"मनुष्य
न तो कोरी बुद्धि है, न स्थूल शरीर है, और न केवल हृदय या आत्मा ही है |
सम्पूर्ण मनुष्य के निर्माण के लिए तीनों के उचित और एकरस मेल की आवश्यकता
होती है और यही शिक्षा की सही व्यवस्था है |" -महात्मा गाँधी
जब
मैं कहता हूँ कि किताबी धर्म और किताबी ज्ञान से न कोई धार्मिक बन सकता है
और न ही कोई विद्वान ही बन सकता है, तो सभी धार्मिक और पढ़े-लिखों की नजर
में पापी, अधर्मी, नास्तिक और न जाने क्या क्या घोषित हो जाता हूँ |
विद्वान लोग मुझे क़ुरान की मीठी-मीठी बातें दिखाने लगते हैं या फिर वेद,
गीता पढ़ाने लगते हैं | फिर यह भी कहते हैं कि जो लोग अधर्म के मार्ग में
हैं वे भटके हुए हैं, या फिर किताबों को ठीक से नहीं समझे | ये लोग जो भटके
हुए हैं उन्हें नहीं पढ़ाते अपनी ईश्वरीय किताबें बल्कि मुझे भटका हुआ
सिद्ध करने में रात दिन एक कर देते हैं | संविधान के जानकार कभी भ्रष्ट
जजों और वकीलों को संविधान या कोई धार्मिक ग्रन्थ नहीं पढ़ाते, बल्कि जमाना
ही ख़राब है का डायलॉग मार देते हैं |
कोई भी किताब मानव
रचित ही हैं, ईश्वर रचित नहीं | यदि ईश्वर को किताब ही लिखनी होती तो सभी
जीवों के लिए लिखते, जितने भी जीव हैं ब्रह्माण्ड में, सभी को एक एक किताब
आवश्य देते क्योंकि ईश्वर भेदभाव नहीं करते, क्योंकि सभी उन्हीं की संतान
है | और लिखी हुई सभी बातें अकाट्य सत्य नहीं हो सकतीं क्योंकि इनमें
हेर-फेर हो सकते हैं, जैसे भूमाफिया भूमि के दस्तावेजों में हेरफेर करके
किसी गरीब की भूमि ही हड़प लेते हैं और वह बेचारा सर पटक कर मर जाए, लेकिन
कोर्ट में अपने असली दस्तावेज को असली सिद्ध करने के लिए वकीलों और जजों को
खरीदने की कीमत न चुका पाता | जिसके कारण उसके असली दस्तावेज भी नकली
सिद्ध कर दिए जाते हैं | किसी और की छोड़िये, हमारे आश्रम की जमीन में दो
एकड़ से अधिक भूमि भूमाफियाओं के कब्जे में हैं और हमारे पास असली दस्तावेज
होते हुए भी कोर्ट में चक्कर लगा रहे हैं सालों से |
तो
संविधान हो या धर्मग्रन्थ... सभी किताबी ज्ञान ही है और वे तभी सार्थक हैं
जब वे व्यव्हार में लाये जाएँ | रटने, रटाने या मुझे पढ़ाने से समस्या का
समाधान नहीं होगा, समस्या का समाधान तभी होगा, जब आप लोग उन्हें पढ़ाने जाएँ
जो न्याय व्यवस्था को आय व्यवस्था में परिवर्तित कर चुके हैं, उन्हें
पढ़ाएं जो झूठे वादे करके सत्ता में पहुँचते हैं और फिर जुमला बोलकर जनता का
मजाक उड़ाते हैं | उन्हें पढ़ायें अपनी ईश्वरीय किताबें जो जनता का सेवक
होने का दंभ भरते हैं, लेकिन पूंजीपतियों के गुलाम बने जीते हैं | उन्हें
पढ़ाएं अपना धार्मिक ईश्वरीय ग्रन्थ जो आज तक देश के किसानों और आदिवासियों
के हितार्थ कोई सार्थक कदम नही उठा पाए, उलटे उन्हें विवश कर रहे हैं अपनी
जमीनें कारखानों और मॉल मालिकों को बेचने के लिए | उन्हें अपना ईश्वरीय
किताबें पढ़ाएं जो ईश्वरीय सम्पदा यानि वन, जल, खनिज, पर्यावरण वायु को नष्ट
कर रहे हैं विकास के नाम पर | मुझे मत पढ़ाइये अपनी ईश्वरीय किताबें, न ही
मुझे बताइये कि कितने अच्छी अच्छी बातें लिखीं हैं किताबों मैं | मैं खुद
'सुविचार' नाम के गुरुप का एडमिन हूँ जिसमें साठ हज़ार से अधिक मेम्बर
हैं... तो दिन भर सैंकड़ो सुविचार, नैतिकविचार उसमें पढ़ते ही रहता हूँ....
