जेल में बंद एक साथी ने बताया था कि शिमला में चोरी करना आसान है। पुलिस का भी ज्यादा पहरा नहीं रहता। वहां के मंदिरों की सुरक्षा भगवान भरोसे रहती है। वहां के मंदिरों में खूब चढ़ावा चढ़ता है। एक अच्छा हाथ लगने पर कई महीने ऐशो आराम से गुजार सकते हो। उसकी बातों में आकर उन्होंने शिमला आकर किसी एक बड़े मंदिर में चोरी करने की ठान ली।
जब चोरों ने पुलिस को यह सब बताया तो पुलिस बेचारी शर्म से पानी पानी हो गयी | शर्म से तो उनको भी पानी पानी हो जाना चाहिए था जो कहते हैं कि ईश्वर आपकी सुरक्षा करेगा.... चोरी करना पाप है.... आदि इत्यादि | चोरों को ईश्वर का भय नहीं है और न ही नेताओं को भय है ईश्वर का | न अपराधियों को भय है ईश्वर का और न ही धर्म के ठेकदारों को भय है ईश्वर का | लेकिन भयभीत वे लोग हैं जो बेचारे ईमानदारी से जीते हैं.... नौकरी बच्चे और बीवी तक सीमित रहते हैं.... टैक्स भरते हैं दुनिया भर का और ऊपर से मंदिरों में चढ़ावा चढ़ाते हैं सारे खर्चे काटकर बचे पैसों में से |
यदि ईश्वर का भय धर्मों के ठेकेदारों को होता तो वे अपने अपने बाड़े नहीं बनाकर रखते और दूसरे बाड़ों के लोगों पर अत्याचार न कर रहे होते | कहते हैं कि पाप करोगे तो ईश्वर सजा देगा, लेकिन खुद निर्दोषों की हत्या करते और मासूमों के साथ बलात्कार करते समय खुद को ईश्वर से भी ऊपर मान लेते हैं ये ठेकेदार | देश की संपत्ति और जनता का धन विदेशी बैंकों में जमा करवाते समय नहीं सोचते कि ईश्वर सब देख रहा है लेकिन भोले भले लोगों को डरा रखा है कि ईश्वर उनको सजा देगा |
ईश्वर मिथ्या नहीं है. लेकिन वह भी अब इन स्वार्थी भक्तों को पहचानने लगा है | वह भी उन भक्तों को खोजता है जो निःस्वार्थ सेवा व भक्ति करता हो | वह भी मूर्ति पूजकों से अधिक उन लोगों को खोजता है जो मानव पूजक हों | जो सहयोगी भाव रखता हो बिना व्यापारिक शर्त रखे | वह उन लोगों की मन्नत शायद न भी सुने जो सवा पाँच रूपये या सवा करोड़ रूपये का चढ़ावा चढ़ाते हैं मन्नत पूरी होने की शर्त पर | लेकिन उनकी समस्या अवश्य सुलझा देता है जो किसी की सहायता कर देते हैं बिना कोई शर्त रखे | ~विशुद्ध चैतन्य
जब चोरों ने पुलिस को यह सब बताया तो पुलिस बेचारी शर्म से पानी पानी हो गयी | शर्म से तो उनको भी पानी पानी हो जाना चाहिए था जो कहते हैं कि ईश्वर आपकी सुरक्षा करेगा.... चोरी करना पाप है.... आदि इत्यादि | चोरों को ईश्वर का भय नहीं है और न ही नेताओं को भय है ईश्वर का | न अपराधियों को भय है ईश्वर का और न ही धर्म के ठेकदारों को भय है ईश्वर का | लेकिन भयभीत वे लोग हैं जो बेचारे ईमानदारी से जीते हैं.... नौकरी बच्चे और बीवी तक सीमित रहते हैं.... टैक्स भरते हैं दुनिया भर का और ऊपर से मंदिरों में चढ़ावा चढ़ाते हैं सारे खर्चे काटकर बचे पैसों में से |
यदि ईश्वर का भय धर्मों के ठेकेदारों को होता तो वे अपने अपने बाड़े नहीं बनाकर रखते और दूसरे बाड़ों के लोगों पर अत्याचार न कर रहे होते | कहते हैं कि पाप करोगे तो ईश्वर सजा देगा, लेकिन खुद निर्दोषों की हत्या करते और मासूमों के साथ बलात्कार करते समय खुद को ईश्वर से भी ऊपर मान लेते हैं ये ठेकेदार | देश की संपत्ति और जनता का धन विदेशी बैंकों में जमा करवाते समय नहीं सोचते कि ईश्वर सब देख रहा है लेकिन भोले भले लोगों को डरा रखा है कि ईश्वर उनको सजा देगा |
ईश्वर मिथ्या नहीं है. लेकिन वह भी अब इन स्वार्थी भक्तों को पहचानने लगा है | वह भी उन भक्तों को खोजता है जो निःस्वार्थ सेवा व भक्ति करता हो | वह भी मूर्ति पूजकों से अधिक उन लोगों को खोजता है जो मानव पूजक हों | जो सहयोगी भाव रखता हो बिना व्यापारिक शर्त रखे | वह उन लोगों की मन्नत शायद न भी सुने जो सवा पाँच रूपये या सवा करोड़ रूपये का चढ़ावा चढ़ाते हैं मन्नत पूरी होने की शर्त पर | लेकिन उनकी समस्या अवश्य सुलझा देता है जो किसी की सहायता कर देते हैं बिना कोई शर्त रखे | ~विशुद्ध चैतन्य
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