बिहार के मोकामा में हैदराबाद से आए शूटरों ने तीन दिनों में 250 नीलगायों को मार दिया है। हालांकि नीलगाय को मारे जाने से किसान खुश हैं लेकिन इस घटना के बाद राजधानी दिल्ली में बवाल मच गया है। केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने इसके लिए पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को जिम्मेदार ठहराया है।
मेनका गाँधी और प्रकाश जावड़ेकर जी आज इस विषय को लेकर परेशान हैं कि इतने पशुओं को क्यों मारा गया ? यह तो तीन दिन की रिपोर्ट है और न आगे तो और भी शूटर आयेंगे और न जाने कितने और मारे जायेंगे | लेकिन कभी किसी ने उन ग्रामीणों की समस्या को समझा जो इन नील गायों की वजह से परेशां हैं ?
जानवरों द्वारा फसलों को होने वाले भारी नुकसान से परेशान किसानों ने कुछ स्थानों पर सब्जियों तथा बागवानी फसलों की खेती से मुंह मोडना शुरू कर दिया है । भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के एक अध्ययन के अनुसार नीलगाय , बंदर , सुअर और जंगली जानवरों के कारण लगभग 30 प्रतिशत फसलों का नुकसान होता है ।
चलिए पहले नीलगाय के विषय में जान लेते हैं कि वह गाय है भी या नहीं और साथ ही जानते हैं उसकी विशेषताएँ |

1. मादा नीलगाय का रंग धूसर, मटमैला या भूरा होता है जबकि नर का रंग नीलापन लिए होता है। नर के गले पर सफेद बड़ा धब्बा होता है जबकि मादा पर यह निशान नहीं होता है।
2. नीलगाय किस प्रजाति का है इसको लेकर एकमत नहीं दिखाई देता। हालांकि 1992 में हुई फाइलोजेनेटिक स्टडी के अनुसार डीएनए की जांच से पता चला कि बोसलाफिनी (बकरी, भेड़ प्रजाति), बोविनी (गौवंश) और ट्रेजलाफिनी (हिरण प्रजाति) प्रजाति के जानवरों से मिलकर नीलगाय बनी है।
3. ईसा से 1000 साल पहले लिखे गए 'ऐतरेय ब्राह्मण' में भी नीलगाय का जिक्र मिलता है। उस वक्त इसकी पूजा भी की जाती थी। नवपाषाण काल और सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान भी मानव, नीलगाय के संपर्क में थे।
3. मुगल काल के दौरान इनके शिकार का भी जिक्र मिलता है। मुगल बादशाह जहांगीर की आत्मकथा में जिक्र मिलता है कि वे इसके शिकार पर काफी क्रोधित हो गए थे।
4. भारत के अलावा यह नेपाल, पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी पाया जाता है। 2001 में हुई गणना के मुताबिक भारत में इसकी संख्या करीब 10 लाख थी।
5. यह बिना पानी पिए कई दिन तक रह सकता है और खराब से खराब सतह पर बिना थके लंबी दूरी तक दौड़ सकता है। यह कम आवाज करता है लेकिन लड़ाई के वक्त बेहद तेज आवाजें निकालता है।
6. यह 200 किलो तक भारी होता है और कई बार तो बाघ भी इसका शिकार नहीं कर पाता। यह इतना अधिक ताकतवर होता है कि इसकी टक्कर से छोटी गाड़ियां पलट जाती हैं।
7. ये घने जंगल में जाने से परहेज करता है और घास, कंटीली झाड़ियों, छोटे पेड़ों वाले इलाके में रहना पसंद करता है। धीरे धीरे इन्होंने खाने के लिए खेतों की ओर जाना शुरु किया। तभी से मानव के साथ इनका संघर्ष शुरु हुआ है।