जितने उसमें पोस्ट होते हैं, उतने तो आपके किसी भी धार्मिक ग्रन्थ में नहीं
मिलेंगे.... लेकिन शायद उन्हें पढ़ने या पोस्ट करने वालों को उन सुविचारों
का अर्थ भी समझ में आता हो या कभी सोचा हो कि उसे व्यवहार में भी लाना होता
है |
लेकिन वहीँ आप कभी हाथी के झुण्ड को देखें तो वे
सभी अनुशासित होते हैं, स्वविवेक से, सनातन नियमों से | आप पृथ्वी को ही
देखें तो निश्चित लय ताल में वह सूर्य की परिक्रमा करती है और निश्चित समय
में एक परिक्रमा पूरी करती है | उसे किसी धार्मिक ग्रन्थ, विज्ञान आदि पढ़ने
की आवश्यकता नहीं होती और न ही उसे घड़ी या केलेंडर देखने की आवश्यकता होती
है | सभी घुमन्तु जीवों को आप ध्यान दें, पक्षियों को ध्यान दें तो वे एक
निश्चित समय में किसी स्थान विशेष पर मिलेंगे.. क्या वे कोई केलेंडर देखकर
चलते हैं ? नहीं वे सनातन नियमों के अंतर्गत चलते हैं |
पढ़े
लिखों ने जितनी क्षति सृष्टि को पहुंचाई है विकास के नाम पर, उतनी किसी भी
जीव जंतु या आदिवासियों ने नहीं पहुँचाई | कृषियोग्य भूमि को भी दुनिया भर
के कैमिकल के प्रयोग से आज बंजर बनाने का श्रेय भी इन पढ़े-लिखे, वैज्ञानिक
सोच के लोगों को ही जाता है | आज धर्म के नाम पर जितने उपद्रव व अराजकता
फैली हुई है, वह भी भी इन्हीं पढ़े-लिखों को ही जाता है | तो ये किताबी
ज्ञान आपको न तो धर्मसमझा सकते हैं और न ही आध्यात्म...केवल आपको ढोंगी और
पाखंडी ही बना सकते हैं | परमहंस रामकृष्ण स्वयं अनपढ़ थे, लेकिन आज उन्हें
पढ़ने वाले पीएचडी भी हैं, फिर भी परमहंस के अध्यात्मिक अनुभव व ज्ञान का
अंश भर भी नहीं ले पाए |
कल ही मैं पुस्तक विमोचन समारोह
में आमंत्रित था, तो वहां रामकृष्ण मिशन के एक सन्यासी भी अतिथि था | जब
हमे मंच पर आमंत्रित किया गया तो मैंने देखा कि रामकृष्णमठ के ही कार्यक्रम
में विवेकानंद पर कोई कोई कुछ कह रहा है, और वे आपस में बातचीत करने में
व्यस्त थे.. उन्हें यही नहीं पता कि मंच पर आसीन होने का अर्थ क्या होता है
| संयोजक ने उन्हें टोंका भी, लेकिन वे न केवल अपनी बातचीत रोके, उलटे फोन
पर जोर जोर से बातें भी करने लगे..... तो किताबें पढ़ लेने से, रिसर्च कर
लेने से आप ज्ञानी नहीं हो जाते |