17 जनवरी 2015

जनता करे तो क्या करे ?

मैं कभी किसी भी व्यक्ति के इतिहास को महत्व नहीं देता, वैसे तो मैं देश के इतिहास को भी महत्व नहीं देता | जैसे हमारा इतिहास अपनी वचनबद्धता, कर्तव्यपरायणता, त्याग और बलिदान के गौरवमय उदाहरणों से भरा पड़ा है, वहीँ वर्त्तमान में ईमानदारी फांकें और लाचारी देती है । तब लोग देश के लिए पैदा होते थे और आज पैदा ही विदेशियों की सेवा के लिए होते हैं | इतिहास में अपने देश को अधिक से अधिक समृद्ध कैसे बनायें यह जानने के लिए लोग तप और साधना करते थे, आज विदेश में सेटल कैसे हो जाएँ उसके लिए आईआईएम् और आईआईटी करते हैं | तब रावण के महल में भी सीता सुरक्षित थी, अब अपने घर में भी बेटियाँ सुरक्षित नहीं है.....


विदेशी हमारे इतिहास से प्रभावित होकर भारत आते हैं और लूट पिट कर वापस जाते हैं । आये दिन किसी न किसी विदेशी पर्यटक के साथ बलात्कार और लूटपाट की ख़बरें आती ही रहती है | समाज यह कहकर भूल जाता है कि वे असामाजिक तत्व थे या फिर पुलिस और सरकार को कोसकर स्वयं को निर्दोष सिद्ध कर देते हैं ।

लेकिन आश्चर्य तो मुझे इन दुमछल्लों की बेशर्मी पर होती है | सत्ता में उनकी पार्टी नहीं थी तब महंगाई और एफडीआई के विरोद्ध में गला फाड़ फाड़ कर सुखा लिया था और आज महंगाई और एफडीआई अच्छी है | कल किरण बेदी बीजेपी और कांग्रेस के विरोध में जमीन आसमान एक कर रही थी, आज बीजेपी अच्छी लगने लगी |

जनता करे तो क्या करे ?

जिस देश में नेताओं, पार्टियों और अधिकारीयों में ही नैतिकता न बचा हो, उस देश की जनता से नैतिकता की अपेक्षा कैसे की जा सकती है | जब जनता ही नैतिक नहीं होगी तो समाज में नैतिकता कहाँ से आएगा ? और जब समाज ही नैतिक नहीं होगा तो नेता, पार्टी और अधिकारी नैतिक कैसे हो सकते हैं ?

भारत तो फिर वहीं का वहीँ खड़ा हो गया | सोचा था कि कांग्रेस से मुक्ति मिलेगी, तो शायद सरकार बदलेगी | लेकिन सरकार और सत्ता तो आजादी के बाद से आज तक कभी बदली ही नहीं, केवल मुखौटे और लेबल ही बदलती रही | बस एक वहम सा बैठा दिया है कि सत्ता बदल गयी है | यह विश्वास दिलाने के लिए कि सत्ता बदल गई है कुछ लोगों को नया रोजगार दे दिया गया है और वह है; परधर्म निंदा परम सुखं मन्त्र का नित्यप्रति जाप करते रहना | ~विशुद्ध चैतन्य

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