बहुत संख्या में हैं और उनमें से अधिकांश कट्टरवाद से मुक्त भारतीय संस्कृति व मानसिकता के ही हैं | मेरे उत्तर से उनको दुःख हो सकता है.... लेकिन मुझे लग रहा है कि मुझे यह उत्तर दे ही देना चाहिए..जिन मुस्लिम भाइयों को आपत्ति हो मेरे उत्तर से वे मुझे अलविदा कह सकते हैं | मैं अपने विचार हिदुओं, मुस्लिमों या अन्य दड़बों के विद्वानों की तरह किसी पर न तो थोपना चाहता हूँ और न ही किसी को यह अधिकार ही देता हूँ कि वे अपने विचार मुझपर थोपें | सहमती है तो साथ चलें, नहीं तो आपका अपना पन्थ है और मेरा अपना, विवाद की कोई आवश्यकता ही नहीं है |
उनके प्रश्न इस प्रकार होते हैं, "यदि आपकी बात मान लें कि सम्पूर्ण सृष्टि का धर्म ही सनातन है और सभी सनातनी ही हैं... तो फिर विश्व में सबसे अधिक इस्लाम को ही क्यों अपनाते हैं लोग ? इस्लाम दिन-प्रतिदिन फैलता ही चला जा रहा है, जबकि हिन्दू धर्म से लोग पलायन कर रहे हैं, आदिवासी भी खुद को हिन्दू नहीं कहलाना चाहते... ऐसा क्यों ? क्या हिन्दू और सनातन अलग अलग हैं ?"
जब मैं सनातन की बात करता हूँ तो आर्यसमाजी, तोगड़िया, शंकराचार्य जी के अधिकारिक किताबी सनातन की बात नहीं कर रहा होता हूँ | मैं वास्तविक सनातन की बात कर रहा होता हूँ | और हिन्दूधर्म भी इस्लाम की ही तरह किताबी धर्म है जिसके मालिक होते हैं वे लोग जो किताबों की नई नई व्याख्या रचते हैं और सभी को अपना गुलाम बनाकर रखना चाहते हैं अल्लाह और ईश्वर का डर दिखाकर | यह आप लोग व्यवहारिक रूप से में देख भी सकते हैं कि कुछ लोग धर्मों के ठेकेदार बन जाते हैं और फिर आपस में हमें ही लड़वाते फिरते हैं अल्लाह और ईश्वर के नाम पर |
तो सनातन धर्म ऐसा धर्म है जिसमें परिवर्तन संभव नहीं है जैसे आप किस शेर को हिन्दू यह मुसलमान नहीं बना सकते, किसी मछली को हिन्दू या मुसलमान नहीं बना सकते.... क्योंकि वे सनातनी है | उन्हें अल्लाह और ईश्वर का डर नहीं दिखा सकते क्योंकि वे उनके साथ ही रहते हैं | सनातन को इस तरह भी समझ सकते हैं कि सनातन एक विशाल मीठे पानी का सागर है और इसमें सभी हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई.... आदि नदियाँ आकर मिलतीं हैं | जहाँ ये सभी नदियाँ आकर मिलतीं हैं उसे भारतवर्ष कहा जाता है यानि भारत ही सभी पंथों, मतों का संगम स्थल है | इसलिए ही ईसाई भी भारत पहुँचे, मुगल भी भारत पहुँचे, यहूदी भी भारत पहुँचे और यहीं के होकर रह गये... क्योंकि सागर से मिलने के बाद कोई नदी वापस नहीं लौटती |
तो सभी मत-मान्यताओं, कर्मकांडों, रहन-सहन, ईष्टों और आराध्यों से मिलकर जो धर्म बना वही हिन्दू धर्म कहलाया और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड जिन नियमों और धर्मों को अपनाकर सहजता से आपसी समन्वय बनाये हुए हैं, उसे हम सनातन के नाम से जानते हैं | इस प्रकार आप लोग समझ सकते हैं कि हिन्दू, मुसलमान या ईसाई होना कोई बहुत बड़ी बात नहीं है, बड़ी बात है सनातनी रहना | बड़ी बात है अपनी मूल प्राकृतिक अवस्था में रहना... जिस धर्मपरिवर्तन को लेकर आप लोग उत्साहित होते हैं, खुश होते हैं कि उसने हमारा धर्म अपना लिया या वह हिन्दू हो गया या वह मुस्लिम हो गया... यह सब खेल मुझे बिलकुल वैसा ही लगता ही कि कोई लड़की से लड़का बन जाये, लड़का से लड़की बन जाए, या मछली से चिड़िया बन जाए.... यह सब नाटकों में ही सही लगता है | लेकिन जब नाटक ख़त्म हो जाता है तब तो अपने वास्तविक रूप में ही आना पड़ता है |
मुझसे भी धोखा मत खाइए क्योंकि मैं न हिन्दू हूँ, न मुस्लिम, न सिख, न ईसाई, न बौद्ध, न जैन.... शुद्ध सनातनी हूँ | मुझे वैदिक भी न समझें, मुझे ब्राहमण या शुद्र भी न समझें.... क्योंकि मैं टुकड़ों में नहीं, सम्पूर्णता में हूँ | ~विशुद्ध चैतन्य

उनके प्रश्न इस प्रकार होते हैं, "यदि आपकी बात मान लें कि सम्पूर्ण सृष्टि का धर्म ही सनातन है और सभी सनातनी ही हैं... तो फिर विश्व में सबसे अधिक इस्लाम को ही क्यों अपनाते हैं लोग ? इस्लाम दिन-प्रतिदिन फैलता ही चला जा रहा है, जबकि हिन्दू धर्म से लोग पलायन कर रहे हैं, आदिवासी भी खुद को हिन्दू नहीं कहलाना चाहते... ऐसा क्यों ? क्या हिन्दू और सनातन अलग अलग हैं ?"
