18 जुलाई 2016

हम वास्तविकता से संभवतः पूरी तरह अवगत नहीं होते क्योंकि मिडिया नेताओं के चहेतों द्वारा चलाई जाती है


राष्ट्रीय मीडिया में कश्मीर छाया हुआ है, तो सोशल मिडिया में भी सभी अपने अपने तर्क दिए रहे हैं | किसी का कहना है कि बातचीत से समस्या सुलझानी चाहिए, तो कोई सैनिक कार्यवाही को सही बता रहा है | कोई आम नागरिकों के घायल होने व मारे जाने को दुर्भाग्यपूर्ण बता रहा है तो कुछ सैनिकों के शहादत को याद कर रहा है | कुछ १९८९ से अब तक मारे गये कश्मीरियों की गितनी गिना रहा है तो कुछ शहीद हुए सेना और पुलिस के शहीदों की लिस्ट दिखा रहे हैं | कुछ मुस्लिमों पर भारतीय सैनिकों द्वारा अत्याचार के रूप में मुद्दा उठा रहा है तो कोई इसे हिन्दू राष्ट्र बनाम मुस्लिम राज्य के रूप में देख रहा है.... यदि ध्यान दें सभी पर तो सभी अपने अपने दडबों में ही कैद हैं और वहीं से बांग लगा रहे हैं | बाहर निकल कर न कोई भारतीय के रूप में देख रहा है और न ही मानवीय रूप में | धर्म तो यहाँ कहीं दिख ही नहीं रहा, सभी रिलिजन, मजहब और राजनीती के कम्बलों में दुबके हुए हैं | जो खुद को राष्ट्रभक्त समझ रहे हैं और कश्मीर पर सैनिक कार्यवाही को सही मान रहे हैं, वे लोग आदिवासियों को और मणिपुरियों के लिए भी वही नजरिया रखे हुए हैं | क्योंकि इनको न तो कभी वहां जाना है और न ही रहना है, तो मरने दो जितने मरते हैं...


चलिए थोड़ी देर के लिए अपने अपने रिलिजन और मजहबों के दड़बे से बाहर आइये और भारतीय बनकर देखिये | कश्मीरी मारा जाए या सेना का जवान, आदिवासी मारा जाय या पुलिस का जवान... दोनों ही स्थिति में मारे निर्दोष ही जा रहे हैं | न नागरिकों का कोई दोष है और न ही सैनिकों का | नागरिक उग्रप्रदर्शन कर रहे हैं क्योंकि धैर्य जवाब दे गया और सैनिक दमन कर रहे हैं क्योंकि इसी काम के लिए उनको भेजा गया है | सैनिकों को आपकी समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं होता, उनका काम है हिंसात्मक विरोध को कुचलना | सैनिक या पुलिस को स्वविवेकानुसार चलने का अधिकार नहीं है, उसे केवल आदेशानुसार चलने का ही अधिकार है | जैसे शतरंज के मोहरे और उनमें भी पैदल मोहरे | यही सेना हरियाणा में शांति मार्च करती है और यही सेना कश्मीर या मणिपुर में रौद्र रूप धरती है | लोग सेना पर गुस्सा निकालते हैं, लेकिन वे यह नहीं समझ पाते कि इनकी अपनी विवशता है | यदि ये लोग अपने विवेक का प्रयोग करेंगे तो इनकी नौकरी जायेगी, कोर्टमार्शल तक हो सकता है | इनको जैसा आदेश मिलेगा वैसा ही करेंगे, चाहे मन मारकर करें, लेकिन करना पड़ेगा | इन सैनिकों में मुस्लिम भी होंगे, हिन्दू भी होंगे, सिख भी होंगे, ईसाई भी होंगे... लेकिन इन सबसे उपर ये राष्ट्रीय सेना के जवान हैं | राष्ट्रीय सेना का सञ्चालन राष्ट्रीय नेता करते हैं और उन राष्ट्रीय नेताओं को हम लोग चुनते हैं |

कश्मीर में भी जनता ने चुनाव में बढ़-चढ़ कर भाग लिया और अपना नेता चुना जिनमें पीडीपी की नेता भी थीं | लेकिन पीडीपी मौकापरस्त निकली और भाजपा के गले मिल गयी | भाजपा उन लोगों की पार्टी है जो हत्या, आगजनी और दंगा करने में महारत प्राप्त है | तो कश्मीर में यदि सेना दमनकारी नीति अपना रही है, तो पीडीपी और भाजपा की सहमती से ही ऐसा कर रही है |

