परिवार और समाज आपको महान बनाना चाहता है, एक सभ्य और शालीन व्यक्ति बनाना चाहता है | लेकिन आपको वह नहीं बनने देना चाहता जो आप बनने आये थे | आप बचपन में नहीं जानते थे कि भेदभाव, छुआ-छूत क्या होता है, आप तो बस अपने मित्रों के साथ खेलना ही पसंद करते थे | लेकिन समाज ने आपको सिखाया भेदभाव और नफरत, ताकि आप सभ्य, शालीन व धार्मिक बन सकें | आप इंसान की औलाद थे और उसी में खुश थे, लेकिन समाज ने आपको इंसान नहीं रहने दिया और हिन्दू-मुसलमान बना दिया | ताकि समय आने पर आपको सांप्रदायिक दंगों में झोंका जा सके | आपके पड़ोसी मित्र ही आपके शत्रु और विरोधी कब हो गये यह भी समझने का आपको अवसर नहीं मिला, क्योंकि समाज आपको सभ्य, शालीन व धार्मिक बनाने की जल्दी में था |
फिर एक दिन आपने प्रश्न किया कि समाज में इतनी नफरत क्यों है तो उत्तर मिला कि ईश्वरीय किताबें तो प्रेम का पाठ पढ़ाती हैं, भाईचारा सिखातीं हैं | कुछ ही दिनों बाद आप किसी समाचार पत्र में पढ़ते हैं की प्रेमी युगल को जिन्दा जला दिया गया, किसी दलित बच्ची का बलात्कार करके पेड़ से लटका दिया गया, हिन्दू-मुस्लिम दंगा हो गया..... और आप हैरान रह जाते हैं कि ये कैसे सभ्य व धार्मिक लोग हैं ? उत्तर मिलता है की उन्होंने ईश्वरीय किताबें नहीं पढ़ीं थीं इसलिए ऐसा कर रहे हैं | फिर आप सोचते हैं की बचपन में मैंने भी कोई ईश्वरीय किताबें नहीं पढ़ी थी, फिर भी हम मित्रों में कोई भेदभाव नहीं था | किसी पशु-पक्षी ने भी ईश्वरीय किताबें नहीं पढ़ीं थीं, फिर भी जंगल में वे मिलजुल कर रहते हैं.....| उत्तर मिलता है की हम हिन्दू हैं, मुस्लिम हैं, सिख या इसाई हैं... कोई इंसान नहीं और न ही पशु-पक्षी हैं | वे सभी असभ्य हैं और हम उनसे श्रेष्ठ हैं क्योंकि ईश्वर ने हमारे लिए खुद ही किताब लिख कर दी है | और हमारी किताब प्रेम और भाईचारा सिखाती है | बस दूसरे धर्मो के लोगों से दूरी रखो, उनके मंदिरों, मस्जिदों, गिरजा आदि को मिटा दो और केवल अपने धर्म की वकालत करो... क्योंकि हम लोग श्रेष्ठ हैं | हम लोग फिरकों में बेशक बटे हुए हैं, हम लोग बेशक जात-पात, ऊँच-नीच में बंटे हुए हैं लेकिन हम सब एक हैं | बेशक हम दूसरे फिरके/जाति के लोगों को मिटा देने का ख्वाब पाले बैठे हैं फिर भी हम भाईचारा और प्रेम को महत्व देते हैं | बेशक हम प्रेमी युगलों को जिन्दा जला देते हैं, लेकिन हम श्री कृष्ण को अपना आदर्श और आराध्य मानते हैं क्योंकि हम लोग सभ्य हैं शालीन हैं, आधुनिक हैं |
और फिर बच्चा भी एक दिन समझ जाता है कि दूसरे धर्मों की निंदा करना ही शालीनता है सभ्यता है | दूसरों के आराधना स्थलों को आग लगाना, दूसरों के धार्मिक ग्रंथों को अपमानित करना धार्मिक कृत्य है और वह भी सभ्य, शालीन व धार्मिक बन जाता है |
ऐसे में कभी कभार एडिसन, राणा प्रताप, लक्ष्मीबाई जैसे लोग दुनिया में आ जाते हैं और नफरत की शिक्षा को न मानकर अपने अंतर्मन को सुनते हैं | परिवार से लेकर समाज तक उनके विरुद्ध हो जाता है और आजीवन उन्हें कष्ट व अपमान सहना पड़ता है अपने ही लोगों से | लेकिन वे जिद्दी होते हैं, बिगडे हुए होते हैं, असभ्य होते हैं, इन्सान होते हैं इसलिए वे मरते दम तक मानवता निभाते हैं | मरने के बाद लोग उनको सम्मान देते हैं क्योकि अब उनसे कोई खतरा नहीं होता | इसलिए मेरी आप सभी से विनती है कि महान बनने के चक्कर में मत पड़िए, वह करिए जो आपकी अंतरात्मा आपसे कहती है | वह करिए जो करने के लिए आपने जन्म लिया | आप तभी तक इंसान हैं, जब तक समाज ने आपको नफरत नहीं सिखाया | उस उम्र में वापस लौटिये और स्वयं को खोजिये | खोजिये कि आप कहाँ छूट गये थे और किस उम्र में समाज व परिवार ने आपको स्वयं से अलग कर दिया था | जैसे ही आप स्वयं को खोज लेंगे उस दिन आप हिन्द या मुस्लमान बनने की होड़ से बाहर निकल जायेंगे और इंसान ही बनना चाहेंगे | यह और बात है कि इंसान बने रहना एक कठिन कार्य है क्योंकि हिन्दू-मुसलमान, ईसाईयों व अन्य पंथ सम्प्रदायों के समाज में इंसानों की कोई अहमियत नहीं है | यदि भेड़-भेड़ियों का समाज और धर्मों के ठेकेदार आपकी इंसानियत को स्वीकार भी लें किसी दिन तो राजनैतिज्ञ और उनके दुमछल्ले जीने नहीं देंगे आपको |~विशुद्ध चैतन्य

