19 अक्टूबर 2016

नियोग उस समय का सबसे सुलझा हुआ प्रयोग था


ट्रिपल तलाक के मुद्दे पर हिन्दू संप्रदाय के कूद पड़ने से और विशेषकर संघियों के कूदने से मुस्लिम समुदाय आहत हैं | अब यह स्वाभाविक ही है कि जब कोई आहत होता है तो वह सही गलत नहीं देखता, दूसरों को कैसे आहत किया जाए उस प्रयास में लग जाता है | ऐसे समय में उसका विवेक व आत्मा मर जाती है और इतिहास खोदना शुरू कर देते हैं |


जैसे यह स्क्रीन शॉट काफी चर्चा में है और मुस्लिम बड़े शान से इसे शेयर कर रहे हैं... उन्हें ऐसा लग रहा है कि ट्रिपल तलाक का विरोध कर रहे हिन्दुओं के विरुद्ध उन्हें कोई बहुत ही घातक रामबाण हथियार मिल गया  :)

मैं सामान्यतः मुस्लिमों के उत्पात या बेतुके विरोधों पर कोई अभियक्ति नहीं देता, क्योंकि मेरा उद्देश्य किसी सम्प्रदाय विशेष के विरोध में उपद्रव करना नहीं है, केवल अपने ही देश में जो असमानता व अराजकता है, उसके कारणों को समझना और उसपर समाज का ध्यान दिलाना मात्र है | लेकिन कई बार ऐसी परिस्थिति भी आ जाती है कि न चाहते हुए भी ऐसे विवादों पर उतरना पड़ता है | जैसे आस्तिकता, करवाचौथ और अब यह नियोग |

तो मैं आगे कुछ कहूँ, उससे पहले हिन्दुत्व के ठेकेदारों से कहना चाहता हूँ कि मुझे अपने दड़बे का चूजा न समझें और मुस्लिमों से कहना चाहता हूँ कि मुझे अपने दड़बे का विरोधी न समझें | मैं सनातनी हूँ और सनातनी ही रहूँगा, किसी दड़बे के अंतर्गत नहीं हूँ मैं और न ही किसी धर्म के ठेकेदार को महत्व देता हूँ |

तो नियोग को लेकर मुस्लिम उछल रहे हैं... लेकिन क्या कोई मुस्लिम यह सिद्ध कर सकता है कि यह नियोग विधि का चलन वर्तमान हिन्दू समाज में बिलकुल वैसे ही प्रचलित है, जैसे कि ट्रिपल तलाक मुस्लिमों में प्रचलित है ? क्या कोई मुस्लिम विद्वान मुझे ऐसा कोई उदाहरण दे पायेगा, जिसमें यह सिद्ध होता हो कि हिन्दू भी मुस्लिमों की तरह ईश्वरीय आदेश मानकर वेदों को ढोते हैं और वही करते हैं जो वेदों में लिखा है, फिर चाहे वह सही हो या गलत ?

नहीं दिखा पायेंगे...क्योंकि हिन्दू समाज यानि भारतवर्ष में रहने वाला वह समाज जो विभिन्न मत मान्यताओं के मिश्रण के साथ सहजता से रहना जानता है, निरंतर प्रगति करना जानता है, वह पूर्वजों द्वारा लिखी गयी किताबों को ईश्वरीय ग्रन्थ मानकर ढोना नहीं चाहता, बल्कि आगे बढ़ना चाहता | हिन्दू समाज कोई ठहरा हुआ समाज नहीं है | यह सही है कि बहुत से लोग हिंदुत्व के नाम पर उपद्रव मचा रहे हैं, लेकिन वे उसी तरह हिंदुत्व से अनभिज्ञ लोग हैं, जिस प्रकार आइसिस, अलकायदा आदि इस्लाम से अनभिज्ञ व भटके हुए हैं | यह हिन्दू समाज की उदारता ही है कि यहाँ सभी को अपने अपने मत-मान्यताओं के साथ जीने का अधिकार है और आज भी कट्टरपंथी, कूपमंडूक, मूढ़ हिन्दुओं के विरुद्ध हिन्दू ही सबसे पहले खड़े होते हैं |

ऐसे हिन्दू समाज को आप नियोग और वेदों के नाम पर लांछित करना चाहते हैं क्या यह सही है ?

