

कालाहांडी की दूसरी घटना जिसमें एक ८०-८५ वर्षीय वृद्धा की हड्डियाँ हस्पताल कर्मी ही तोड़कर गठरी बनाकर ले जाते हैं स्टेशन तक | उपरोक्त घटनाओं को पढने के बाद क्या आपके मन में कभी यह विचार आया कि दोष सरकार का नहीं समाज का है ?
जिस समाज में मानवीय संवेदनाएं लुप्त हो चुकीं हों उस समाज से आप किसी अच्छे मानवीय गुणों वाले नेता की अपेक्षा कैसे रख सकते हैं ? नेता वही तो होता है जिसे समाज अपने से श्रेष्ठ समझता है यानि यदि समाज अमानवीय प्रवृति का होगा तो नेता उन सबसे अधिक क्रूर व हिंसक होगा | यदि समाज अपराधिक प्रवृति का होगा तो नेता छटा हुआ बदमाश, तड़ीपार, हिस्ट्रीशिटर ही होगा.. क्योंकि जिस समाज की जैसी प्रवृति होगी, वैसा ही वह नेता चुनेगा | तो नेताओं को मत कोसिये क्योंकि नेता आपके समाज का आइना होता है | आपका अपना ही चेहरा है जिसे आपने सजा संवार कर ऊपर इसलिए बैठाया है ताकि दुनिया देख सके कि आपका समाज कैसा है आप किस तरह के व्यक्तित्व को पसंद करते हैं | वह नेता आपका व आपके समाज का प्रतिनिधित्व करता है |
सारे धर्मों के ठेकेदार चिल्ला चिल्ला कर कहते हैं कि हमारी ईश्वरीय किताबें, हमारे धर्म प्रेम और मानवता का पाठ पढ़ाते हैं... लेकिन व्यावहारिकता में देखने को नहीं मिलता | लेकिन कहीं दंगा करना हो, कहीं लूट-पाट करना हो, किसी महिला का बलात्कार करना हो, तो समाज में बड़ी एकता देखने को मिलती है | यानि समाज ऐसे कार्यों को बड़ी श्रृद्धा के साथ करता है जिसे धर्मों के ठेकेदार पाप या अपराध मानते हैं | कहीं आगजनी करवानी हो, किसी गाँव को खाली करवाना हो तो बड़ी श्रृद्धा के साथ लोग एकजुट हो जायेंगे.... किसी राजनेता की रैली में लाखों की भीड़ इकट्ठी हो जाती है, कोई धार्मिक उन्माद हो तो लाखों की भीड़ इकट्ठी हो जायेगी और फिर यही लोग धर्म के नाम पर विवाद भी करेंगे कि हमारा धर्म श्रेष्ठ है | कोई हिन्दू से मुस्लमान हो रहा है तो कोई मुसलमान से हिन्दू हो रहा है... बस दड़बे बदले जा रहे हैं, भीतर कोई परिवर्तन नहीं हो रहा |
यही हैं लोग जो सैंकड़ों, लाखों की भीड़ बनकर सड़क पर निकल आते हैं राजनेता या धर्म के ठेकेदार के आह्वान पर लेकिन सड़क पर पड़े घायल की सहायता नहीं कर पाते !
जो समाज आपस में सहयोगी नहीं है, वह तो पशुओं से भी गिरा हुआ समाज है, पशु भी इतना गिरे हुए नहीं है | आपने देखा होगा वह विडियो जिसमें एक भैंस पर शेर हमला कर देता है तो उसकी पुकार सुनकर उसका साथी आ जाता है और शेर को उठाकर फेंक देता है अपनी सींगों से | आपने देखा होगा जब कोई हाथी का बच्चा किसी गड्ढे में गिर जाता है, तो हाथियों का पूरा समूह उसे बाहर निकालने में अपना अपना योगदान देने लगता है | आपने सुना होगा वह खबर कल्याणपुरी थाना दिल्ली का, जिसमे एक कांस्टेबल बंदरों से परेशान होकर पास पड़ा पत्थर उठाकर एक बंदर को मारता है, जिससे उस बंदर की वहीँ पर मौत हो जाती है | उसके तुरंत बाद ही पूरी वानर सेना थाने पर हमला कर देती है और पुरे दिन पुलिस वाले अंदर कैद रहते हैं... बाद में जैसे तैसे करके बंदरों को भगाया जाता है और तब पुलिस वाले बाहर निकल पाते हैं... उनमें से कई बुरी तरह घायल होते हैं क्योंकि बंदर पेड़ों से पत्थर फेंक फेंक कर मार रहे थे | आपने वह घटना भी पढ़ा होगा जिसमें एक बच्चा चिम्पान्जियों के लिए बने खाई में गिर जाता है और बेहोश हो जाता है | एक मादा चिम्पांजी उसे अपनी गोद में लिए बैठे रहती है ताकि हिंसक चिम्पंजियों के हाथ न लग जाए और जब सुरक्षा कर्मी पहुँचते हैं तब वह उनको सौंप देती है |
अब आप बताइये, ये सरकार को कोसने वाला हमारा समाज उन उन पशुओं से श्रेष्ठ कैसे हुआ ? क्या यह समाज स्वयं इस लायक है कि वह अपने ही प्रतिबिम्ब नेता व सरकार को कोसे ? जो समाज अपने आसपास किसी की सहायता कर पाने में असमर्थ है, वह उसी समाज से निकले स्वार्थी, मतलबपरस्त नेताओं और प्रशासनिक अधिकारीयों से सहायता की अपेक्षा करे ?
कभी समय मिले तो चिंतन मनन कीजियेगा कि ये धर्म और जाति के ठेकदारों के साथ खड़े होकर एक दूसरे पर कीचड़ उछालने से समाज का कितना भला हो रहा है | कभी समय मिले तो चिन्तन-मनन करियेगा कि हम सामाजिक, मानवीय रूप में कितना नीचे गिर चुके हैं | कभी समय मिले तो अपना चेहरा देखिएगा एक सामाजिक प्राणी के रूप आईने के सामने और फिर चेहरा देखिएगा अपने चुने राजनेताओं का... आपको कोई भेद दिखाई नहीं पड़ेगा | ~विशुद्ध चैतन्य
इस विडियो को देखिये और सीखिए कुछ मानवता इन पशुओं से
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