8. नीलगाय नाम (नील और गाय) से मिल कर बना है। नील उर्दू शब्द है जबकि गाय हिन्दी। मुगल बादशाह औरंगजेब के समय में इसे नीलघोर (नीला घोड़ा) कहा जाता था।
अब आप समझ चुके होंगे कि नीलगाय वास्तव में गाय नहीं है बल्कि हिरण, भेड़-बकरी प्रजाति का प्राणी है | और चूँकि बहुत ही शक्तिशाली प्राणी होता है, इसलिए कोई इसे भेड़-बकरी की तरह काबू में नहीं कर सकता | इसलिए भारत सरकार ने उसके शिकार की अनुमति प्रदान कर दी | और तीन दिन में २५० से अधिक नीलगायों को केवल तीन शिकारियों ने मौत के घाट उतार दिया | वास्तव में यह हमारे सरकार की अदुरदर्शिता का ही परिणाम है | मैं यह भी कह सकता हूँ कि सरकार में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जो इस समस्या का सार्थक समाधान खोजने में समर्थ हो |
भारत जैसी ही समस्या कभी रूस में भी थी रूस की सरकार ने समस्या को गम्भीरता से लिया रूस के कृषि और पुश वैज्ञानिकों ने नीलगाय परियोजना राष्ट्रीय स्तर पर लागू कर समस्या से किसानों को निजात ही नहीं दिलाया वरन् देश को दुग्ध आत्म निर्भरता भी प्रदान कराया । रूस के वैज्ञानिकों ने नीलगायों कों पालतू बनाकर उनसे दूध की प्राप्ति की और इनसे प्राप्त गोबर की खाद को खेतों में डालकर खाद्यान्न उत्पादन में बढ़ोत्तरी भी किया नीलगाय का दूध भैंस के दूध से अधिक पौष्टिक पाया गया है। नीलगाय के दूध और दही के सेवन से मनुष्य को कुपोषण से बचाया जा सकता है।
नीलगाय का दूध सफ़ेद रंग का होता है और भारी होता है | इसकी प्रकृति गर्म व स्वाद में मीठा होता है | इसका दूध मन को प्रसन्नचित रखता है यानि डिप्रेशन के मरीज के लिए लाभकारी है और साथ ही शरीर को शुद्ध करता है और धातु दोष को दूर करके ताकतवर बनाता है | हाँ इसके सेवन से पेशाब की मात्रा बढ़ जाती है | इसके दूध की तुलना घोड़ी के दूध से की जाती है | यदि पसलियों में दर्द रहता है तो नीलगाय के सींग का भस्म ४-४ रत्ती सुबह शाम शहद के साथ मिलाकर चाटें तो दर्द दूर हो जाता है |
तो इस प्रकार आप देख सकते हैं कि नीलगाय कितना उपयोगी पशु है | लेकिन दुर्भाग्य से न तो ग्रामीणों को किसी ने इसकी जानकारी दी और न ही सरकार को | इसलिए इसे अनावश्यक उपद्रवी जंगली पशु मानकर शिकारियों से शिकार करवा रहे हैं | और चूँकि इनकी प्रजनन क्षमता अच्छी होती है इसलिए इनका मांस भी निर्यात किया जा सकता है और इस प्रकार किसानों के लिए यह बहुउपयोगी पशु सिद्ध हो सकता है |
आप सभी से अनुरोध है कि इसे पालने के विषय में गहनता से विचार करें.. हो सकता है कि नीलगाय कई गरीब किसानों के लिए वरदान सिद्ध हो जाए | ~विशुद्ध चैतन्य
मेनका गाँधी और प्रकाश जावड़ेकर जी आज इस विषय को लेकर परेशान हैं कि इतने पशुओं को क्यों मारा गया ? यह तो तीन दिन की रिपोर्ट है और न आगे तो और भी शूटर आयेंगे और न जाने कितने और मारे जायेंगे | लेकिन कभी किसी ने उन ग्रामीणों की समस्या को समझा जो इन नील गायों की वजह से परेशां हैं ?