चलिए अब नियोग पर ही चर्चा कर ली जाए |

नियोग यानि पति के रहते हुए, पति की इच्छा से, परपुरुष से गर्भधारण करना पत्नी के द्वारा | इसे आपका इस्लामिक समाज पाप मानता है, अधर्म मानता है, लेकिन आपका ही इस्लामिक समाज गोद ली बच्ची से विवाह करने को जायज मानता है | और इरान में यह स्वतंत्रता दे दी गयी है कि जिसे कल तक बेटी कहकर कोई पाल-पोस रहा था, उससे वह विवाह कर सकता है | मुँह बोली बेटी से विवाह करना पाप नहीं है आपके समाज में, तो फिर नियोग को लेकर इतना उछल क्यों रहे हो ?

नियोग उस समय का सबसे सुलझा हुआ प्रयोग था | प्रयोग कहिये या व्यवस्था लेकिन मैं प्रयोग ही कह रहा हूँ | क्योंकि उस समय टेस्टट्यूब बेबी या स्पर्म बैंक चलन में नहीं आया था | उस समय ब्लड बैंक भी नहीं हुआ करते थे | तो यह ऐसी व्यवस्था थी, जिससे पति-पत्नी के आपसी प्रेम या सहयोगिता बाधित नहीं होती थी | पति यदि संतानोत्पति में अक्षम होता था, तो पत्नी को यह अधिकार प्राप्त हो जाता था, कि वह नियोग से गर्भधारण करे | और नियोग भी कोई गुपचुप चोरी-छुपे वाला नहीं होता, बल्कि पूरा विधान होता था | तो यह हमारी भारतीय संस्कृति की उदारता का ही परिचय देता है, कोई शर्मिंदगी वाली बात नहीं है | लेकिन आज स्पर्म बैंक उपलब्ध हैं, टेस्टट्यूब बेबी कि सुविधा उपलब्ध है, इसलिए नियोग की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती |

लेकिन कम से कम पुरुष अक्षम हो तो वह पत्नी को तीन बार तलाक कहकर अपने दोष छुपा तो नहीं सकता था | न ही बच्चे के लिए, उसे अपनी प्रिय पत्नी को त्याग कर दूसरा विवाह करने कि आवश्यकता पड़ती थी | फिर नियोग जैसी व्यवस्था भी विशेष परिस्थिति में ही अपनाई जाती थी, न कि हलाला जैसी कोई परिस्थिति बनाई जाती थी कि यदि क्रोध में कोई पति तलाक दे दे और फिर अपनी गलती स्वीकार करके उसे वापस पाना चाहे तो पत्नी को पहले दूसरे मर्द से विवाह करके तलाक लेना पड़ेगा, फिर वह उससे दुबारा विवाह कर पायेगा | यदि पति पत्नी आपस में राजी हैं और सम्बन्ध विच्छेद नहीं करना चाहते, तो फिर हलाला क्यों ?

अंत में फिर से एक बार ध्यान से समझ लीजिये कि हिन्दुओं का समाज आगे बढ़ना पसंद करता है, अनावश्यक परम्पराओं को ढोना नहीं | पति-पत्नी का रिश्ता शरीर और आत्मा का माना जाता है, इसलिए नियोग व्यवस्था भी हिन्दुओं ने बरसों पहले ही त्याग दिया था | लेकिन आप लोग तो आज तक ट्रिपल तलाक और वह भी फोन पर, या सोती हुई पत्नी को देना अपराध नहीं समझ रहे | आप लोग तो आज तक हलाला से मुक्त नहीं हो पाए... क्योंकि वह ईश्वरीय आदेश है आप लोगों के लिए...हिन्दुओं के ईश्वर ऐसे कोई आदेश नहीं देते | ~विशुद्ध चैतन्य


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