मुझे लोग पहले नास्तिक मानते थे... फिर ध्यान आदि के कारण लोग मुझे आस्तिक मानने लगे और बाद में गेरुआ के कारण लोग मुझे धार्मिक मानने लगे | धार्मिक होना या दिखना बहुत ही आसान है, लेकिन होशपुर्ण रहकर आध्यात्मिक होना बहुत ही कठिन है क्योंकि आध्यात्मिक होने के लिए स्वयं का अध्ययन करना आवश्यक है |
हम बचपन से अधिकाँश जीवन दूसरों द्वारा थोपे गये विचारों और संस्कारों में जीते हैं | कई बार तो पूरे जीवन में हम यह जान ही नहीं पाते कि हमारी पसंद और स्वाभाविक गुण क्या है | हम मुस्कुराते भी हैं तो दिखाने के लिए मुस्कुराते हैं, स्वाभाविक मुस्कराहट से भी परिचय नहीं हो पाता हमारा | हम सभी को खुश रखने का प्रयास करते हैं, जबकि यह एक असंभव कार्य है स्वयं के आस्तित्व को खोये बिना |
एक नास्तिक आपको तब तक स्वीकार करेगा जब तक आप भी नास्तिक हैं | एक धार्मिक आपको धार्मिकता के आधार पर स्वीकार करेगा और आस्तिक आपको आस्तिकता के आधार पर ही स्वीकार करेगा | लेकिन एक अध्यात्मिक व्यक्ति आपको आपकी मान्यताओं के आधार पर नहीं, आपके व्यवहारों और भाषा की शालीनता के आधार पर स्वीकार करेगा | लेकिन कोई एक पक्ष ही आपसे खुश होगा सभी खुश नहीं रह सकते आपसे | आप तो क्या, ईश्वर से भी सभी खुश नहीं रहते |
इसलिए लोगों को खुश करने में अपना समय व्यर्थ मत कीजिये, स्वयं को महत्व दीजिये | लेकिन इसमें आप कई लोगों से दूर हो जायेंगे, विशेषकर नकली शुभचिंतकों से | हाँ अभिनय की आवश्यकता भी पड़ती है हमको क्योंकि हमें समाज में रहना है | वर्ना मेरी तरह स्थिति हो जायेगी और एकांकी जीवन जीना पड़ेगा | एक समय ऐसा आ जाएगा जब लगेगा कि किसी के साथ रहना बोझ है क्योंकि सामने वाला आपको समझ ही नहीं पायेगा और न ही आप समझा पायेंगे | आप दुर्वासा की तरह क्रोधी हो जायेंगे या फिर आप गौतम बुद्ध की तरह शांत हो जायेंगे या फिर श्री श्री रवि शंकर की तरह चिरस्थाई मुस्कान लिए रहेंगे | लेकिन जो कुछ भी होंगे और जैसे भी हैं उसे स्वीकारने में ही उत्थान है | जीवन के किसी मोड़ में आपको एक न एक ऐसा व्यक्ति मिल ही जाएगा जो आपको बिना बदले स्वीकार लेगा और वही होगा आपका वास्तविक सोलमेट |
बस इस बात का ध्यान रखें कि न तो दूसरों के जीवन में हस्तक्षेप करें और न ही किसी को यह अधिकार दें कि वह आपके जीवन में अनावश्यक हस्तक्षेप करें | जो आपके साथ चल सकता है चलने दीजिये लेकिन यदि उसके कारण अपने मार्ग से अलग मत हटिये | एक दिन ऐसा भी आएगा जब आप किसी के लिए अपना सर्वस्व भूल जाना चाहेंगे | आप चाहेंगे उस विशेष के लिए स्वयं को खो देना.... वह वास्तव में कोई और नहीं आप स्वयं ही होंगे केवल भौतिक शरीर से ही वह अलग दिखेगा | वह आपकी वह आधी शक्ति होगी होगी और उसके मिलन के साथ ही आप सम्पूर्णता में आ जायेंगे |
अधिकाँश धार्मिक विद्वान् विपरीत लिंगी के मिलन को आध्यात्मिक बाधा मानते हैं, और यही कारण है कि भारतीय समाज उत्थान नहीं कर पाया और आज विदेशी संस्कार हम पर हावी हो गया | हमने प्राकृतिक व्यवस्था के विपरीत सिद्धांत बना दिए | हमने जो स्वाभाविक था उसके विपरीत शिक्षा देना आरम्भ कर दिया, हमने ब्रम्हांड की दो महान सहयोगी शक्तियों को आपस में विरोधी और प्रतिद्वंदी बना दिया | जबकि हमारे देवताओं और ऋषियों ने विपरीत शक्ति या उर्जा को महत्व दिया | आज विज्ञान ने यह सिद्ध कर दिया कि माँ-बाप के गुण बच्चों में और अधिक विकसित होकर उभरता है | यदि हमने ऋषियों की परम्परा को आगे बढ़ाया होता तो शायद हम और उन्नत होते लेकिन समय के साथ हम नीचे से नीचे गिरते चले गये क्योंकि कई श्रेष्ठ आत्माओं से वंश वृद्धि नहीं की और न ही वे योग्य शिष्य खोज पाए |