जानवरों द्वारा फसलों को होने वाले भारी नुकसान से परेशान किसानों ने कुछ स्थानों पर सब्जियों तथा बागवानी फसलों की खेती से मुंह मोडना शुरू कर दिया है । भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के एक अध्ययन के अनुसार नीलगाय , बंदर , सुअर और जंगली जानवरों के कारण लगभग 30 प्रतिशत फसलों का नुकसान होता है ।
चलिए पहले नीलगाय के विषय में जान लेते हैं कि वह गाय है भी या नहीं और साथ ही जानते हैं उसकी विशेषताएँ |

1. मादा नीलगाय का रंग धूसर, मटमैला या भूरा होता है जबकि नर का रंग नीलापन लिए होता है। नर के गले पर सफेद बड़ा धब्बा होता है जबकि मादा पर यह निशान नहीं होता है।
2. नीलगाय किस प्रजाति का है इसको लेकर एकमत नहीं दिखाई देता। हालांकि 1992 में हुई फाइलोजेनेटिक स्टडी के अनुसार डीएनए की जांच से पता चला कि बोसलाफिनी (बकरी, भेड़ प्रजाति), बोविनी (गौवंश) और ट्रेजलाफिनी (हिरण प्रजाति) प्रजाति के जानवरों से मिलकर नीलगाय बनी है।
3. ईसा से 1000 साल पहले लिखे गए 'ऐतरेय ब्राह्मण' में भी नीलगाय का जिक्र मिलता है। उस वक्त इसकी पूजा भी की जाती थी। नवपाषाण काल और सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान भी मानव, नीलगाय के संपर्क में थे।
3. मुगल काल के दौरान इनके शिकार का भी जिक्र मिलता है। मुगल बादशाह जहांगीर की आत्मकथा में जिक्र मिलता है कि वे इसके शिकार पर काफी क्रोधित हो गए थे।
4. भारत के अलावा यह नेपाल, पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी पाया जाता है। 2001 में हुई गणना के मुताबिक भारत में इसकी संख्या करीब 10 लाख थी।
5. यह बिना पानी पिए कई दिन तक रह सकता है और खराब से खराब सतह पर बिना थके लंबी दूरी तक दौड़ सकता है। यह कम आवाज करता है लेकिन लड़ाई के वक्त बेहद तेज आवाजें निकालता है।
6. यह 200 किलो तक भारी होता है और कई बार तो बाघ भी इसका शिकार नहीं कर पाता। यह इतना अधिक ताकतवर होता है कि इसकी टक्कर से छोटी गाड़ियां पलट जाती हैं।
7. ये घने जंगल में जाने से परहेज करता है और घास, कंटीली झाड़ियों, छोटे पेड़ों वाले इलाके में रहना पसंद करता है। धीरे धीरे इन्होंने खाने के लिए खेतों की ओर जाना शुरु किया। तभी से मानव के साथ इनका संघर्ष शुरु हुआ है।
8. नीलगाय नाम (नील और गाय) से मिल कर बना है। नील उर्दू शब्द है जबकि गाय हिन्दी। मुगल बादशाह औरंगजेब के समय में इसे नीलघोर (नीला घोड़ा) कहा जाता था।
अब आप समझ चुके होंगे कि नीलगाय वास्तव में गाय नहीं है बल्कि हिरण, भेड़-बकरी प्रजाति का प्राणी है | और चूँकि बहुत ही शक्तिशाली प्राणी होता है, इसलिए कोई इसे भेड़-बकरी की तरह काबू में नहीं कर सकता | इसलिए भारत सरकार ने उसके शिकार की अनुमति प्रदान कर दी | और तीन दिन में २५० से अधिक नीलगायों को केवल तीन शिकारियों ने मौत के घाट उतार दिया | वास्तव में यह हमारे सरकार की अदुरदर्शिता का ही परिणाम है | मैं यह भी कह सकता हूँ कि सरकार में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जो इस समस्या का सार्थक समाधान खोजने में समर्थ हो |
भारत जैसी ही समस्या कभी रूस में भी थी रूस की सरकार ने समस्या को गम्भीरता से लिया रूस के कृषि और पुश वैज्ञानिकों ने नीलगाय परियोजना राष्ट्रीय स्तर पर लागू कर समस्या से किसानों को निजात ही नहीं दिलाया वरन् देश को दुग्ध आत्म निर्भरता भी प्रदान कराया । रूस के वैज्ञानिकों ने नीलगायों कों पालतू बनाकर उनसे दूध की प्राप्ति की और इनसे प्राप्त गोबर की खाद को खेतों में डालकर खाद्यान्न उत्पादन में बढ़ोत्तरी भी किया नीलगाय का दूध भैंस के दूध से अधिक पौष्टिक पाया गया है। नीलगाय के दूध और दही के सेवन से मनुष्य को कुपोषण से बचाया जा सकता है।
नीलगाय का दूध सफ़ेद रंग का होता है और भारी होता है | इसकी प्रकृति गर्म व स्वाद में मीठा होता है | इसका दूध मन को प्रसन्नचित रखता है यानि डिप्रेशन के मरीज के लिए लाभकारी है और साथ ही शरीर को शुद्ध करता है और धातु दोष को दूर करके ताकतवर बनाता है | हाँ इसके सेवन से पेशाब की मात्रा बढ़ जाती है | इसके दूध की तुलना घोड़ी के दूध से की जाती है | यदि पसलियों में दर्द रहता है तो नीलगाय के सींग का भस्म ४-४ रत्ती सुबह शाम शहद के साथ मिलाकर चाटें तो दर्द दूर हो जाता है |

आप सभी से अनुरोध है कि इसे पालने के विषय में गहनता से विचार करें.. हो सकता है कि नीलगाय कई गरीब किसानों के लिए वरदान सिद्ध हो जाए | ~विशुद्ध चैतन्य
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