"चैतन्य जी ,नमस्कार.. माना आपके अंदर कि गंगा जमुनी तहबीज कि नदी ओवरफ्लो हो रही है..!!! मानती हूँ आपको 26/11 भी भाजपा कि चाल दिखती हो..!!! हो सकता है कैराना भी भाजपा कि चाल हो मगर हे गेरुआ वस्त्रधारी ,मुझे सिर्फ ऐक सवाल का तार्किक और तथ्यात्मक जवाब दो , इस्लामिक मान्यताऔ के मतावलंबी दूनियाभर मे किस जगह गैर इस्लामिक लोगो के साथ स्नेह ,अपनापन से रहते है ??? बाकी कुरान वर्णित दार उल हरब को दार उल इस्लाम बनाने के आदेश कि चर्चा हम बाद मे कभी और कर लेगे.."
आज फिर ये प्रश्न मुझसे किया गया और न जाने कितनी बार मैं ऐसे ही प्रश्नों का उत्तर दे चुका हूँ, लेकिन हिंदुत्व के ठेकेदार घूम-फिर कर ऐसे प्रश्न सामने लाकर रख देते हैं | इसलिए आज मैं विस्तार से उत्तर दे रहा हूँ यह जानते हुए भी कि इनकी समझ में कुछ भी नहीं आने वाला |
सबसे पहले तो मैं यह स्पष्ट कर दूं कि इस्लाम से सम्बंधित मेरा ज्ञान बहुत ही कम है या यूँ समझें कि जितना आप लोगों को सनातन धर्म का ज्ञान है उतना ही | आप लोगों की रूचि बचपन से इस्लाम में रही और मेरी सनातन में इसलिए स्वाभाविक ही है कि इस्लाम के विषय में आप लोगों का ज्ञान मुझसे कई गुना अधिक ही होगा |
लेकिन आप लोगों ने इस्लाम को बिलकुल वैसे ही समझा, जैसे दलितों ने सनातन धर्म को समझा | आप लोगों ने क़ुरान को बिलकुल वैसे ही पढ़ा व समझा जैसे नास्तिकों और आंबेडकरवादियों ने मनुस्मृति, वेदों और गीता को पढ़ा व समझा |
तो आप लोगों की स्थिति अम्बेडकरवादियों की स्थिति से भिन्न नहीं है | इसलिए आप लोग अपनी पैनी दृष्टि से इस्लामिक ग्रंथो में जी खोट खोज लेते हैं वह इस्लामिक विद्वान भी ठीक उसी प्रकार नहीं खोज पाते जैसे कि हिन्दुओं के धार्मिक ग्रंथों में हिन्दुओं के विद्वान नहीं खोज पाते | यही कारण है कि आप लोगों को सनातन का कोई ज्ञान नहीं और मुसलमानों को इस्लाम का कोई ज्ञान नहीं |
अब ऐसी स्थिति में मुस्लमान अपने धर्मग्रंथों को आधार बनाकर क़त्ल-ए-आम करें, बलात्कार करें, धर्म के नाम पर नफरत फैलाएं, परधर्म निंदा परम सुखं के सिद्धांत कर अनुसरण करें या फिर आप लोग यही काम करें बराबर हो जाता है | और आप दोनों के पास ही यह तर्क होता है कि हम तो धर्म की रक्षा कर रहे हैं यह और बात है कि ऐसे कार्यो में लिप्त लोगों को धर्म का बेसिक ज्ञान भी नहीं होता | इसलिए मैं जानता हूँ कि आप जैसे विद्वानों को मेरी बातें समझ में नहीं आएँगी | नफरत के कारोबार में लिप्त होने में जो आनंद व सुख आप लोग प्राप्त करते हैं वह ध्यानस्थ ऋषि मुनियों को भी नहीं प्राप्त होता है | इसलिए आप लोग परम श्रद्धेय हैं.. मानवों की दृष्टि में ही नहीं, स्वयं ईश्वर की दृष्टि में भी | इसलिए हर तरफ आप लोगों की जय जय कार होती है, आर्थिक सामाजिक लाभ प्राप्त होता है, यहाँ तक कि सत्ता सुख भी प्राप्त होता है |
लेकिन हम सनातनियों को आप जैसे सम्मानित सज्जनों की तुलना में हेय दृष्टि से देखा जाता है क्योंकि हम
सनातन सिद्धांत,
सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।