यह मेरे व्यक्तिगत विचार हैं, आपकी धार्मिक भावना जो मानती है उसपर चलिए... जो मैंने समझा अपने समाज के नैतिक पतन का कारण वह मैंने यहाँ कह दिया |~विशुद्ध चैतन्य
हम बचपन से अधिकाँश जीवन दूसरों द्वारा थोपे गये विचारों और संस्कारों में जीते हैं | कई बार तो पूरे जीवन में हम यह जान ही नहीं पाते कि हमारी पसंद और स्वाभाविक गुण क्या है | हम मुस्कुराते भी हैं तो दिखाने के लिए मुस्कुराते हैं, स्वाभाविक मुस्कराहट से भी परिचय नहीं हो पाता हमारा | हम सभी को खुश रखने का प्रयास करते हैं, जबकि यह एक असंभव कार्य है स्वयं के आस्तित्व को खोये बिना |
एक नास्तिक आपको तब तक स्वीकार करेगा जब तक आप भी नास्तिक हैं | एक धार्मिक आपको धार्मिकता के आधार पर स्वीकार करेगा और आस्तिक आपको आस्तिकता के आधार पर ही स्वीकार करेगा | लेकिन एक अध्यात्मिक व्यक्ति आपको आपकी मान्यताओं के आधार पर नहीं, आपके व्यवहारों और भाषा की शालीनता के आधार पर स्वीकार करेगा | लेकिन कोई एक पक्ष ही आपसे खुश होगा सभी खुश नहीं रह सकते आपसे | आप तो क्या, ईश्वर से भी सभी खुश नहीं रहते |
इसलिए लोगों को खुश करने में अपना समय व्यर्थ मत कीजिये, स्वयं को महत्व दीजिये | लेकिन इसमें आप कई लोगों से दूर हो जायेंगे, विशेषकर नकली शुभचिंतकों से | हाँ अभिनय की आवश्यकता भी पड़ती है हमको क्योंकि हमें समाज में रहना है | वर्ना मेरी तरह स्थिति हो जायेगी और एकांकी जीवन जीना पड़ेगा | एक समय ऐसा आ जाएगा जब लगेगा कि किसी के साथ रहना बोझ है क्योंकि सामने वाला आपको समझ ही नहीं पायेगा और न ही आप समझा पायेंगे | आप दुर्वासा की तरह क्रोधी हो जायेंगे या फिर आप गौतम बुद्ध की तरह शांत हो जायेंगे या फिर श्री श्री रवि शंकर की तरह चिरस्थाई मुस्कान लिए रहेंगे | लेकिन जो कुछ भी होंगे और जैसे भी हैं उसे स्वीकारने में ही उत्थान है | जीवन के किसी मोड़ में आपको एक न एक ऐसा व्यक्ति मिल ही जाएगा जो आपको बिना बदले स्वीकार लेगा और वही होगा आपका वास्तविक सोलमेट |
बस इस बात का ध्यान रखें कि न तो दूसरों के जीवन में हस्तक्षेप करें और न ही किसी को यह अधिकार दें कि वह आपके जीवन में अनावश्यक हस्तक्षेप करें | जो आपके साथ चल सकता है चलने दीजिये लेकिन यदि उसके कारण अपने मार्ग से अलग मत हटिये | एक दिन ऐसा भी आएगा जब आप किसी के लिए अपना सर्वस्व भूल जाना चाहेंगे | आप चाहेंगे उस विशेष के लिए स्वयं को खो देना.... वह वास्तव में कोई और नहीं आप स्वयं ही होंगे केवल भौतिक शरीर से ही वह अलग दिखेगा | वह आपकी वह आधी शक्ति होगी होगी और उसके मिलन के साथ ही आप सम्पूर्णता में आ जायेंगे |
अधिकाँश धार्मिक विद्वान् विपरीत लिंगी के मिलन को आध्यात्मिक बाधा मानते हैं, और यही कारण है कि भारतीय समाज उत्थान नहीं कर पाया और आज विदेशी संस्कार हम पर हावी हो गया | हमने प्राकृतिक व्यवस्था के विपरीत सिद्धांत बना दिए | हमने जो स्वाभाविक था उसके विपरीत शिक्षा देना आरम्भ कर दिया, हमने ब्रम्हांड की दो महान सहयोगी शक्तियों को आपस में विरोधी और प्रतिद्वंदी बना दिया | जबकि हमारे देवताओं और ऋषियों ने विपरीत शक्ति या उर्जा को महत्व दिया | आज विज्ञान ने यह सिद्ध कर दिया कि माँ-बाप के गुण बच्चों में और अधिक विकसित होकर उभरता है | यदि हमने ऋषियों की परम्परा को आगे बढ़ाया होता तो शायद हम और उन्नत होते लेकिन समय के साथ हम नीचे से नीचे गिरते चले गये क्योंकि कई श्रेष्ठ आत्माओं से वंश वृद्धि नहीं की और न ही वे योग्य शिष्य खोज पाए |
यह मेरे व्यक्तिगत विचार हैं, आपकी धार्मिक भावना जो मानती है उसपर चलिए... जो मैंने समझा अपने समाज के नैतिक पतन का कारण वह मैंने यहाँ कह दिया |~विशुद्ध चैतन्य
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