मेरा मानना है कि हम सभी ईश्वर की संतान है और सभी को ईश्वर ने विवेक दिया है | इसलिए कोई भी किसी भी दड़बे में जाने के लिए स्वतंत्र है | बस यह निश्चित कर लीजिये कि जो प्रचार किया जा रहा है, वह सही है या नहीं | पता कर लीजिये कि उस दड़बे में कोई शोषित, पीड़ित तो नहीं है | कुछ दिन रह कर देख लीजिये उन दडबों में कि किसी गरीब को अपनी पत्नी, माँ या बच्चे की लाश लेकर भटकना तो नहीं पड़ता | पता कर लीजिये कि उस दड़बे के निवासियों को बलि का बकरा बनाकर तो नहीं रखा गया | सुनिश्चित कर लीजिये कि उस दड़बे के निवासी अपने पड़ोसी के सुख-दुःख में निःस्वार्थ काम आते हैं या नहीं | देख लीजिये कि कहीं उस दड़बे में कोई भूखा नंगा, बीमार अपनी मौत का इंतज़ार तो नहीं कर रहा | देख लीजिये कि उस दड़बे का ठेकेदार अपने दड़बे के निवासियों की सुख-समृद्धि व सुरक्षा का पूरा ध्यान रखता है या नहीं |

तो यदि ऐसा कोई दृश्य आपको किसी दड़बे में देखने मिल जाए तो उससे पीछे हट जाएँ क्योंकि कल आप भी अकेले पड़ जायेंगे उस भीड़ में | इससे बेहतर है कि अपना स्वयं का मार्ग खोजें, अकेले ही जीने की आदत डालें क्योंकि बुरे वक्त में धर्म का कोई भी ठेकेदार आपकी सहायता को नहीं आएगा | उनकी रूचि आपमें तभी तक रहेगी जब तक चुनाव होने वाले हों या आपसे उनको चढ़ावा मिल रहा है | उसके बाद वे आपको पहचाने से भी इनकार कर देंगे | हाँ कुछ साथी आपको अवश्य मिल जायेंगे जो आपकी सहायता करेंगे जब कोई साथ देने वाला न मिले, ऐसे लोग आवश्यक नहीं कि उसी दड़बे के हों, किसी और दड़बे से भी हो सकते हैं | इसलिए बेहतर है दडबों से बाहर ही रहें और सनातनी बनकर रहें | सभी के सहयोग के लिए तत्पर रहें और सभी के लिए अपने द्वारा खुले रखें | भेदभाव से मुक्त रहें और सदैव प्रसन्नचित रहें | ~विशुद्ध चैतन्य

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