
अक्सर वे लोग मुझपर पक्षपात का आरोप लगाते हैं जो स्वयं पक्षपात से मुक्त नहीं हो पाते | वैसे देखा जाए तो पक्षपात से मुक्त कोई होता भी नहीं, सिवाय मुर्दों के | मैं भी पक्षपात से मुक्त नहीं हूँ, क्योंकि मैं हमेशा शोषितों के पक्ष में होता हूँ बिना यह देखे कि उसका जात, पंथ, सम्प्रदाय या लिंग क्या है | मैं हमेशा अत्याचार व शोषण के विरोध में होता हूँ भले ही वह कितना ताकतवर क्यों न हो | तो मैं पक्षपात से मुक्त नहीं हूँ लेकिन मेरा पक्षपात सनातनी है, किताबी नहीं | मेरा पक्षपात प्राकृतिक है थोपी हुई मान्यता नहीं |
अधिकाँश लोगों को मैंने देखा है निष्पक्षता की बात करते हुए और यह कहते हुए, "न काहू से दोस्ती न काहू से बैर", लेकिन उनकी दोस्ती हमेशा ताकतवर के साथ रहती है और कमजोर से दूरी | ऐसे लोगों से मैं हमेशा सतर्क रहता हूँ, क्योंकि ये लोग कभी भी धोखा दे सकते हैं और इनको एहसास भी नहीं होगा कि इन्होने कुछ गलत किया | अधिकांश लोगों को मैंने देखा है प्रेम और भाईचारा की बात करते हुए, लेकिन इनका प्रेम और भाईचारा केवल अपने समुदाय, समाज, पंथ, सम्प्रदाय या जाति के प्रति ही रहता है | उदाहरण के लिए मुस्लिम सम्प्रदाय या संघी-बजरंगी, दलित या ब्राह्मणवादी सम्प्रदाय को ही लें, तो आप पायेंगे कि इनको अपने संप्रदाय के लोगों में कोई बुराई नहीं दिखाई देगी | ये सभी भाईचारा की बात करेंगे लेकिन ब्राहमण दलितों को मंदिर में नहीं घुसने देंगे क्योंकि उनका भाईचारा केवल सवर्णों से है | संघी बजरंगियों को मुस्लिमों और दलितों में ही सारी बुराई दिखाई देगी, अपने सम्प्रदाय में नहीं, फिर उनके लोग बम बनाएं, गौरक्षा के नाम पर किसी की हत्या कर दें, दंगे भड़काएं.... कुछ नहीं दिखेगा उनको | इसी प्रकार मुस्लिमों में है, यदि किसी मुसलमान को कुछ हो जाए तो भाईचारा जाग जाएगा, वहीँ किसी हिन्दू को कुछ हो जाए तो उन्हें पता भी नहीं चलेगा |
ऐसे ही कुछ लोग मेरे पीछे पड़े रहते हैं कि हिन्दुओं में बहुत बुराई दिखाई देती है, मुस्लिमों पर क्यों नहीं लिखते ? कुछ लोग कहते हैं मुस्लिमों से डर लगता है इसलिए मुस्लिमों के खिलाफ कुछ नहीं लिखते | फिर कहते हैं लिखना है तो निष्पक्ष लिखो... अब ऐसे लोग जो खुद निष्पक्ष नहीं हैं, वे मुझे निष्पक्षता से लिखने की सलाह देते हैं | सैनिकों के किसी गलत का विरोध करो तो तुरंत सेना खतरे में पड़ जाती... ठीक वैसे ही जैसे इस्लाम खतरे में पड़ जाता है, हिंदुत्व खतरे में पड़ जाता है |
कभी-कभी ऐसे लोगों पर हँसी आती है तो कभी दया, क्योंकि इनकी समझ इतनी कम है कि सिमट कर रह गये ये लोग पंथों, सम्प्रदायों, जातियों में | आगे बढ़ने के मार्ग खुद ही बंद कर लिए और भाईचारा और सौहार्द की बातें कर रहे हैं |
अब आगे जो लिखने जा रहा हूँ वह स्वाभाविक है कि अधिकांश की समझ में नहीं आएगा, इक्के-दुक्के कुछ लोग होंगे जो संकीर्णता से मुक्त हो चुके हैं और ऊपर उठ चुके हैं शायद वे समझ पायें |
भौतिकता से परे हो जाएँ, इस शरीर से परे हो जाएँ, हर वह चीज जिसे आप देख व छू सकते हैं, सभी से परे हो जाएँ | अब आप पाएंगे कि आप केवल उर्जा (एनर्जी) मात्र हैं | आप मरे नहीं हैं, जीवित हैं लेकिन आपके पास शरीर नहीं है | आपके पास भौतिक आँखें भी नहीं है, लेकिन आप सबकुछ देख पाएंगे बल्कि पहले से अधिक अच्छी तरह देख पायेंगे | आप देख पाएंगे कि सम्पूर्णब्रह्माण्ड कुछ नहीं, सिवाय एनेर्जी के | हम जो खाते हैं, पीते हैं वह सब एनेर्जी के विभिन्न रूप हैं, लेकिन हैं सभी एनेर्जी ही | हम जो सुगंध लेते हैं, जो ठंडक या गर्मी लेते हैं, वह भी एनेर्जी ही है..यानि सिवाय एनेर्जी के कुछ और नहीं है यह ब्रह्माण्ड | आप शाकाहारी भोजन लें यह माँसाहारी, हैं सभी एनर्जी ही हैं | तब आप न पुरुष होंगे न स्त्री, केवल एनर्जी होंगे | न आप ब्राहमण होंगे, न शूद्र या दलित और न ही हिन्दू होंगे न मुसलमान.... केवल एनर्जी होंगे | एक ऐसी एनर्जी जिसे हम आत्मा कहते हैं और सभी एनर्जी को मिलाकर एक नाम दिया गया 'ईश्वर' या 'भगवान्' | इसलिए ऋषियों, महानआत्माओं ने कहा कि कण-कण में ईश्वर का वास है अर्थात कण कण में एनर्जी है | पत्थर भी यदि दृश्य है तो वह एक एनर्जी है जिसकी वजह से वह दृश्य है | इस प्रकार हम समझ सकते हैं कि ईश्वर को इंसानी रूप का जज या सरकारी बाबू नहीं होता कि उसे रूपये पैसे चढ़ाकर खुश कर लेंगे... यह कुछ वैसी ही बात होती है जैसे कोई खाना बनाने वाली गैस को खुश करने के लिए सोने चांदी चढ़ाए ताकि वह खुश हो जाये और खाना जल्दी पक जाए :)

