
हर परिवार की अपनी एक पहचान होती है, अपना ही अंदाज़ होता है, अपना ही व्यवहार होता है... जिससे वह पहचाना जाता है | इसी प्रकार हर गाँव, शहर राज्य, देश की अपनी पहचान होती है अपनी संस्कृति होती है, अपनी भाषा, खानपान, रहन-सहन होता है | व्यक्तियों के समूह को परिवार कहते हैं और परिवारों के समूह को गाँव कहते हैं, गाँवों के समूह को शहर कहते हैं और शहरों के समूह को जिला कहता है, जिलों के समूह को राज्य कहते हैं और राज्यों के समूह को देश कहते हैं |
सनातन धर्म का मूल सिद्धांत सर्वधर्म समभाव और वसुधैव कुटुम्बकम प्रकृति पर आधारित था | जैसे कि हम किसी वन में चले जाएँ तो वहां भिन्न भिन्न रंगों, आकार, प्रकार फूल, पेड़-पौधे व वन्य जीव मिलेंगे | और वन में सभी के लिए स्थान है सभी रहते हैं और सभी आपस में सहयोगी हैं किसी न किसी रूप में | हम वहाँ सहअस्तित्व के महत्व को सही रूप में समझ सकते हैं | इसी सह-आस्तित्व को हमने नाम दिया वसुधैव कुटुम्बकम और प्रत्येक प्राणी की अपनी स्वतंत्रता, आचार-विचार का जिस प्रकार सम्मान वन्य जीव देते हैं, वही मानव भी अपने व्यवहार में लायें इसलिए उसका नाम दिया सर्वधर्म समभाव |

जितना हिंदुत्व नाम के दड़बे के ठेकेदारों ने उपद्रव किया, उसका परिणाम यह हुआ कि नार्थईस्ट में भारतीय संस्कृति के प्रति जो सम्मान था, जो अपनापन था वह सब खो दिया भारत ने | उनको तो अब अपनी ही संस्कृति रास नहीं आ रही और मणिपुर ने तो भारतीय फिल्मो को ही बैन कर दिया | वैसे भी भारतीय फ़िल्में भारतीय संस्कृति से अधिक पाश्चात्य संस्कृति ही परोसती है, तो उसका बैन होना ठीक ही है | लेकिन वे तो मणिपुरी संस्कृति के भी विरोधी हो गये और कोरियन संस्कृति को अपना लिए |
वास्तव में कोरियन संस्कृति है क्या ?

तो यह सब हम भारतीय खो चुके हैं, यहाँ तो दो दिन पहले पैदा हुआ बच्चा भी अपने बाप को माँ-बहन की गाली सुना देगा तो किसी को कोई आश्चर्य नहीं होगा, बल्कि उसकी पीठ थप-थपायेंगे और कहेंगे बिलकुल अपने बाप पर गया है | हम भारतीय सनातन धर्म के सिद्धांत को उठाकर गटर में फेंक चुके हैं | हमने संकीर्णता और कूपमंडूकता को आत्मसात कर लिया | हम उनका साथ देने लगे जो संकीर्ण मानसिकता के हैं और दूसरों से घृणा व द्वेष रखने के लिए उकसाते हैं | हम नफरत के सौदागरों को अपना आदर्श मानने लगे और न केवल धर्म व जाति के आधार पर ही नहीं, बल्कि खान-पान, रहन सहन, भाषा व प्रान्तों के आधार पर भी भेदभाव करने लगे | हम दूसरों के निजी जीवन में दखल देने लगे क्योंकि हमको इस्लामिक कट्टरपंथी रीती-रिवाज राज आने लगी | हमने अनजाने ही कबीला संस्कृति को स्वीकार लिया और बिलकुल इस्लामिक देशों की नकल करने निकल पड़े | पाकिस्तान या बांग्लादेश हिन्दुओं को मारता है तो हम भी मुस्लिमों को मारेंगे वाली मानसिकता का प्रभाव बढ़ गया क्योंकि हमने सनातन धर्म के आदर्शों को तिलांजलि दे दिया और इस्लाम अपना लिया | वैसे भी किसी ने भविष्य वाणी की थी कि जल्दी पूरे विश्व में इस्लाम का ही वर्चस्व होगा | क्योंकि नफरत करना हम मानवों की फितरत है |
यदि हम ध्यान से देखें तो इस्लामिक कानून और हिंदुत्व के ठेकेदारों द्वारा अपनाये जा रहे कानूनों में कोई भेद नहीं है... न इस्लाम दुसरे मतों और मान्यताओं को स्वीकार कर पाता है और न ही, हिंदुत्व के ठेकेदार | दोनों ही धर्मों के ठेकेदार मुझे कुम्भ में बिछड़े जुड़वाँ भाई ही दिखाई देते हैं |
खंड-खंड में बिखर जाएगा भारत क्योंकि मुस्लिम सऊदी को बुला लायेंगे, संघी अंग्रेजों को बुला लायेंगे, इसाई अमेरिका को बुला लायेंगे, बौद्ध जापान को बुला लायेंगे... क्योंकि इस देश में भारतीय बचे ही नहीं है | सनातन धर्म को मानने वाले लोग स्वतः ही मिट जायेंगे यदि उनकी मौत किसी कट्टरपंथी के हाथों नहीं हुई | क्योंकि उसके बाद इस देश में सभी आपस में लड़ रहे होंगे | मुस्लिम कहेंगे इस्लामिक राष्ट्र होना चाहिए, संघी कहेंगे हिन्दू राष्ट्र होना चाहिए, बौद्ध कहेंगे बौद्ध राष्ट्र होना चाहिए.....इसी तरह से सभी आपस में लड़-मरेंगे | तो मणिपुर, नागालेंड शायद तब तक अलग हो जाएँ और अपना स्वतंत्र राष्ट्र बना लें |
मेरे विचारों पर टिपण्णी करने से पहले यह अवश्य चिन्तन-मनन करियेगा कि क्या आप सनातनी हैं, या अपने दड़बे में कैद हैं ? क्या आप मुक्त हो पाए संकीर्णता से या अभी भी संकीर्णता को ही धर्म मानकर जी रहे हैं ? ~विशुद्ध चैतन्य
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