का अनुसरण करते हैं | हम सनातनी आप लोगों की तरह दूसरों की नकल करके नहीं जीते, बल्कि आत्मज्ञान व आत्मनिर्देशानुसार जीते हैं | इसलिए उन लोगों की नकल नहीं कर सकते जो दूसरों के साथ मैत्रीभाव नहीं रखते | न तो हम आईसीस की नकल कर सकते हैं और न ही पाकिस्तानी या बंगलादेशी मुसलमानों की नकल कर सकते हैं | हाँ हम उनके लिए आदर्श प्रस्तुत कर सकते हैं कि नफरत, परधर्म निंदा व निर्दोषों मासूमों की हत्या किये बिना भी जिया व समृद्ध हुआ जा सकता है | हम आप लोगों की तरह दुसरे देशों व धर्म की बुराई खोजने में अपना समय व्यर्थ नहीं करते, बल्कि अपने ही धर्म, समाज व देश में जो कमियाँ उनपर शोध करते हैं और कारण खोजने का प्रयास करते हैं कि उन्हें कैसे दूर करके नागरिकों व राष्ट्र को समृद्ध किया जाए | कैसे समाज को आपस में सहयोगी बनाया जाए, कैसे धर्म व जाति के नाम पर बंटे समाज को संगठित करके राष्ट्र के प्रति समर्पित होने के लिए प्रेरित किया जाए |
तो आप लोग जो कुछ मुझे दिखाना व समझाना चाहते हैं, वह मुझे मत दिखाइये.. क्योंकि मैं आप लोगों जितना न तो बुद्धिमान हूँ न ही समझदार हूँ और ऊपर से अनपढ़ हूँ | न ही आप लोग मुझसे अपेक्षा रखें कि जिस प्रकार आप लोग इस्लाम पढ़कर आंबेडकरवादियों की तरह नफरत फैला रहे हैं, मैं भी वैसा ही करूँ | हाँ मैं उनके विरुद्ध अवश्य हूँ जो अपने ही देश में धर्म व जाति के नाम पर नफरत फैलाकर देश को एक और विभाजन की ओर अग्रसर कर रहे हैं | ~विशुद्ध चैतन्य
नोट: उनका कहना था, "इतनी लम्बी पोस्ट लिख दी, उत्तर तो दिया ही नहीं जो प्रश्न मैंने पूछा था उसका ?"
क्या आपको भी उत्तर नहीं मिला ?
आज फिर ये प्रश्न मुझसे किया गया और न जाने कितनी बार मैं ऐसे ही प्रश्नों का उत्तर दे चुका हूँ, लेकिन हिंदुत्व के ठेकेदार घूम-फिर कर ऐसे प्रश्न सामने लाकर रख देते हैं | इसलिए आज मैं विस्तार से उत्तर दे रहा हूँ यह जानते हुए भी कि इनकी समझ में कुछ भी नहीं आने वाला |
सबसे पहले तो मैं यह स्पष्ट कर दूं कि इस्लाम से सम्बंधित मेरा ज्ञान बहुत ही कम है या यूँ समझें कि जितना आप लोगों को सनातन धर्म का ज्ञान है उतना ही | आप लोगों की रूचि बचपन से इस्लाम में रही और मेरी सनातन में इसलिए स्वाभाविक ही है कि इस्लाम के विषय में आप लोगों का ज्ञान मुझसे कई गुना अधिक ही होगा |
लेकिन आप लोगों ने इस्लाम को बिलकुल वैसे ही समझा, जैसे दलितों ने सनातन धर्म को समझा | आप लोगों ने क़ुरान को बिलकुल वैसे ही पढ़ा व समझा जैसे नास्तिकों और आंबेडकरवादियों ने मनुस्मृति, वेदों और गीता को पढ़ा व समझा |
तो आप लोगों की स्थिति अम्बेडकरवादियों की स्थिति से भिन्न नहीं है | इसलिए आप लोग अपनी पैनी दृष्टि से इस्लामिक ग्रंथो में जी खोट खोज लेते हैं वह इस्लामिक विद्वान भी ठीक उसी प्रकार नहीं खोज पाते जैसे कि हिन्दुओं के धार्मिक ग्रंथों में हिन्दुओं के विद्वान नहीं खोज पाते | यही कारण है कि आप लोगों को सनातन का कोई ज्ञान नहीं और मुसलमानों को इस्लाम का कोई ज्ञान नहीं |
