
- सहमत होना असहमत होना एक बात है और अभद्रता और अश्लीलभाषा का प्रदर्शन करना दूसरी बात है | दोनों के लिए समान भाव रखना तीसरी बात |
- मान अपमान नहीं होता किसी के दुर्वचनों से, लेकिन एक नकारात्मक उर्जा अवश्य अपने आस पास आप तैयार कर लेते हो ऐसे लोगों की संगत में |
- आप प्रत्येक स्त्री को माँ कह सकते हैं और माँ का रूप भी देख सकते हैं, लेकिन प्रत्येक स्त्री को पत्नी नहीं कह सकते और न ही वैसा भाव रख सकते हैं प्रत्येक स्त्री के साथ |
उपरोक्त
बिन्दुओं पर आप समानता का भाव नहीं रख सकते और न ही सामान व्यवहार कर सकते
हैं | फिर आप चोर हों या संत, अज्ञानी हों या ब्रम्हज्ञानी | माँ एक खुनी
को अपना बेटा मान कर छुपा सकती है, लेकिन अपने बेटे के खुनी का खून कर देगी
|
और
अब मैं स्वयं पर आता हूँ क्योंकि दुनिया कैसी है, शास्त्र क्या कहते हैं,
संत कैसे होते हैं उससे अलग मैं स्वयं कैसा हूँ और स्वयं का महत्व मैं
स्वयं कितना दे पाता हूँ यह महत्वपूर्ण है | दुनिया की हाथ की कठपुतली बनकर
दूसरों के झूठे मान-सम्मान के लिए स्वयं का अपमान करवाना मेरा सिद्धांत
नहीं है | इसलिए मैं वह माँ नहीं बनना चाहता जो दोषी को सजा न दे पाए, मैं
वह महान संत नहीं बनना चाहता, जो एक गाल पर थप्पड़ खाकर दूसरा गाल आगे करदे |
मैं न गौतम बुद्ध बनना चाहता हूँ और न ही महावीर | क्योंकि जो मैं हूँ वही
यदि हो पाया इस जीवन में, तो मेरे लिए वही एक महान उपलब्धि हैं |
फेसबुक पर मेरी यह आदत कि मैं अशोभनीय भाषा का प्रयोग करने
वालों को बाहर कर देता हूँ अपने फ्रेंडलिस्ट लिस्ट यह ग्रुप से | यह मेरा फेसबुकी स्वभाव नहीं है,
वास्तविक जीवन में भी मैं ऐसा ही हूँ और मुझे सम्बन्ध समाप्त करने में
सेकण्ड नहीं लगता फिर चाहे परिणाम कुछ भी हो |
ऐसे असामाजिक लोगों को सहन करना स्वयं में एक अपराध है |
मैंने अपने जीवन के अनुभवों में जाना है कि कुछ लोग सत्संग में जाकर भी
चोरी करने से बाज नहीं आते, फिर चाहे चप्पल ही क्यों न चुरानी पड़े | कुछ
लोग बलात्कार करने से नहीं चूकते चाहे फिर अपनी ही बेटी क्यों न हो......फिर भी लोग न जाने क्यों कहते हैं कि ये अच्छी संगत से लोग सुधर जाते हैं |
कुछ लोग पूर्वजन्मों के संस्कारों के कारण कितना ही प्रेमपूर्ण व्यव्हार किया जाए, कष्ट ही देंगे और वहीँ कुछ लोग कितना ही रुखा व्यवहार किया जाए भला ही करेंगे | कुछ लोग मानसिक रूप से इतने नीचे गिर चुके होते हैं कि उन्हें सहन करके समाज का नैतिक पतन ही हो रहा है | यही किताबी उदारता है जो असामजिक तत्वों को पनपने का अवसर उपलब्ध करवाता है | यही वह किताबी उपदेश है जो गाली-गलौज को सामान्य बोलचाल की भाषा का स्थान दिलाता है | क्योकि हम सभी महान होना चाहते हैं, फिर चाहे परिणाम कितने ही भयानक क्यों न हों | यदि हम तुरंत ऐसे लोगों को ब्लॉक करना शुरू कर दें तो यही स्वाभाव हमारे जीवन में उतर आएगा और एक दिन असामाजिक तत्वों को बिना कोई सजा दिए भी मर्यादित भाषा और व्यव्हार का प्रयोग करना आ जायेगा | ~विशुद्ध चैतन्य
कुछ लोग पूर्वजन्मों के संस्कारों के कारण कितना ही प्रेमपूर्ण व्यव्हार किया जाए, कष्ट ही देंगे और वहीँ कुछ लोग कितना ही रुखा व्यवहार किया जाए भला ही करेंगे | कुछ लोग मानसिक रूप से इतने नीचे गिर चुके होते हैं कि उन्हें सहन करके समाज का नैतिक पतन ही हो रहा है | यही किताबी उदारता है जो असामजिक तत्वों को पनपने का अवसर उपलब्ध करवाता है | यही वह किताबी उपदेश है जो गाली-गलौज को सामान्य बोलचाल की भाषा का स्थान दिलाता है | क्योकि हम सभी महान होना चाहते हैं, फिर चाहे परिणाम कितने ही भयानक क्यों न हों | यदि हम तुरंत ऐसे लोगों को ब्लॉक करना शुरू कर दें तो यही स्वाभाव हमारे जीवन में उतर आएगा और एक दिन असामाजिक तत्वों को बिना कोई सजा दिए भी मर्यादित भाषा और व्यव्हार का प्रयोग करना आ जायेगा | ~विशुद्ध चैतन्य
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