एक शीशा लीजिये और किसी एकांत में ऐसी जगह चले जाएँ, जहाँ आप जोर से चिल्लाकर कुछ भी कहें कोई परिचित न हो सुनने वाला | अब आप शीशे को ध्यान से देखें और उसकी जितनी भी बुराई आपको पता हो वह जोर जोर से बोलकर उसकी जितनी निंदा हो कीजिये | उसके बाद आँखें बंद कर लें दस मिनट के लिए और सारा ध्यान अपनी साँसों की गति पर केन्द्रित रखें |
फिर आँखें खोलें और अपने अनुभव को लिख लें | फिर दोबारा शीशा उठायें और फिर शीशे में दिखने वाले व्यक्ति की जितनी भी प्रशंसा (वास्तविक) कर सकते हों करें | फिर आँखें बंद कर लें और साँसों की गति पर ध्यान केन्द्रित करें | जो अनुभव हों लिख लें |
यह ध्यान की एक ऐसी विधि है जो सुनने में बहुत ही आसान लगती है, लेकिन जब करने बैठते हैं तो पसीने छूट जाते हैं | पहले के एक दो दिन तो चलो किसी तरह कोई कर भी ले..... लेकिन हफ्ता गुजरते गुजरते वह जब अपने भीतर के वास्तविक व्यक्ति को सामने शीशे में देखना शुरू कर देता है, तो..... आप प्रयोग करके देखिये पता चल जाएगा | :) ~विशुद्ध चैतन्य
फिर आँखें खोलें और अपने अनुभव को लिख लें | फिर दोबारा शीशा उठायें और फिर शीशे में दिखने वाले व्यक्ति की जितनी भी प्रशंसा (वास्तविक) कर सकते हों करें | फिर आँखें बंद कर लें और साँसों की गति पर ध्यान केन्द्रित करें | जो अनुभव हों लिख लें |
यह ध्यान की एक ऐसी विधि है जो सुनने में बहुत ही आसान लगती है, लेकिन जब करने बैठते हैं तो पसीने छूट जाते हैं | पहले के एक दो दिन तो चलो किसी तरह कोई कर भी ले..... लेकिन हफ्ता गुजरते गुजरते वह जब अपने भीतर के वास्तविक व्यक्ति को सामने शीशे में देखना शुरू कर देता है, तो..... आप प्रयोग करके देखिये पता चल जाएगा | :) ~विशुद्ध चैतन्य
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