२४ बच्चों का बाप नगर सिंह एक दिन चुनाव में खड़ा हो गया | लोगों ने बहुत कोशिश की कि उसे बैठा दिया जाए लेकिन वह तो एक बार खड़ा हो गया तो हो गया, अब तो जहाँ बैठना बहुत जरुरी होता है वहाँ भी नहीं बैठता था |
उसके सारे लड़के न० एक के आवारा थे | दिन-भर लोगों से लड़ना-झगड़ना और मार-पीट करना ही उनका काम था | पढ़े लिखे इतने ही थे कि गालियाँ फर्राटे से बोल और लिख सकते थे, फिर वह किसी की दीवार पर हो या किसी की बारात पर हो | इन २४ समर्थकों के साथ जब भी वे शहर में निकलते थे तो लोग दुबक जाते थे अपने अपने घरों में | जिससे भी पूछते कि वोट किसे दोगे तो सभी कहते जी आपको ही देंगे, किसी और को देकर अपनी शामत थोड़े न बुलानी है |
नगर सिंह जगह जगह अपने भाषण करता और कहता कि जिस तरह मैंने अपने बच्चों को एकता का पाठ पढ़ाया वैसे ही पूरे देश को एक कर दूंगा | कोई किसी से भेद-भाव नहीं रखेगा | चोर को भी वही सम्मान मिलेगा जो ठग, डकैत और घोटालेबाजों को मिलता है | दंगाइयों को भी वही सम्मान मिलेगा जो आतंकवादियों को मिलता है | बलात्कारी को हम सुधरने का मौका देंगे और उसे सत्ता में लेकर आयेंगे | देश में बेईमान और ईमानदार सभी समान होंगे कोई किसी की निंदा नहीं करेगा यदि वह हमारी पार्टी कि सदस्य है तो | जो पार्टी के सदस्य नहीं हैं या वोट नहीं देते वे सभी बेईमान, देशद्रोही, अधर्मी और पापी हैं यह सिद्ध करने की कोई आवश्यकता नहीं है | चाहे वे कितने ही भलाई के काम करें उनको नरक ही मिलेगा अगर वे हमें वोट नहीं देते हैं तो.....
एक बुजुर्ग ने पूछा, "अरे नगर बेटा, जब तुम सारे देश का भला करने की बात करते हो तो कम से कम अपने बच्चों को बड़ों का सम्मान करना तो सिखा देते | हम मान लेते कि तुम देश का भला कर सकते हो |"
नगर सिंह ने घूर कर उसकी और देखा और बोला, "मेरे बच्चों में कोई बुराई नहीं है, केवल तुम लोगों को गाली-गलौज की भाषा नहीं आती इसलिए तुम्हें समझ में नहीं आता कि वे कितने मिलनसार लोग हैं | जब मैं जीत जाऊँगा तो स्कूलों में गालियों की विशेष कक्षा लगवाई जायेगी और पास होने के लिए विद्यार्थी को गालियों में कम से कम १००% न० लाना होगा | सभी पुस्तकालयों में गालियों की डिक्शनरी मुफ्त में बांटी जायेंगी....|"
बुजुर्ग ने नगर सिंह और उनके बच्चों के चरण सपर्श कर आशीर्वाद लिया और उज्जवल राष्ट्र का सपना देखने के लिए वहाँ से चला गया | -विशुद्ध चैतन्य
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