अब ऐसी स्थिति में मुस्लमान अपने धर्मग्रंथों को आधार बनाकर क़त्ल-ए-आम करें, बलात्कार करें, धर्म के नाम पर नफरत फैलाएं, परधर्म निंदा परम सुखं के सिद्धांत कर अनुसरण करें या फिर आप लोग यही काम करें बराबर हो जाता है | और आप दोनों के पास ही यह तर्क होता है कि हम तो धर्म की रक्षा कर रहे हैं यह और बात है कि ऐसे कार्यो में लिप्त लोगों को धर्म का बेसिक ज्ञान भी नहीं होता | इसलिए मैं जानता हूँ कि आप जैसे विद्वानों को मेरी बातें समझ में नहीं आएँगी | नफरत के कारोबार में लिप्त होने में जो आनंद व सुख आप लोग प्राप्त करते हैं वह ध्यानस्थ ऋषि मुनियों को भी नहीं प्राप्त होता है | इसलिए आप लोग परम श्रद्धेय हैं.. मानवों की दृष्टि में ही नहीं, स्वयं ईश्वर की दृष्टि में भी | इसलिए हर तरफ आप लोगों की जय जय कार होती है, आर्थिक सामाजिक लाभ प्राप्त होता है, यहाँ तक कि सत्ता सुख भी प्राप्त होता है |
लेकिन हम सनातनियों को आप जैसे सम्मानित सज्जनों की तुलना में हेय दृष्टि से देखा जाता है क्योंकि हम
सनातन सिद्धांत,
'सर्वधर्म समभाव',
'सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्'।।
'सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्'।।
सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।
का अनुसरण करते हैं | हम सनातनी आप लोगों की तरह दूसरों की नकल करके नहीं जीते, बल्कि आत्मज्ञान व आत्मनिर्देशानुसार जीते हैं | इसलिए उन लोगों की नकल नहीं कर सकते जो दूसरों के साथ मैत्रीभाव नहीं रखते | न तो हम आईसीस की नकल कर सकते हैं और न ही पाकिस्तानी या बंगलादेशी मुसलमानों की नकल कर सकते हैं | हाँ हम उनके लिए आदर्श प्रस्तुत कर सकते हैं कि नफरत, परधर्म निंदा व निर्दोषों मासूमों की हत्या किये बिना भी जिया व समृद्ध हुआ जा सकता है | हम आप लोगों की तरह दुसरे देशों व धर्म की बुराई खोजने में अपना समय व्यर्थ नहीं करते, बल्कि अपने ही धर्म, समाज व देश में जो कमियाँ उनपर शोध करते हैं और कारण खोजने का प्रयास करते हैं कि उन्हें कैसे दूर करके नागरिकों व राष्ट्र को समृद्ध किया जाए | कैसे समाज को आपस में सहयोगी बनाया जाए, कैसे धर्म व जाति के नाम पर बंटे समाज को संगठित करके राष्ट्र के प्रति समर्पित होने के लिए प्रेरित किया जाए |
तो आप लोग जो कुछ मुझे दिखाना व समझाना चाहते हैं, वह मुझे मत दिखाइये.. क्योंकि मैं आप लोगों जितना न तो बुद्धिमान हूँ न ही समझदार हूँ और ऊपर से अनपढ़ हूँ | न ही आप लोग मुझसे अपेक्षा रखें कि जिस प्रकार आप लोग इस्लाम पढ़कर आंबेडकरवादियों की तरह नफरत फैला रहे हैं, मैं भी वैसा ही करूँ | हाँ मैं उनके विरुद्ध अवश्य हूँ जो अपने ही देश में धर्म व जाति के नाम पर नफरत फैलाकर देश को एक और विभाजन की ओर अग्रसर कर रहे हैं | ~विशुद्ध चैतन्य
नोट: उनका कहना था, "इतनी लम्बी पोस्ट लिख दी, उत्तर तो दिया ही नहीं जो प्रश्न मैंने पूछा था उसका ?"
क्या आपको भी उत्तर नहीं मिला ?
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