06 जून 2016

सनातन धर्म का नियम है; शांति से जीना है तो गलत का प्रतिकार करना सीखो


कायरता केवल चूहों, खरगोशों में ही शोभा देता है सक्षम जीवों में नहीं | लेकिन जब मानव भी कायरता को ओढ़ लेता है शराफत का सुंदर लेबल लगाकर, तब दानवों का राज कायम हो जाता है | इतिहास गवाह है जिस देश की प्रजा कायर रही जिस देश का शासक कायर रहा वह देश गुलाम हुआ और उस देश के नागरिकों अमानवीयता सहनी पड़ी |

आज आधुनिकता के नाम पर हम इतने कमजोर हो चुके हैं कि उपद्रवियों के विरोध में हथियार उठाना तो दूर की बात है, तीखे वाक्यों को भी सुनना पसंद नहीं करते | सारी शिक्षा पद्धति ऐसी बना दी गयी है कि उसमें आत्मरक्षा और युद्धकौशल पूरी तरह से हटा दिया गया और केवल भेड़ों-बकरियों की नस्ल तैयार की गयी | न तो माँ-बाप ही चाहते हैं कि उनका बच्चा युद्ध कौशल सीखें और न ही समाज चाहता है | क्योंकि युद्ध कौशल का अर्थ ही उनको यह लगता है कि उनका बच्चा बिना वजह की मुसीबतों में फंस जाएगा | लेकिन यदि हम इतिहास उठाकर देखें तो पहले हर नागरिक युद्ध कौशल में प्रवीण होता था | उनके खेल क्रिकेट या बेडमिन्टन नहीं, बल्कि तीरंदाजी, भला फेंक, कुश्ती, घुड़सवारी आदि हुआ करते थे.. जो कि न केवल शारीरिक सौष्ठव व युद्ध क्षमता का प्रदर्शन हुआ करता था, बल्कि बच्चों और युवाओं के लिए लाभकारी भी हुआ करता था |

हम यदि ध्यान दें तो समाज के कुछ मुट्ठीभर अराजक तत्व मृत्यु के भय से मुक्त हो जाते हैं और फिर पुरे समाज में अपना आधिपत्य स्थापित कर लेते हैं | उनका आतंक इतना बढ़ जाता है कि हर कोई उनसे घबराने लगता है... क्यों ?

क्योंकि जो धार्मिक लोग रट्टा मारते फिरते हैं कि आत्मा अमर है, ईश्वर सब देखता है, वही मौत के भय काँपते नजर आते हैं | वही ईश्वर से अधिक उन शैतानों के तलुए चाटते मिलते हैं, जो सबसे अधिक पूजा पाठ और ईश्वर के गुणगान करता है | ये ढोंगी धार्मिक न तो ईश्वर पर विश्वास करते हैं और न ही आत्मा की अमरता पर..लेकिन ढोंग ऐसा करते हैं जैसे इनसे बड़ा ईश्वर का भक्त और कोई नहीं | लेकिन जिनसे वास्तव में ईश्वर को स्वीकार लिया, जिसने स्वयं को समर्पित कर दिया ईश्वर को, वह जानता है कि मृत्यु तब तक किसी की नहीं हो सकती, जब तक उसका समय न आ गया हो | यदि कनिष्क विमान दुर्घटना किसी को याद हो, तो उस दुर्घटना में लगभग सभी यात्री मारे गये थे, लेकिन एक आठवर्ष की बच्ची जीवित बच गयी थी... कैसे ?

ऐसी ही कई दुर्घटनाएं हुईं जिनमें आश्चर्य जनक रूप से कोई जीवित बच गया | फिर हम देखते हैं कि हाफिज जैसे लोग जीवित बचे रहते हैं, फिर हम देखते हैं कि दाउद जैसे लोग जीवित बचे रहते हैं.. तो फिर जब बुरा करने वाले का कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाता, तो अच्छाई करने वाले क्यों मौत से घबराते हैं ?

मेरे जैसा कोई व्यक्ति कभी उग्रभाषा का प्रयोग करता है वह भी केवल इसलिए कि कुछ लोगों को जगा सकूं...तो समाज को बुरा लगता है | उनको मुझसे आशा रहती है कि में गौतम बुद्ध जैसा व्यव्हार अपनाऊँगा | वे मुझसे दुर्वासा या परशुराम के व्यव्हार की अपेक्षा नहीं रख सकते | नहीं आपको यह स्वीकारना होगा कि विशुद्ध गौतम बुद्ध नहीं है और न ही श्री श्री रवि शंकर.. विशुद्ध केवल विशुद्ध है | श्री कृष्ण से राम होने की अपेक्षा नहीं कर सकते, श्री कृष्ण अपनी ही तरह के थे और राम अपनी ही तरह के...

इसी प्रकार आप भी अपने भीतर की कायरता को मिटाकर श्रीकृष्ण को जगाएं, अपने भीतर की कायरता को मिटाकर परशुराम को जगाएं..और अत्याचारियों और उपद्रवियों के विरुद्ध खुल कर प्रतिरोध करें... बेशक परिणाम कुछ भी हो, लेकिन कायरतापूर्ण हज़ार वर्ष के जीवन से निर्भयता जीया गया एक दिन का जीवन श्रेष्ठ हैं | यही सनातन धर्म है | ~विशुद्ध चैतन्य

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