तो हम उस अवस्था में जब पहुँच जाते हैं या अनुभव कर पाते हैं उस अवस्था को जब हमारा शरीर भी नहीं है, जितने भी भौतिक संसाधन हमने इकट्ठे किये, थे वे सब भी नहीं है, तब हम सनातन धर्म को अनुभव कर पाते हैं | हम समझ पाते हैं कि हम व्यर्थ ही आपस में झगड़ रहे थे उन चीजों के लिए, जो हम अपने साथ लेकर जा ही नहीं सकते | वे सभी हमें प्रयोग करने के लिए मिले थे तब तक के लिए जब तक कि हमारे पास भौतिक शरीर है | हम आश्चर्य चकित होंगे यह देखकर उस अवस्था में कि लोग अलग अलग समूहों में बंटे हुए हैं कोई किसी को लूट

तो यह खेल चलता रहेगा....जो इन रहस्यों को समझ जाता है वह आनन्द लेता है इनकी मूढ़ता पर | कुछ लोग समझाने का प्रयास भी करते हैं...लेकिन कम ही लोगों को समझ में आता है |
तो मुझे जो कहते हैं कि मुझे केवल बुराइयां ही क्यों दिखती हैं, अच्छाइयाँ क्यों नहीं दिखाई देती, उन्हें कहना चाहता हूँ कि मुझे तो दोनों ही पहलू दिखाई देते हैं, लेकिन जिन्हें दिखाई नहीं देता, उन्हें दिखाने के लिए ही मैं वह लिखता हूँ, जो लोग देखना सुनना पसंद नहीं करते | न मुस्लिम चाहता है कि कोई उनकी बुराइयाँ दिखाए, न हिन्दू चाहता है, न ब्राह्मण चाहता है, न दलित चाहता है, न सेना चाहती है, न सरकार चाहती है....क्योंकि हर कोई अपनी बुराइयों को जानता है लेकिन खुद को सबसे श्रेष्ठ सिद्ध करना चाहता है | मुझे श्रेष्ठ होने में कोई रूचि नहीं है क्योंकि मैं जो हूँ, जैसा हूँ उससे संतुष्ट हूँ | मैं तो बस यहाँ अपना समय काट रहा हूँ क्योंकि यह शरीर छोड़कर फिर मुझे उस ग्रह में लौटना है जहाँ से मैं आया हूँ | मेरा मन कहता है कि यह ग्रह मेरा नहीं है न ही ही यहाँ के लोग मेरे हैं... क्योंकि मेरी वाईब के लोग मुझे नहीं मिले यहाँ और अब उम्र बीत गयी | बस थोड़े से वर्ष और बचे हैं... फिर मैं यहाँ से चला जाऊंगा | क्योंकि सनातनी नाम के जिस धर्म की बात मैं करता हूँ, उससे यहाँ कोई परिचित नहीं है और न ही होना चाहते हैं | मुझे बचपन से ही इस दुनिया के लोग रास नहीं आये, बहुत कोशिश की मैंने यहाँ के लोगों में मन लगाने की लेकिन नहीं हो पाया | अब समझ में आ गया कि मैं एक अजनबी ग्रह में आ गया भटक कर | मेरा कोई साथी भी नहीं आया मेरे साथ इस ग्रह में.... जरा कल्पना कीजिये कितने ग्रह और होंगे इसी प्रकार के इस ब्रह्माण्ड में ?
वैज्ञानिक कहते हैं कि जो सबसे पास का ग्रह है बिलकुल पृथ्वी जैसे वह भी हजारों प्रकाश वर्ष दूर है | तो मैं यह सोचकर कभी कभी परेशान हो जाता हूँ कि मैं इतनी दूर कैसे आ गया भटक कर ? और वह भी ऐसे लोगों के बीच जहाँ किसी से मेरा मन ही नहीं मिलता ? मुझे कोई शक्ति नहीं मिलती किसी से, कोई उर्जा नहीं मिलती...? अपनी शक्ति बढ़ानी हो तो मुझे एकांत में जाना पड़ता है |

~विशुद्ध चैतन्य
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