यदि यहाँ तक स्पष्ट हो गया तो आगे बढ़ते हैं |

अब एक तरफ है राष्ट्रीय नेताओं की टीम और दूसरी तरफ है अलगावादी नेताओं की टीम | दोनों ही नेताओं की टीम में कोई अंतर नहीं है | दोनों के पास अपनी अपनी सेनाएं हैं, एक को आतंकी कहते हैं और दूसरी को राष्ट्रीय सेना | दोनों ही तरफ के नेता व्यक्तिगत स्वार्थ व अपने अपने पूंजीपति मित्रों, चहेतों को लाभ पहुंचाने के लिए जुमले सुनाते रहते हैं | दोनों ही तरह के नेता अपने अपने बच्चों को मारकाट, छल-कपट से दूर अच्छी शिक्षा और सुख सुविधाओ से युक्त जीवन दे रहे हैं, लेकिन सैनिकों और आम जनता को आपस में लड़ने मरने के लिए उकसा रहे हैं | इससे इनको दो लाभ होते हैं, एक इनको आर्थिक व राजनैतिक लाभ होता है और दूसरा देश की जनसँख्या नियंत्रित होती है | आदिवासी क्षेत्रों में ऐसा करके उद्योपति मित्रों व सहयोगियों को भूमि दिलाये जाते हैं | कश्मीर में आतंकवाद तो आदिवासी क्षेत्रों में नक्सलवाद और नार्थ ईस्ट में उल्फा, नागाउग्रवादी | और इनसे निपटने के नाम पर आम जनता को आतंकित किया जाता है | आम जनता के लिए एक तरफ कुआँ तो एक तरफ खाई है | अब इसे आप आसानी से समझ सकते हैं कि दो सेनाओं की इस लड़ाई में घाटे में कौन रहता है | आतंकियों के नेता तो दिन दूनी रात अमीर होते जाते हैं, और पूरी दुनिया की पुलिस और ख़ुफ़िया एजेंसी उनको खोजती रहती रहती है | वे लोग खुले आम भाषण भी देते हैं, लोगों से मिलते जुलते भी हैं, लेकिन ख़ुफ़िया एजेंसी उन्हें कभी खोज नहीं पाती | अभी हाल ही में हिलेरी क्लिंटन ने स्वीकार किया कि आइसिस के जनक अमेरिका ही है | उन्होंने कहा,  
 और अमेरिका को आइसिस से कितना लाभ हो रहा है आप खुद ही अनुमान लगा लीजिये | सबसे बड़ी बात कि उसके हथियार बिक रहे रहें हैं, कई देश बर्बाद हो रहे हैं... इससे अमेरिका का वर्चस्व ही नहीं, आमदनी भी बढ़ रही है | फिर एक खबर आप लोगों ने और पढ़ी होगी, इस्लामिक स्टेट के हाथों में पहुंच रहे हैं भारतीय हथियार, मीडिया खामोश | तो ये आतंकी वास्तव में हर देश की सरकार के लिए लाभकारी ही हैं | फिर वे आइसिस हों या अलकायदा या नक्सली, या नागा.... |

हम सभी के पास जो जानकारी है वह मिडिया से मिली जानकारी ही होती है, इसलिए हम वास्तविकता से संभवतः पूरी तरह अवगत नहीं होते क्योंकि मिडिया नेताओं के चहेतों द्वारा चलाई जाती है, इसलिए कौन सी खबर दिखानी है और कौन सी नहीं, वह नेता और मीडिया के मालिक ही तय करते हैं | फिर कितना ही बड़ा न्यूज़ चैनल यह अख़बार क्यों न हो, हैं तो अधिकांश गुलाम ही | यदि वे वैसा नहीं करेंगे, जैसा उनके मालिक चाहते हैं, तो वे बेरोजगार हो जायेंगे, कैसे पालेंगे वे अपने बीवी बच्चे ? क्या मीडिया में काम करने वाला हर व्यक्ति आत्मनिर्भर है, जो केवल सही का साथ देने के चक्कर में पंगा ले ले ? नहीं कोई भी नौकरीपेशा व्यक्ति आत्मनिर्भर नहीं है और न ही मिडिया या किसी भी अन्य संस्थानों में कार्यरत व्यक्ति... सभी को अपनी अपनी नौकरी की चिंता है | और इन्हीं गुलामों से मिली खबरों से सही और गलत को खोजना होता है | मिडिया पर पूरी तरह निर्भर नहीं रह सकते | सोशल मिडिया पर भी पूरी तरह से निर्भर होना ठीक नहीं, क्योंकि इनमें सभी तरह के लोग हैं और सभी की अपनी अपनी सोच व मानसिकता है |