जब मैं सनातन की बात करता हूँ तो आर्यसमाजी, तोगड़िया, शंकराचार्य जी के अधिकारिक किताबी सनातन की बात नहीं कर रहा होता हूँ | मैं वास्तविक सनातन की बात कर रहा होता हूँ | और हिन्दूधर्म भी इस्लाम की ही तरह किताबी धर्म है जिसके मालिक होते हैं वे लोग जो किताबों की नई नई व्याख्या रचते हैं और सभी को अपना गुलाम बनाकर रखना चाहते हैं अल्लाह और ईश्वर का डर दिखाकर | यह आप लोग व्यवहारिक रूप से में देख भी सकते हैं कि कुछ लोग धर्मों के ठेकेदार बन जाते हैं और फिर आपस में हमें ही लड़वाते फिरते हैं अल्लाह और ईश्वर के नाम पर |
तो सनातन धर्म ऐसा धर्म है जिसमें परिवर्तन संभव नहीं है जैसे आप किस शेर को हिन्दू यह मुसलमान नहीं बना सकते, किसी मछली को हिन्दू या मुसलमान नहीं बना सकते.... क्योंकि वे सनातनी है | उन्हें अल्लाह और ईश्वर का डर नहीं दिखा सकते क्योंकि वे उनके साथ ही रहते हैं | सनातन को इस तरह भी समझ सकते हैं कि सनातन एक विशाल मीठे पानी का सागर है और इसमें सभी हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई.... आदि नदियाँ आकर मिलतीं हैं | जहाँ ये सभी नदियाँ आकर मिलतीं हैं उसे भारतवर्ष कहा जाता है यानि भारत ही सभी पंथों, मतों का संगम स्थल है | इसलिए ही ईसाई भी भारत पहुँचे, मुगल भी भारत पहुँचे, यहूदी भी भारत पहुँचे और यहीं के होकर रह गये... क्योंकि सागर से मिलने के बाद कोई नदी वापस नहीं लौटती |
तो सभी मत-मान्यताओं, कर्मकांडों, रहन-सहन, ईष्टों और आराध्यों से मिलकर जो धर्म बना वही हिन्दू धर्म कहलाया और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड जिन नियमों और धर्मों को अपनाकर सहजता से आपसी समन्वय बनाये हुए हैं, उसे हम सनातन के नाम से जानते हैं | इस प्रकार आप लोग समझ सकते हैं कि हिन्दू, मुसलमान या ईसाई होना कोई बहुत बड़ी बात नहीं है, बड़ी बात है सनातनी रहना | बड़ी बात है अपनी मूल प्राकृतिक अवस्था में रहना... जिस धर्मपरिवर्तन को लेकर आप लोग उत्साहित होते हैं, खुश होते हैं कि उसने हमारा धर्म अपना लिया या वह हिन्दू हो गया या वह मुस्लिम हो गया... यह सब खेल मुझे बिलकुल वैसा ही लगता ही कि कोई लड़की से लड़का बन जाये, लड़का से लड़की बन जाए, या मछली से चिड़िया बन जाए.... यह सब नाटकों में ही सही लगता है | लेकिन जब नाटक ख़त्म हो जाता है तब तो अपने वास्तविक रूप में ही आना पड़ता है |
मुझसे भी धोखा मत खाइए क्योंकि मैं न हिन्दू हूँ, न मुस्लिम, न सिख, न ईसाई, न बौद्ध, न जैन.... शुद्ध सनातनी हूँ | मुझे वैदिक भी न समझें, मुझे ब्राहमण या शुद्र भी न समझें.... क्योंकि मैं टुकड़ों में नहीं, सम्पूर्णता में हूँ | ~विशुद्ध चैतन्य

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