21 दिसंबर 2016

लोकतंत्र की प्रथा कैसे शुरू हुई ?


कई हज़ार वर्ष पुरानी बात है, धन्नासेठ ने अपनी कंपनी का GM नियुक्त किया चुनमुन परदेसी को | चुनमुन को हज़ारों उम्मीदवारों का इंटरव्यू लेने के बाद चुना गया था | देश विदेश घूमना, महंगे महंगे कपड़े पहनना  और तीस हज़ार रूपये प्रतिकिलो के भाव वाला दुर्लभ कुकरमुत्ते का सूप पीकर अपनी जवानी व तंदुरुस्ती बनाये रखना उसका शौक था |


कंपनी ज्वाइन करने के बाद शुरू के कुछ वर्ष तो विश्वभ्रमण में निकाल दिया और अपने सारे यार दोस्तों की कंपनियों के लिए न केवल मार्केटिंग की, बल्कि कई कॉन्ट्रैक्ट भी दिलवाए | अपनी ही कम्पनी कई ब्रांचो को अपने दोस्तों को दे दिया चलाने के लिए यह कहकर कि घाटे में चल रही थी इसलिए दे दी | एक दिन आनन्-फानन में रात को घोषणा कर दी कि रात बारह बजे के बाद से नाईट शिफ्ट वालों को अपने अपने घर से खाना बनवाकर मंगवाकर खाना होगा, चाय नाश्ता सब कुछ घर का ही होना चाहिए | क्योंकि कम्पनी आपके स्वास्थय के प्रति बहुत चिंतित है | सारे कर्मचारी परेशान हो गये कि अब आधीरात को घर से खाना कैसे मँगवायें....

दूसरे दिन नियम बन गया की कम्पनी के मालिक को कैश घर में रखने की अनुमति नहीं है, उसके अपने बैंक अकाउंट में भी जितने पैसे हैं, वे सब कम्पनी के अकाउंट में ट्रांसफर करने होंगे | और हर रोज दो सौ रूपये कंपनी के मालिक को मिलेंगे अपने घर का खर्च चलाने के लिए.. उससे अधिक अगर कम्पनी के मालिक ने खर्च किये तो जाँच कमेटी बैठेगी.. जो जाँच करेगी की कम्पनी के मालिक के पास फालतू पैसे आये कहाँ से | लेकिन जीएम् और उनके सहयोगियों को कितने भी खर्च करने की छूट होगी और कहीं से पैसे लेने की छूट होगी, न कोई जाँच होगी और न ही कोई पूछताछ |

कम्पनी के कर्मचारी ही नहीं, मालिक तक बौखला गये | मालिक दनदनाता हुआ चुनमुन परदेसी के पास पहुँचा, "यह क्या मजाक है ??? मैंने ही तुम्हें नौकरी पर रखा है और तुम मुझे ही दौ सौ रूपये दिहाड़ी दोगे घर का खर्च चलाने के लिए ? तुम्हें शर्म नहीं आती ?"

चुनमुन परदेसी रुवांसा होकर आँखों में पानी भर कर बोला, "मैं आपका कष्ट समझ सकता हूँ, लेकिन जो कुछ भी कर रहा हूँ आपकी कम्पनी और आपके हित के लिए ही कर रहा हूँ | यह नया नियम है और अंग्रेजी में इसे लोकतंत्र कहते हैं | इस नियम के अंतर्गत आप मुझे पांच साल से पहले नौकरी से नहीं निकाल सकते उसके बाद जो सजा देना चाहे दे सकते हैं |"

कंपनी के मालिक कोर्ट पहुँचा शिकायत लेकर | लेकिन कोर्ट ने कहा कि आपने ही चुना है उसे आप ही भुगतो, इसमें कोर्ट कुछ नहीं कर सकती | बेचारा मालिक सर पकड़कर बैठ गया |

बस उस दिन से लोकतंत्र की प्रथा चल पड़ी | ~विशुद्ध चैतन्य