यदि कश्मीरी पाकिस्तानी झन्डा लेकर नहीं निकलते, पाकिस्तान के पालतू पिल्लों का बहिष्कार करते और भारतीयों से नफरत नहीं करते, तो हर भारतीय उनके साथ होता | लेकिन कश्मीरी लोग इस्लामिक मानसिकता से ग्रस्त हैं, ऊपर से हिंदूवादी मूढ़ जो सनातन सिद्धांत का पुर्णतः त्याग कर चुके हैं, ये कश्मीरियों के जले में नमक छिड़क रहे हैं |

नेताओं के दोगलेपन का एक उदाहरण तो यही सामने है कि जो पीडीपी और भाजपा एक दूसरे के कट्टर विरोधी थे, सत्ता पाने के लिए एक दूसरे के गले मिल लिए | दूसरा उदाहरण अरुणाचल में आरएसएस के प्रचारक का यह कहना कि हमें बीफ खाने वालों से कोई आपत्ति नहीं है, उन्हीं के दुमछल्ले गौहत्या के नाम पर आतंक मचा रखे हैं | तीसरा उदाहरण इस लिंक पर जाकर देखिये.... दूसरों को भड़काते हैं, खुद के बच्चों को महफूज रखते हैं ये अलगावादी

तो राष्ट्र जब तक धर्म जाति, प्रान्त, राज्य, भाषाओँ में बंटा हुआ है, एक दूसरे के प्रति अविश्वास व असहयोग का भाव है, तब तक हम इन बंदरों के बंदर-बाँट में इसी प्रकार लुटते, मरते रहेंगे | यह ध्यान रखें कि आपका देश आपका अपना देश है, उसमें आपको शांति व सुख से रहने मिले, इसलिए हमने सरकार व सेना बनाई है | इसलिए नहीं कि सेनाओं का प्रयोग जनता को अपना गुलाम बनाने के लिए करे | यदि सरकार हमने चुनी है तो इसका अर्थ यह है कि हम गुलाम नहीं है और हमें पूरा अधिकार है अपना विरोध प्रकट करने का | लेकिन विरोध भारतीय बनकर करिए, पाकिस्तानी बनकर नहीं | इसलिए विरोध के अहिंसात्मक तरीके अपनाइए तब आपकी समस्या सरकार तो क्या उनका बाप भी सुनेगा | जैसे बस्तर के आदिवासियों ने बंद का आह्वाहन किया.... लोकतान्त्रिक देश के नागरिक हैं, लोकतान्त्रिक तरीका अपनाएँ यदि समस्या का समाधान चाहते हैं तो | सरकार भी हमने ही चुनी है, तो संवाद भी हमें ही करना है | अपनी ही चुनी हुई सरकार से युद्ध करना क्या विरोध के नाम पर क्या उचित है ?

यह भेदभाव, धर्म-जाति की दीवारें गिराइए और भारतीय हो जाइए | सभी को विश्वास में लीजिये और फिर अपना पक्ष रखिये | यह भी ध्यान रखें, यदि आप किसी पार्टी, रिलिजन, जाति के चश्में से समस्याओं को समझने या सुलझाने का प्रयास करेंगे तो कोई लाभ नहीं होगा, ऐसी समस्याओं को सांप्रदायिक दड़बों से निकलकर ही सुलझाया जा सकेगा | मिडिया से मिल रही ख़बरों को अवश्य पढ़िए, लेकिन अपने विवेक जो जागृत रखकर | दोनों पक्ष की मिडिया यानि सरकार समर्थक और जनता समर्थक मिडिया का पक्ष देखिये | यह भी ध्यान रखें कि किस मिडिया का मालिक किस पार्टी या नेता का वफादार है | यानि किसी भी खबर को सही मानने से पहले कई समाचार पत्रों और न्यूज़ चैनलों से खबर की पुष्टि करनी होगी | यह काम आसान नहीं है | ~विशुद्ध चैतन्य

नीचे कुछ लिंक दे रहा हूँ समय मिले तो इन्हें भी पढ़ें |



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