04 दिसंबर 2014

...ताकि परम्परा बनी रही और किसी धार्मिक ग्रंथों का अपमान भी न हो...



सदियों से एक परम्परा चली आ रही है न्यायालयों में, धार्मिक ग्रंथों पर हाथ रखकर कसम खिलाने की | मेरी आज तक समझ में नहीं आया कि ऐसा करके वे लोग किसको मुर्ख बना रहें हैं ? यदि अपराधी प्रवृति का होगा, तो धार्मिक ग्रन्थों का मूल्य ही क्या है उसके लिए ? यदि वह धर्म-कर्म में श्रृद्धा रखता, तो अपराध करता ही क्यों ? और जो वास्तव में धर्मपथ पर हैं, वे अपराध करेंगे ही क्यों ?

यह आज सर्वविदित है कि न्यायालय न्यायिक संसथान नहीं, व्यावसायिक संस्थान है | जो मोल देने की योग्यता रखता है, न्याय उसे ही मिलता है | फिर यह आवश्यक नहीं कि जो छूट गया वह दोषी न हो और जो जेल गया वही दोषी ही हो | ऐसे कई उदाहरण हमने विगत वर्षों में देखे, जिसमें अपराधी उच्च पदों पर आसीन होते गए, और निर्दोष धनाभाव के कारण अन्याय सहने को विवश हो गया | हो सकता है आप में से ही कोई इस सत्य को स्वयं अपने जीवन में भुगता हो ?

आज भी कई बड़े बड़े घोटाले बाज सत्ता में आसीन हैं, और न्यायालयों में रस्म अदायगी चल रही है | वकील तारीख पर तारीख लेने की अपनी दक्षता को ही अपनी योग्यता मान रहें हैं |

जब धर्म ग्रन्थ का कोई पन्ना जला देने के झूठे आरोप में भी किसी को जिंदा जला दिया जाता है, धर्म के नाम पर क़त्ल-ए-आम कर दिया जाता है, धर्मग्रंथों को समझने और उसे व्यव्हार में लाने से अधिक रटने और रोज केवल पढ़ने के रस्म को महत्व दिया जाता है, जरा जरा सी बात पर धर्म का अपमान हो जाता है, धर्म खतरे में पड़ जाता है.....तब ऐसे में धर्मग्रंथों को साक्ष्य मानकर कसम खिलाने पर न्यायालयों में धर्म का अपमान क्यों नहीं हो रहा ? वहाँ धर्म खतरे में क्यों नहीं पड़ता ? आज तक किसी धर्म के ठेकेदार ने इस परम्परा का विरोध क्यों नहीं किया ? कभी किसी ने क्यों नहीं कहा कि कसम खिलाने की रस्म ही निभानी है, तो जज या वकील के सर पर हाथ रख कर कसम खिलाई जाए, ताकि परम्परा बनी रही और किसी धार्मिक ग्रंथों का अपमान भी न हो ? ~विशुद्ध चैतन्य

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