आश्रम में काफी लोग आये हुए हैं, लेकिन मैं किसी से भी नहीं मिलना चाहता यह पहले ही कह रखा है, इसलिए कोई भी नहीं मिलने आता और न मैं ही किसी से मिलने जाता हूँ |
ऐसे में भी एक बच्ची मिलने आती रहती है और आज सुबह एक सज्जन मिलने आये | उन्होंने पूछा कि पता चला है कि आप मेडिटेशन सिखाते हैं इसलिए आपके पास आया हूँ | सुबह से सोच रहा था, लेकिन डर लग था कि आप नाराज हो जायेंगे क्योंकि आपको एकांत पसंद है |
मैंने कहा कि एकांत पसंद है यह ठीक है, लेकिन जिनकी रूचि अध्यात्म में है उनको आने से नहीं मना किया था | मैंने तो ये पूजा पाठ के नाम पर जो लोग पिकनिक मनाने आये हैं, उनके लिए कहा था कि मैं उनसे नहीं मिलना चाहता |
फिर उन्होंने बताया, "बैंक में मैनेजर हूँ और अगले साल रिटायर हो जाऊँगा | और अब बैंक में काम भी बहुत हो गया है बहुत टेंशन रहने लगी है | मन स्थिर नहीं रहता जबकि नियमित पूजा पाठ भी करता हूँ और गुरूजी से मिला बीजमंत्र भी जाप करता हूँ..... कलकत्ता में ही श्री श्री रवि शंकरजी का आर्ट ऑफ़ लिविंग का सेंटर है वहां भी शुरू से जाता हूँ ध्यान का अभ्यास करने.... लेकिन आज तक शान्ति जैसी कोई अनुभूति नहीं हुई | मैं माँ काली का भी भक्त हूँ और उनकी भी साधना करता हूँ.....जैसा लोग कहते हैं कि शांति मिलती है, मन में स्थिरता आती है, डर मिट जाता है...... वैसा कोई अनुभव नहीं हुआ इतने वर्षों में | हाँ सारी समस्याएं सुलझती चली गईं, लेकिन मन में कभी शांति नहीं आयी |"
मैंने उनसे कहा कि सबसे पहली चूक तो आपसे यह होती रही हमेशा कि आप केंद्र में नहीं हो | आपने इतने सारे अराध्य बना रखे हैं और सभी की पूजा पाठ में लगे रहते हैं, तो आप खुद ही सोचिये कि शांति मिलेगी तो कहाँ से ?
सबसे पहले आप अपने केंद्र को खोजिये, अभी आप बाहर भाग रहे हैं | कभी एक ही समय में यदि चार आराध्यों की आराधना में चित को भटकायेंगे तो चित तो स्थिर हो होगा ही नहीं उलटे आपको उलझायेगा ही | और केंद्र में आने के लिए आपको पूजा पाठ नहीं, ध्यान की आवश्यकता है | जब हम किसी देवी देवता या निराकार ईश्वर की अराधना करते हैं, तब वह आत्मा के लिए नहीं, ब्रेन के लिए की जाती है | ब्रेन को व्यस्त रखने का ही उपाय हैं वह सब | लेकिन ध्यान में ब्रेन का भी कोइ काम नहीं रह जाता, उस समय ब्रेन को भी शांत कर देना होता है | बाह्य आराध्यों की आराधना से ईश्वर और हमारे बीच एक दूरी बन जाती है | हमारे मस्तिष्क में यह सन्देश जाता है कि ईश्वर अलग है और हम अलग | ईश्वर को महान शक्तिशाली ताकत है और हम कमजोर दयनीय प्राणी | तो यहाँ द्वैतवाद लागू हो जाता है | जबकि जब हम कहते हैं 'अहम् ब्रम्हास्मि', तब सारे वाद विलुप्त हो जाते हैं और आप केंद्र में आ जाते हैं |
उन्होंने कहा कि आपने बिलकुल सही समझाया, मैं आपसे ध्यान सीखना चाहता हूँ | मैंने कहा कि कम से कम एक हफ्ता नियमित मेरे पास रहना होगा तब मैं शुरू कर पाउँगा | यह एक दो दिन की पिकनिक पार्टी में आने पर आपको कुछ भी नहीं समझ में आएगा | उन्होंने कहाँ हाँ यह भी ठीक है, मैं अगली बार आऊंगा जब आश्रम में कोई उत्सव न हो रहा हो | यह भी ईश्वर की ही इच्छा है कि इतने वर्षों से भटकने के बाद आज आपसे भेंट हुई और शायद आप ही मुझे वह मार्ग दिखा पायें जो मैं इतने वर्षों में नहीं खोज पाया या समझ पाया |
मैंने कहा कि हम सब अपनी अपनी एक वाइब्रेशन और ऑरा अपने आसपास निर्माण करते हैं | हर व्यक्ति एक विशिष्ट फ्रीक्वेंसी ब्रॉडकास्ट करता है | आप मेरे पास आये क्योंकि आप उसी फ्रीक्वेंसी में हैं जिसमें मैं हूँ, इसलिए आप इतनी भीड़ में भी मुझसे मिलने आ गये, जबकि बाकि लोग मेटेरिअलिस्टिक वाइब्रेशन में हैं, इसलिए अपनी ही दुनिया में हैं | आप ऊपर उठ रहे हैं, इसलिए आप भीड़ में होते हुए भी कुछ अलग की खोज में रहे हमेशा | आपको पूजा पाठ अब असर नहीं कर रहे क्योंकि आपको अब उससे आगे बढ़ना है | पूजा-पाठ कर्मकाण्ड सब अध्यात्म के मार्ग की प्राथमिक स्टेज है | ~विशुद्ध चैतन्य