फिर एक दिन आपने प्रश्न किया कि समाज में इतनी नफरत क्यों है तो उत्तर मिला कि ईश्वरीय किताबें तो प्रेम का पाठ पढ़ाती हैं, भाईचारा सिखातीं हैं | कुछ ही दिनों बाद आप किसी समाचार पत्र में पढ़ते हैं की प्रेमी युगल को जिन्दा जला दिया गया, किसी दलित बच्ची का बलात्कार करके पेड़ से लटका दिया गया, हिन्दू-मुस्लिम दंगा हो गया..... और आप हैरान रह जाते हैं कि ये कैसे सभ्य व धार्मिक लोग हैं ? उत्तर मिलता है की उन्होंने ईश्वरीय किताबें नहीं पढ़ीं थीं इसलिए ऐसा कर रहे हैं | फिर आप सोचते हैं की बचपन में मैंने भी कोई ईश्वरीय किताबें नहीं पढ़ी थी, फिर भी हम मित्रों में कोई भेदभाव नहीं था | किसी पशु-पक्षी ने भी ईश्वरीय किताबें नहीं पढ़ीं थीं, फिर भी जंगल में वे मिलजुल कर रहते हैं.....| उत्तर मिलता है की हम हिन्दू हैं, मुस्लिम हैं, सिख या इसाई हैं... कोई इंसान नहीं और न ही पशु-पक्षी हैं | वे सभी असभ्य हैं और हम उनसे श्रेष्ठ हैं क्योंकि ईश्वर ने हमारे लिए खुद ही किताब लिख कर दी है | और हमारी किताब प्रेम और भाईचारा सिखाती है | बस दूसरे धर्मो के लोगों से दूरी रखो, उनके मंदिरों, मस्जिदों, गिरजा आदि को मिटा दो और केवल अपने धर्म की वकालत करो... क्योंकि हम लोग श्रेष्ठ हैं | हम लोग फिरकों में बेशक बटे हुए हैं, हम लोग बेशक जात-पात, ऊँच-नीच में बंटे हुए हैं लेकिन हम सब एक हैं | बेशक हम दूसरे फिरके/जाति के लोगों को मिटा देने का ख्वाब पाले बैठे हैं फिर भी हम भाईचारा और प्रेम को महत्व देते हैं | बेशक हम प्रेमी युगलों को जिन्दा जला देते हैं, लेकिन हम श्री कृष्ण को अपना आदर्श और आराध्य मानते हैं क्योंकि हम लोग सभ्य हैं शालीन हैं, आधुनिक हैं |
और फिर बच्चा भी एक दिन समझ जाता है कि दूसरे धर्मों की निंदा करना ही शालीनता है सभ्यता है | दूसरों के आराधना स्थलों को आग लगाना, दूसरों के धार्मिक ग्रंथों को अपमानित करना धार्मिक कृत्य है और वह भी सभ्य, शालीन व धार्मिक बन जाता है |
ऐसे में कभी कभार एडिसन, राणा प्रताप, लक्ष्मीबाई जैसे लोग दुनिया में आ जाते हैं और नफरत की शिक्षा को न मानकर अपने अंतर्मन को सुनते हैं | परिवार से लेकर समाज तक उनके विरुद्ध हो जाता है और आजीवन उन्हें कष्ट व अपमान सहना पड़ता है अपने ही लोगों से | लेकिन वे जिद्दी होते हैं, बिगडे हुए होते हैं, असभ्य होते हैं, इन्सान होते हैं इसलिए वे मरते दम तक मानवता निभाते हैं | मरने के बाद लोग उनको सम्मान देते हैं क्योकि अब उनसे कोई खतरा नहीं होता | इसलिए मेरी आप सभी से विनती है कि महान बनने के चक्कर में मत पड़िए, वह करिए जो आपकी अंतरात्मा आपसे कहती है | वह करिए जो करने के लिए आपने जन्म लिया | आप तभी तक इंसान हैं, जब तक समाज ने आपको नफरत नहीं सिखाया | उस उम्र में वापस लौटिये और स्वयं को खोजिये | खोजिये कि आप कहाँ छूट गये थे और किस उम्र में समाज व परिवार ने आपको स्वयं से अलग कर दिया था | जैसे ही आप स्वयं को खोज लेंगे उस दिन आप हिन्द या मुस्लमान बनने की होड़ से बाहर निकल जायेंगे और इंसान ही बनना चाहेंगे | यह और बात है कि इंसान बने रहना एक कठिन कार्य है क्योंकि हिन्दू-मुसलमान, ईसाईयों व अन्य पंथ सम्प्रदायों के समाज में इंसानों की कोई अहमियत नहीं है | यदि भेड़-भेड़ियों का समाज और धर्मों के ठेकेदार आपकी इंसानियत को स्वीकार भी लें किसी दिन तो राजनैतिज्ञ और उनके दुमछल्ले जीने नहीं देंगे आपको |~विशुद्ध चैतन्य

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