महावीर और गौतम के समय में भी धार्मिक लोग थे जो उनपर कूड़ा कचरा फेंका करते थे और आज भी हैं | तब भी धर्म के ठेकेदार गालियाँ दिया करते थे और आज भी | कुछ नहीं बदला है तब के धार्मिकों और आज के धार्मिकों में क्योंकि वे तो धार्मिक हैं अर्थात मार्ग में हैं, अभी धर्म तक पहुँचे नहीं हैं | अभी तक धर्म को समझना तो दूर, अनुभव भी नहीं किया है | ये तो वे दुकानदार हैं जो तीर्थ मार्गों में अपनी रेहड़ी लगाकर अपना समान बेच रहे होते हैं |
अब इनकी समस्या यह है कि ये लोग अपनी दूकान को ही तीर्थ और धर्म समझा रहे होते हैं | जब कोई कहता है कि अरे आगे चलो अभी तो आप लोग रास्ते पर ही बैठे हुए हो, धर्म तो अभी दूर है तो ये दुकानदार नाराज हो जाते हैं और फिर अपने सेनाएं भेजते हैं उपद्रव करने के लिए |
अब मैंने कहा कि मैं कलयुगी सन्यासी हूँ तो जाहिर है कि मैं गौतम बुद्ध या महावीर या राम या कृष्ण या कबीर रैदास जैसा महान भी नहीं हो सकता | जाहिर है मैं आधुनिक संत श्री श्री रविशंकर जैसे चिर स्थाई मुस्कान लिए क्रोध मुक्त भी नहीं हो सकता | जाहिर है कि मैं रास्ते में कूड़ा फेंकने वालों पर क्रोध भी करूँगा ही क्योंकि मैं कोई महात्मा और ब्रम्हज्ञानी तो हूँ नहीं कि मुस्कुराता रहूँ | और मैं कितना जानता हूँ या नहीं वह महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि महावीर से भी विद्वान यह कहते थे कि पहले खुद सुधार लो फिर लोगों को सुधारना | यह और बात है कि ये खुद कभी नहीं सुधरे न तब और न अब लेकिन कोई भी आगे बढ़ना शुरू करता है तो इनका सिंहासन सबसे पहले डोलने लगता है | जैसे इंद्र का सिंहासन तब भी डोल जाता है जब नन्हा बालक ध्रुव या नाचिकेता तपस्या करने लगता है |
ऐसे लोगों को ब्लॉक करने की आवश्यकता किसी भी संत-महंत या ब्रम्हज्ञानी को नहीं पड़ती लेकिन मुझे पड़ती है क्योंकि मैं कोई महान आत्मा नहीं हूँ साधारण सा सन्यासी हूँ | जिन लोगों को मैं समझाना चाहता हूँ मानवता, वे इतने डरे हुए हैं कि रास्ते में पड़ी गंदगी देखकर ही घर में दुबक जाते हैं और उन्हें बाहर निकालना आवश्यक है | उनके भीतर से यह भ्रम निकालना आवश्यक है कि उनका भला कोई नेता या बाबा ही कर सकता है | उनके भीतर से यह भ्रम निकालना आवश्यक है कि कोई गेरुआधारी ही महात्मा होता है....... और यदि कुछ लोग जान बुझ कर मेरे राह में रोड़े फेंकेंगे तो ऐसे लोगों को ब्लॉक करना ही पड़ेगा मुझे | ~विशुद्ध चैतन्य
अब इनकी समस्या यह है कि ये लोग अपनी दूकान को ही तीर्थ और धर्म समझा रहे होते हैं | जब कोई कहता है कि अरे आगे चलो अभी तो आप लोग रास्ते पर ही बैठे हुए हो, धर्म तो अभी दूर है तो ये दुकानदार नाराज हो जाते हैं और फिर अपने सेनाएं भेजते हैं उपद्रव करने के लिए |
अब मैंने कहा कि मैं कलयुगी सन्यासी हूँ तो जाहिर है कि मैं गौतम बुद्ध या महावीर या राम या कृष्ण या कबीर रैदास जैसा महान भी नहीं हो सकता | जाहिर है मैं आधुनिक संत श्री श्री रविशंकर जैसे चिर स्थाई मुस्कान लिए क्रोध मुक्त भी नहीं हो सकता | जाहिर है कि मैं रास्ते में कूड़ा फेंकने वालों पर क्रोध भी करूँगा ही क्योंकि मैं कोई महात्मा और ब्रम्हज्ञानी तो हूँ नहीं कि मुस्कुराता रहूँ | और मैं कितना जानता हूँ या नहीं वह महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि महावीर से भी विद्वान यह कहते थे कि पहले खुद सुधार लो फिर लोगों को सुधारना | यह और बात है कि ये खुद कभी नहीं सुधरे न तब और न अब लेकिन कोई भी आगे बढ़ना शुरू करता है तो इनका सिंहासन सबसे पहले डोलने लगता है | जैसे इंद्र का सिंहासन तब भी डोल जाता है जब नन्हा बालक ध्रुव या नाचिकेता तपस्या करने लगता है |
ऐसे लोगों को ब्लॉक करने की आवश्यकता किसी भी संत-महंत या ब्रम्हज्ञानी को नहीं पड़ती लेकिन मुझे पड़ती है क्योंकि मैं कोई महान आत्मा नहीं हूँ साधारण सा सन्यासी हूँ | जिन लोगों को मैं समझाना चाहता हूँ मानवता, वे इतने डरे हुए हैं कि रास्ते में पड़ी गंदगी देखकर ही घर में दुबक जाते हैं और उन्हें बाहर निकालना आवश्यक है | उनके भीतर से यह भ्रम निकालना आवश्यक है कि उनका भला कोई नेता या बाबा ही कर सकता है | उनके भीतर से यह भ्रम निकालना आवश्यक है कि कोई गेरुआधारी ही महात्मा होता है....... और यदि कुछ लोग जान बुझ कर मेरे राह में रोड़े फेंकेंगे तो ऐसे लोगों को ब्लॉक करना ही पड़ेगा मुझे | ~विशुद्ध चैतन्य
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