ऐसे में भी एक बच्ची मिलने आती रहती है और आज सुबह एक सज्जन मिलने आये | उन्होंने पूछा कि पता चला है कि आप मेडिटेशन सिखाते हैं इसलिए आपके पास आया हूँ | सुबह से सोच रहा था, लेकिन डर लग था कि आप नाराज हो जायेंगे क्योंकि आपको एकांत पसंद है |
मैंने कहा कि एकांत पसंद है यह ठीक है, लेकिन जिनकी रूचि अध्यात्म में है उनको आने से नहीं मना किया था | मैंने तो ये पूजा पाठ के नाम पर जो लोग पिकनिक मनाने आये हैं, उनके लिए कहा था कि मैं उनसे नहीं मिलना चाहता |
फिर उन्होंने बताया, "बैंक में मैनेजर हूँ और अगले साल रिटायर हो जाऊँगा | और अब बैंक में काम भी बहुत हो गया है बहुत टेंशन रहने लगी है | मन स्थिर नहीं रहता जबकि नियमित पूजा पाठ भी करता हूँ और गुरूजी से मिला बीजमंत्र भी जाप करता हूँ..... कलकत्ता में ही श्री श्री रवि शंकरजी का आर्ट ऑफ़ लिविंग का सेंटर है वहां भी शुरू से जाता हूँ ध्यान का अभ्यास करने.... लेकिन आज तक शान्ति जैसी कोई अनुभूति नहीं हुई | मैं माँ काली का भी भक्त हूँ और उनकी भी साधना करता हूँ.....जैसा लोग कहते हैं कि शांति मिलती है, मन में स्थिरता आती है, डर मिट जाता है...... वैसा कोई अनुभव नहीं हुआ इतने वर्षों में | हाँ सारी समस्याएं सुलझती चली गईं, लेकिन मन में कभी शांति नहीं आयी |"
मैंने उनसे कहा कि सबसे पहली चूक तो आपसे यह होती रही हमेशा कि आप केंद्र में नहीं हो | आपने इतने सारे अराध्य बना रखे हैं और सभी की पूजा पाठ में लगे रहते हैं, तो आप खुद ही सोचिये कि शांति मिलेगी तो कहाँ से ?
सबसे पहले आप अपने केंद्र को खोजिये, अभी आप बाहर भाग रहे हैं | कभी एक ही समय में यदि चार आराध्यों की आराधना में चित को भटकायेंगे तो चित तो स्थिर हो होगा ही नहीं उलटे आपको उलझायेगा ही | और केंद्र में आने के लिए आपको पूजा पाठ नहीं, ध्यान की आवश्यकता है | जब हम किसी देवी देवता या निराकार ईश्वर की अराधना करते हैं, तब वह आत्मा के लिए नहीं, ब्रेन के लिए की जाती है | ब्रेन को व्यस्त रखने का ही उपाय हैं वह सब | लेकिन ध्यान में ब्रेन का भी कोइ काम नहीं रह जाता, उस समय ब्रेन को भी शांत कर देना होता है | बाह्य आराध्यों की आराधना से ईश्वर और हमारे बीच एक दूरी बन जाती है | हमारे मस्तिष्क में यह सन्देश जाता है कि ईश्वर अलग है और हम अलग | ईश्वर को महान शक्तिशाली ताकत है और हम कमजोर दयनीय प्राणी | तो यहाँ द्वैतवाद लागू हो जाता है | जबकि जब हम कहते हैं 'अहम् ब्रम्हास्मि', तब सारे वाद विलुप्त हो जाते हैं और आप केंद्र में आ जाते हैं |
उन्होंने कहा कि आपने बिलकुल सही समझाया, मैं आपसे ध्यान सीखना चाहता हूँ | मैंने कहा कि कम से कम एक हफ्ता नियमित मेरे पास रहना होगा तब मैं शुरू कर पाउँगा | यह एक दो दिन की पिकनिक पार्टी में आने पर आपको कुछ भी नहीं समझ में आएगा | उन्होंने कहाँ हाँ यह भी ठीक है, मैं अगली बार आऊंगा जब आश्रम में कोई उत्सव न हो रहा हो | यह भी ईश्वर की ही इच्छा है कि इतने वर्षों से भटकने के बाद आज आपसे भेंट हुई और शायद आप ही मुझे वह मार्ग दिखा पायें जो मैं इतने वर्षों में नहीं खोज पाया या समझ पाया |
मैंने कहा कि हम सब अपनी अपनी एक वाइब्रेशन और ऑरा अपने आसपास निर्माण करते हैं | हर व्यक्ति एक विशिष्ट फ्रीक्वेंसी ब्रॉडकास्ट करता है | आप मेरे पास आये क्योंकि आप उसी फ्रीक्वेंसी में हैं जिसमें मैं हूँ, इसलिए आप इतनी भीड़ में भी मुझसे मिलने आ गये, जबकि बाकि लोग मेटेरिअलिस्टिक वाइब्रेशन में हैं, इसलिए अपनी ही दुनिया में हैं | आप ऊपर उठ रहे हैं, इसलिए आप भीड़ में होते हुए भी कुछ अलग की खोज में रहे हमेशा | आपको पूजा पाठ अब असर नहीं कर रहे क्योंकि आपको अब उससे आगे बढ़ना है | पूजा-पाठ कर्मकाण्ड सब अध्यात्म के मार्ग की प्राथमिक स्टेज है | ~विशुद्ध चैतन्य
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