
उस पोस्ट से न केवल मुस्लिमों को सदमा लगा, बल्कि हिन्दुओं को भी कम गहरा सदमा नहीं पहुँचा | विद्वानों ने कहा कि यह फेक न्यूज़ है, कुछ ने न्यूज़ बनानेवाले को भला बुरा कहा, कुछ ने मुझे भलाबुरा कहा...... लेकिन मुझे वह पोस्ट शेयर करने के बाद बहुत संतुष्टि मिली | उस पोस्ट ने धार्मिकों के चेहरे से वह नकाब उतार दिया जिसे लगाकर लोग कहते थे कि हमारा धर्म तो प्रेम सिखाता है, हमारा धर्म तो भाईचारा सिखाता है, हमारा धर्म तो इंसानियत का पाठ पढाता है, हमारे धर्म में कोई भेदभाव नहीं है..... वगैरह वगैरह |
केवल यह सुनकर ही धार्मिकों को सदमा लग जाता है कि मंदिर में कव्वाली गाई गयी या किसी ने नमाज पढ़ लिया, या मस्जिद में किसी ने भजन गा लिया, या पूजा कर लिया..... तो सोचिये ये लोग कैसे भाईचारा और मानवता सह पायेंगे ?

वास्तव में धर्म और राजनीति के नाम पर समाज में कभी भी एकता नहीं हो सकती क्योंकि ये दोनों ही पंथ नफरत की नींव पर खड़ी की जाती है | इनके बीजों को सींचा ही जाता है नफ़रत और हिंसा के ज़हर व खून से | कहीं कुछ लोग अच्छे निकल आते हैं तो उन्हीं के नाम और तस्वीरों को गले में लटकाए नफरत के सौदागर धर्म और जाति की राजनीति खेलते हैं | धर्म के नाम पर मार-काट होते हैं, धर्म के नाम पर संगठन बनते हैं, संस्थाएं बनतीं हैं..... और फिर आपस में सब लड़ मरते हैं जैसे ईराक और सीरिया में लड़-मरे | महाभारत का युद्ध भी भूमिविवाद ही था और आज जितने भी धार्मिक संगठन खड़े हुए हैं, जितने भी धार्मिक संस्थाएं व पंथ हैं, सभी का झगडा भी भूमि, जल और भोजन ही है.. लेकिन कहते हैं धर्मयुद्ध लड़ रहे हैं |
लड़ते-रहो, मरते रहो, यही तो नियति है मानवों की...चाहे कितने भी आधुनिक व सभ्य बनने का ढोंग कर लो, पशुता से मुक्ति नहीं मिलेगी क्योंकि पशु और शैतान जो भीतर है, उसे खून चाहिए और वह खून की प्यास इसी प्रकार आपस में लड़वाकर ही बुझाएगा |
शायद आप लोगों को लगता होगा कि मैं आप सभी की बहुत चिंता करता हूँ, वास्तव में बिलकुल भी नहीं... क्योंकि चिंता उन्हीं की जाती है, जो समझदार हो | जो कीड़े-मकोड़ों की तरह बेहोश मरने के लिए ही पैदा होते हैं, उनकी चिंता न तो आप करेंगे और न ही मैं | मानवों का इतिहास उठाकर देख लीजिये, कितने लोग मरे, कितने निर्दोष मरे, कितनी बड़ी बड़ी सामूहिक हत्याएं हुईं.... सब भुला दिए गये और आज भी खून की प्यास नहीं बुझी |

जब आप अत्याचार या अमानवीयता के विरुद्ध आवाज नहीं उठाते, या धर्म और जाति देखकर आप आवाज उठाते हैं, तो आप अधर्म व अत्याचार के समर्थक हैं और आपको उसका दंड भुगतना ही पड़ेगा | कश्मीरी भुगत रहे हैं, पाकिस्तानी भुगत रहे हैं, सीरिया, ईराक भुगत रहे हैं और आप भी भुगत ही रहे हैं, बस अहसास नहीं होता क्योंकि होश में नहीं हैं |
और यह दुःख की बात है कि यहाँ हिन्दू, मुस्लिम, ब्राह्मण, दलित, कांग्रेसी, भाजपाइयों की कोई कमी नहीं है, कमी हैं तो मानवों की भारतीयों की और उनकी संख्या इतनी कम है कि उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती के समान खो जाती | ~विशुद्ध चैतन्य
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