"आम आदमी पार्टी (आप) की किसान रैली में राजस्थान से आये एक किसान गजेन्द्र ने पेड़ से लटककर फांसी लगा ली। आप ने केन्द्र सरकार के भूमि अधिग्रहण विधेयक के खिलाफ जंतर मंतर पर किसान रैली का आयोजन किया था। राजस्थान से आये किसान गजेन्द्र रैली के दौरान पेड़ पर चढ़ गया और गमछे से लटककर खुदकुशी की कोशिश की। उसे बाद में अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।"एक दूसरे न्यूज़ पोर्टल पर खबर थी...
"आज जंतर मंतर पर आप पार्टी की रैली चल रही थी,दोपहर को जैसे ही केजरीवाल ने स्टेज पर माइक संभाला, वैसे ही राजस्थान के दौसा के रहने वाले एक किसान ने पास के ही एक पेड़ पर चढ़कर आत्महत्या कर ली |आत्महत्या से पूर्व वो नारे भी लगा रहा,लेकिन वहां मौजूद कोई भी उस पर ध्यान नहीं दे रहा था |रैली में हजारों लोग थे लेकिन किसी ने भी इस आत्महत्या करने वाले किसान को बचाने की जहमत नहीं उठाई,सबकी नजरो के सामने ये तमाशा चलता रहा और लोग रैली में मशगूल रहे| केजरीवाल और उनके साथी 74 मिनट तक मंच से किसानों के हितों पर बोलते रहे और उधर किसान जिंदगी और मौत के बीच राम मनोहर लोहिया अस्पताल में जूझता रहने के बाद जिंदगी की जंग हार गया |"एक किसान कि मृत्यु और राजनीति अपनी जगह...
कांग्रेस ने मांग की कि राजधानी के जंतर-मंतर पर एक किसान गंजेंद्र सिंह द्वारा आत्महत्या किये जाने के सिलसिले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के खिलाफ आपराधिक प्रथिमिकी दर्ज की जानी चाहिए। कांग्रेस प्रवक्ता सत्यव्रत चतुर्वेदी ने आज यहाँ पत्रकार वार्ता में आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री मोदी और केजरीवाल दोनों पर इस किसान को आत्महत्या के लिए बाध्य करने का दोष आता है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी देश में किसानों की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार हैं जिसके कारण गजेन्द्र सिंह और ऐसे ही अन्य किसान आत्महत्या करने पर बाध्य हो रहे हैं। दूसरी ओर दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया जंतर-मंतर पर गजेन्द्र सिंह द्वारा आत्महत्या करने पर तमाशबीन बने रहे। उनका व्यवहार शर्मनाक और असंवेदनशील था।इससे पहले महाराष्ट्र में 3 महीने में 600 किसान की आत्महत्या और 10 महीने में 4000 किसानो की आत्महत्या ने नही झिंजोडा किसी को ?
गजेंद्र की मौत के बाद उसके परिजन गहरे सदमे में हैं। जब गजेंद्र के पिता को उनकी खुदकुशी की बात बताई गई थी, तो वह बेहोश होकर गिर पड़े थे। गौरतलब है कि आम आदमी पार्टी की रैली के दौरान गजेंद्र ने पेड़ पर चढ़कर अपने गमछे से फांसी लगा ली थी। बाद में उन्हें उतारकर अस्पताल ले जाया गया था, मगर तब तक देर हो चुकी थी।

दूसरी बात यह कि जब वह आत्महत्या करने जा रहा था, तो क्या किसी के इशारे की प्रतीक्षा कर रहा था या कोई उसे दिशा निर्देश दे रहा था ? क्योंकि यह तस्वीर कुछ ऐसा ही कह रही है |

