ज्ञानीजन अक्सर मुझसे कहते हैं, "...धर्मपथ से भटक गये हो, केवल ब्लॉग या पोस्ट लिखने से कुछ नहीं होता...जमीन पर काम करो.....लोगों की सेवा करो....हमारी संस्था से जुड़ जाओ.... कोई दो पैसे भी नहीं देगा सोशल मीडिया में लिखने से और बुढ़ापे में कोई पूछने वाला भी नहीं होगा | कुछ लोग कहते हैं कि केवल बातें करने से कुछ नहीं होता, हमारी तरह मैदान में आओ, जन्तर-मंतर में आओ, नारे लगाओ, हमारे नेता को जिताओ.....वेद, क़ुरान, बाइबल पढ़ो और पढाओ...अपनी योग्यता और जीवन को यूँ ही सोशल मीडिया में लिखकर बर्बाद मत करो....बुराई मत बताओ, केवल अच्छी अच्छी बातें बताओ तभी सही मायनों में धर्मसंगत कार्य होगा.... "
अगर हम ध्यान दें तो सारा समाज ही केवल अच्छी अच्छी बातें ही करता है । आप किसी भी पंडित, पुरोहित, मौलवी, पादरी या कट्टर धार्मिक से पता कर ले सभी अपने अपने धर्मों, समुदायों, किताबो की अच्छी अच्छी बातें ही बताते हैं । मैंने कहीं नहीं देखा कि किसी धार्मिक को अपने सम्प्रदाय, धर्म या किताबों में कभी कोई बुराई दिखी हो । और यही कारण है की हर किसी के अपने धर्म या संप्रदाय में न कुछ गलत हुआ और न हो रहा है, बस दूसरे ही गलत हैं । यही कारण है कि धर्म के नाम पर सब संगठित हो जाते हैं और सेवा या मानवता के नाम पर बिदक जाते हैं ।
अब जब सारी दुनिया ही अच्छाइयाँ बताने में लगी हुई है तो कम से कम मुझे तो बुराइयाँ बता कर बुरा आदमी बनने दीजिये ! जब सारी दुनिया ही धार्मिक पुस्तके पढ़कर सद्मार्ग पर चल रही है, समाज, राष्ट्र व ईश्वर/अल्लाह के बन्दों का भला कर रही है, सेवा कर रही है, तब कम से कम मुझे तो निकम्मा, कामचोर, रहने दीजिये ! ~विशुद्ध चैतन्य
अगर हम ध्यान दें तो सारा समाज ही केवल अच्छी अच्छी बातें ही करता है । आप किसी भी पंडित, पुरोहित, मौलवी, पादरी या कट्टर धार्मिक से पता कर ले सभी अपने अपने धर्मों, समुदायों, किताबो की अच्छी अच्छी बातें ही बताते हैं । मैंने कहीं नहीं देखा कि किसी धार्मिक को अपने सम्प्रदाय, धर्म या किताबों में कभी कोई बुराई दिखी हो । और यही कारण है की हर किसी के अपने धर्म या संप्रदाय में न कुछ गलत हुआ और न हो रहा है, बस दूसरे ही गलत हैं । यही कारण है कि धर्म के नाम पर सब संगठित हो जाते हैं और सेवा या मानवता के नाम पर बिदक जाते हैं ।
अब जब सारी दुनिया ही अच्छाइयाँ बताने में लगी हुई है तो कम से कम मुझे तो बुराइयाँ बता कर बुरा आदमी बनने दीजिये ! जब सारी दुनिया ही धार्मिक पुस्तके पढ़कर सद्मार्ग पर चल रही है, समाज, राष्ट्र व ईश्वर/अल्लाह के बन्दों का भला कर रही है, सेवा कर रही है, तब कम से कम मुझे तो निकम्मा, कामचोर, रहने दीजिये ! ~विशुद्ध चैतन्य
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