24 जनवरी 2016

क्या धर्म परिवर्तन की प्रथा पहले थी ?


धर्म-परिवर्तन की कोई प्रथा न तो पहले थी और न ही आज है....जिसे धर्म परिवर्तन के नाम से लोग जानते हैं, वास्तव में वह दड़बा-परिवर्तन होता है... ऐसे धर्म परिवर्तन करवाने वाले खुद अपने ही धर्म को नहीं जानते वे किसी और का धर्म-परिवर्तन क्या ख़ाक करवाएंगे ?

आज तक धर्म के नाम पर अधर्म कर रहे अधर्मिकों का धर्म परिवर्तन नहीं करवाया पाया कोई भी धार्मिक, आतंकियों, अलगावादियों, भ्रष्टाचारियों, भूमाफियाओं, बलात्कारियों, कालाबाजारियों, आदिवासियों और किसानों के शोषकों का धर्म-परिवर्तन नहीं करवा पाया कोई धर्म का ठेकेदार तो फिर धर्म परिवर्तन हुआ कहाँ ? न घोटालेबाजों ने अपना धर्म बदला न अपराधियों ने धर्म बदला न नेताओं ने झूठे वादे करके जनता को मूर्ख बनाने का अपना पुश्तैनी धर्म बदला.... तो धर्म परिवर्त हो कहाँ रहा है ?

धर्मपरिवर्तन तो एक बार हुआ था जब गौतम बुद्ध ने अंगुलिमाल का धर्मपरिवर्तन करवाया था... शायद उससे पहले भी एक बार हुआ था, जब एक स्त्री ने डाकू का धर्म परिवर्तन कर दिया और उसने रामायण जैसी महाकाव्य की रचना की |

तो धर्मपरिवर्तक वास्तव में वे लोग थे, उतने ऊँचाई पर उठे हुए और उतनी महान क्षमता वाले दिव्यात्मा आज के युग में भला कहाँ मिल सकते हैं ? आज तो पढ़े-लिखे लोग मिलते हैं, आज तो शास्त्रों के ज्ञाता और रट्टू मिलते हैं.... वास्तव में जागृत लोग कहाँ मिलते हैं ?

जागृत होना और रट्टू तोता होना दो अलग अलग बातें हैं और धर्म परिवर्तन केवल जागृत व्यक्ति ही करवा सकता है, रट्टू तोते और धर्मों के ठेकेदार केवल दड़बा-परिवर्तन ही करवा सकते हैं | ~विशुद्ध चैतन्य

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

No abusive language please