कई बातें हैं जो संदेह उत्पन्न करती हैं जैसे कि कुमार विश्वास का यह विडिओ जिसमें वे गजेन्द्र का लिखा अंतिम सन्देश पढ़ कर सुना रहे हैं और वह भी कह गए.. जो कि गजेन्द्र ने लिखा ही नहीं था....
फिर कोई भी आत्महत्या से पहले जबकि वह जानता है कि अब वह दुनिया से विदा होने वाला है, यह नहीं लिखेगा कि घर जाने का उपाय बताएं | मरने वाला अंतिम पंक्ति में अपने प्रियजनों के नाम सन्देश अवश्य ही छोड़ेगा चाहे कोई भी हो... फिर इस लिखावट को गजेन्द्र के बहन ने पहचानने से इनकार कर दिया यह भी सुनने में आया है | अर्थात यह पत्र गजेन्द्र ने स्वयं नहीं लिखा है | खैर यह भी जांच का विषय है तो हम इस पर कोई टिपण्णी करना ठीक भी नहीं |
सारांश यह कि न जाने कितने किसानों ने आत्महत्या कर ली, लेकिन किसी भी सरकार या पार्टी के कानों में जूं नहीं रेंगी... लेकिन इस घटना में वे सारे नेता और पार्टियाँ बड़े बढ़ चढ़ कर कीचड़ उछाल रहे हैं जिनकी अपनी ही शासन काल में किसानों ने आत्महत्याएँ की और वे खुद उस समय मौन रहे या फिर बेतुके बयान देते रहे |
केजरीवाल को दोषी बताने वाले वे लोग उस दिन को क्यों भूल गये जब एक चक्रवर्ती सम्राट के भाषणकाल में किसी जगह पांच लोग मारे गए...लेकिन भाषण चलता रहा | केजरीवाल का दोष है मानता हूँ, क्योंकि उन्होंने घटना को गंभीरता से नहीं लिया... लेकिन वे लोग क्या कर रहे थे जो तमाशा देख रहे थे वहाँ पर उस समय ? कोई दो चार लोग तो रहे नहीं होंगे वहाँ पर जब रैली थी... और ऐसा भी नहीं हो सकता कि इतनी बड़ी रैली में आए किसानों में से किसी को पेड़ पर चढ़ना नहीं आता हो ?

जो भी हो... यह तो तय है कि राजनीति की भेंट चढ़ गया एक निर्दोष | लेकिन अभी भी राजनैतिक पार्टियाँ कीचड़ उछालने के अपने रंगारंग कार्यक्रम व प्रिय खेल से मुक्त होकर किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए कोई कारगर नीति पर चर्चा करने के लिए तैयार नहीं हुए | अभी भी किसी को कोई चिंता नहीं है किसानों की... लेकिन इस मौके को अपने राजनैतिक लाभ के लिए सर्वोत्तम अवसर के रूप में देख रहे हैं सभी |

मैं इस शोक की घड़ी में गजेन्द्र के परिवार का दुःख महसूस कर सकता हूँ | गजेन्द्र के साथ साथ साथ उन सभी किसानों की आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ |~विशुद्ध चैतन्य
गजेन्द्र सिंह का संक्षिप्त परिचय:
जंतर-मंतर पर आयोजित आम आदमी पार्टी की रैली में गजेंद्र सिंह कल्याणवत नाम के एक शख्स ने खुदकुशी कर ली। गजेंद्र राजस्थान के दौसा जिले के एक गांव के रहने वाले थे। हालांकि गजेंद्र को किसान बताया जा रहा है लेकिन वो महज किसान नहीं थे बल्कि सामाजिक और राजनीतिक रूप से काफी सक्रिय और समृद्ध थे। यहां तक कि वो विधानसभा चुनाव भी लड़ चुके थे।
गजेंद्र सिंह कल्याणवत मूल रूप से दौसा जिले के बांदीकुई विधानसभा इलाके के रहने वाले थे। वो युवावस्था से ही अपने चाचा गोपाल सिंह नांगल के साथ राजनीति में सक्रिय थे। नांगल प्रधान और सरपंच भी रह चुके थे। गजेंद्र ने बीजेपी के साथ राजनीति की शुरुआत की। वो बीजेपी के स्थानीय कार्यक्रमों में भागीदारी करते रहते थे और चुनाव लड़ने की ख्वाइश भी रखते थे। 2003 में जब बीजेपी की तरफ से गजेंद्र सिंह को टिकट नहीं मिला, तो उन्होंने समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया।
गजेंद्र सिंह कल्याणवत ने सपा का दामन थामते ही 2003 का विधानसभा चुनाव लड़ा, जिसमें उनको बीजेपी की अल्का सिंह से हार का मुंह देखना पड़ा। गजेंद्र इसके बाद भी राजनीति में डटे रहे। उन्होंने 2013 तक सपा में रहकर राजनीति की। इस दौरान गजेंद्र ने सपा जिलाध्यक्ष से लेकर प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य तक का सफर तय किया। हालांकि 2013 में उन्होंने विधानसभा टिकट मिलने की आस में कांग्रेस का दामन थाम लिया। लेकिन जब कांग्रेस में गजेंद्र सिंह की अनदेखी की गई, तो वो आम आदमी पार्टी के करीब आ गए।
बताया जाता है कि गजेंद्र सिंह घरेलू कलह से जूझ रहे थे और घर से निकाल दिए गए थे। गजेंद्र ने अपने सुसाइड नोट में भी इस बात की तरफ इशारा किया है, जिसमें उन्होंने लिखा है कि मेरे पिता ने मुझे घर से निकाल दिया है। दरअसल, गजेंद्र के परिवार में किसी लड़की की शादी थी, लेकिन घर से निकाले जाने की वजह से वो दुखी थे।

घटना से संबधित कुछ लिंक्स:
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